क्या है तीन तलाक़ ? | What is Triple Talaq
इस्लाम में तलाक कई तरह के रूप से किये जाते हैं, जिनमे कुछ की पहल स्त्रियों और कुछ पुरुषों की तरफ से की जाती है. इनमे से मुख्य ‘तलाक़’ और ‘खुल’ है. समय और स्थान के साथ इस्लाम में तलाक़ का रूप बदला पाया गया है. …
तीन तलाक क्या है - इस्लाम में तलाक
पहले तलाक़ के लिए शरिया का इस्तेमाल किया जाता था. शरिया पारंपरिक इस्लामी नीतियों पर चलती है, जो विभिन्न इस्लामी क़ानूनी संस्थाओं में विभिन्न तरह की होती है.
तीन तलाक़ पारंपरिक शरिया (Triple Talaq traditions)
पारंपरिक इस्लामी नीति इस्लामी ग्रन्थ मसलन क़ुरान और हदीथ से बनायी गयी है. इन कानूनों की कार्यप्रणाली में अलग अलग इस्लामी कानूनी संस्थाओं द्वारा नयी नयी चीज़ें जोड़ी जाती रही है. ये चीज़ें मुफ्तियों द्वारा नियन्त्रित और निर्देशित होती है. ये मुफ़्ती ही अक्सर इस्लामी क़ानून न मानने पर न मानने वाले के खिलाफ़ फतवा जारी करते हैं.
तीन तलाक़ क्या है (What is Triple Talaq in Islam)
तीन तलाक़ मुसलमान समाज में तलाक़ का वो जरिया है, जिसमे मुस्लिम आदमी अपनी बीवी को सिर्फ तीन बार ‘तलाक़’ कहकर अपनी शादी किसी भी क्षण तोड़ सकता है. इस नियम से होने वाले तलाक़ स्थिर होते हैं, शादी ख़त्म हो जाती है. इसके बाद यदि पुरुष और स्त्री पुनः शादी करना चाहें तो ‘हलाला’ भरने के बाद ही ये शादी हो सकती है. हलाला एक पद्धति है जिसमे तलाक़ शुदा स्त्री को पहले एक दुसरे मुसलमान पुरुष के साथ विवाह करके रहना होता है. इस आदमी के साथ कुछ दिन व्यतीत करने के बाद पुनः इस आदमी से तलाक़ लेकर स्त्री अपने पुराने शौहर से फिर से विवाह कर पायेगी. तीन तलाक़ को प्रायः ‘तलाक़ उल बिद्दत’ भी कहा जाता है.
विश्व भर में कई मुस्लिम स्कॉलर ने तीन तलाक़ को ग़ैर इस्लामिक घोषित किया है. इन स्कॉलरों के अनुसार कुरान में इस तरह के किसी तलाक़ का ज़िक्र नहीं है. इसके लिए ये स्कॉलर कहते हैं कि शाहुहार और बीवी को तलाक़ से पहले कम से कम तीन महीने एक साथ रहना चाहिए और उसके बाद कानूनी सलाह से तलाक़ लेनी चाहिए. शौहर को अपनी बीवी के तुह्र के समय में तलाक़ देना होता है. इसके पहले तीन महीने में इन्हें अपने सभी रिश्तेदारों की मदद से शादी को बचाने की कोशिश करनी चाहिए. यदि इस तीन महीने के बाद भी शौहर और बीवी तलाक़ चाहते हैं तो पुरुष तलाक़ का ऐलान करता है और शादी टूट जाती है. इसके बाद यदि फिर से शौहर और बीवी एक होना चाहें तो हलाला के बग़ैर भी हो सकते हैं. हलाला उस वक़्त होता है जब एक ही कपल लगातार तीन बार तलाक़ ले चूका होता है और चौथी बार फिर से शादी करना चाहता है.
तीन तलाक़ से होने वाली परेशानी (Triple Talaq problem)
तीन तलाक़ इन दिनों फोन, टेक्स्ट मेसेज, फेसबुक, स्काइप, ई मेल आदि के ज़रिये किया जाने लगा है, और ऐसी घटनाओं की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. क्योंकि इस्लामी नीति में ये क़ानूनन सही है, अतः पुरुषों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता है. वहीँ दूसरी तरफ वैसी स्त्रियाँ जो आर्थिक रूप से अपने शौहर पर निर्भर रहती हैं, उन्हें इस तरह के तलाक़ से आने वाली ज़िन्दगी में काफ़ी दिक्क़तों का सामना करना पड़ता है. आर्थिक परेशानियों के साथ वे भावनात्मक रूप से भी टूट जाती हैं. ऐसी महिलाओं को किसी भी तरह से जीवन निर्वाह का जरिया नहीं मिल पाता है. ये औरतें अक्सर ज़िन्दगी में अकेली पड़ जाती हैं. इनके पास अपने बच्चों को पालने का कोई जरिया नहीं रहता है. ऐसे अधिकतर केसों में, तीन तलाक़ हो जाने के बाद, आदमी अपने बच्चों की, मुख्यतः अपनी बेटी की जिम्मेवारी कभी नहीं लेता है. समाज की कई मुस्लिम महिलाएं इस बात के डर में अपनी ज़िन्दगी गुज़ार देती हैं, कि उनके शाहुहार जाने कब ये तीन शापित शब्द कह दें और उनकी ज़िन्दगी ख़त्म होने के कगार पर आ जाए.
तीन तलाक़ की खिलाफत (Triple Talaq issue)
केंद्र सरकार ने हाल ही में देश के सर्वोच्च न्यायालय को कहा है कि तीन तलाक़, निकाह हलाला और बहु विवाह जैसी प्रथाओं से मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक स्तर और उनकी गरिमा को ठेस पहुँचती है. साथ ही उन्हें वो सारे मौलिक अधिकार भी नहीं मिल पाते जिसे हमारा संविधान हमारे लिए लागू करता है. सर्वोच्च न्यायालय में अपना लिखित मत देने से पहले सरकार ने कहा कि ये सभी प्रथाएं मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का हक़ मिलने से रोकती है.
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ ने कहा है कि मुस्लिम समुदाय में तलाक़ की संख्या बहुत कम है. इन लॉ बोर्ड के अनुसार कुछ लोग इस तरह का माहौल बनाने में लगे हैं कि मुसलमान समाज में तलाक़ की संख्या अधिक है.
विश्व भर में कई इस्लामी विद्वानों द्वारा इसकी खिलाफत लगातार की जा रही है, और कई देशों में इस तरह के तलाक़ पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गयी है.
तीन तलाक़ से जुडा भारतीय न्यायपालिका का फैसला (Triple Talaq and Indian judiciary Decision)
इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा तीन तलाक़ को ग़ैर संवैधानिक करार दे दिया गया है. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इसके लिए पांच जजों की एक बेंच बनायी है, जो इस केश की सुनवाई करेगी और तीन तलाक़ की संवैधानिक वैद्यता का निरिक्षण करेगी. भारत के चीफ जस्टिस जे एस खेडा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट इस केस की सुनवाई के लिए अपनी गर्मी छुट्टी रद्द करने के लिए भी राज़ी है. इस केश की स्पेशल सुनवाई इस ग्रीष्म अवकाश के दौरान होगी. कोर्ट ने इसकी अगली सुनवाई के लिए 11 मई का समय दिया है. इस सुनवाई के तहत तीन तलाक़, निकाह हलाला और इस्लामी बहुविवाह पर अपना निर्णय दिया जायेगा. इस केस की पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र ने सवालों की एक फेहरिस्त जारी कर कोर्ट में सवाल किया था कि ‘ऐसी प्रथाएं मौलिक अधिकारों के नीचे कैसे रह सकती हैं?’. कोर्ट ने एक सवाल अपनी तरफ से भी जोड़ा कि ‘क्या इस प्रथाओं से मुस्लिम समय में महिलाओं को लिंग भेद सहना पड़ रहा है?’.
बिना किसी सही कारण के तीन तलाक़ वैद्य नहीं (Triple Talaq is not valid without any reasons)
बीते दिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ये ऐलान किया कि वे लोग जो बिना किसी जायज़ कारण के तीन तलाक़ देते हैं, उन्हें मुस्लिम समाज से बहिष्कृत किया जायेया. तीन तलाक़ मुस्लिम समुदाय में शरिया के तहत दिया जाता है. पिछले तीन महीने से इस केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. तीन तलाक़ की वजह से कई महिलाओं की ज़िंदगियाँ खराब हो जाती हैं. शनिवार को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड् की कोर कमिटी ने कहा कि इस मामले में वे किसी की ‘बाहरी दखलंदाजी’ नहीं चाहते हैं, क्योंकि ये क़ानून शरिया का भाग है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ की बैठक के दौरान (Muslim personal law board meeting)
बैठक के दौरान मुस्लिम पर्सनल लॉ के सदस्यों ने सफ़ाई देते हुए कहा कि तीन तलाक़ को लेकर लोगों के बीच नासमझी का माहौल है. इसे फिर से नए नियम कानूनों के साथ लाया जाएगा. पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने कहा कि देश में कई लोग पर्सनल लॉ बोर्ड की गतिविधियों पर सवाल उठाने लगे हैं, साथ ही महासचिव ने ये भी कहा है कि वे सारे लोग जिन्हें शरिया क़ानून के विषय में कुछ भी पता, वे लोग भी इस पर सवाल करने लगे हैं. इस तरह देश के सामने इन मुद्दो को साफ़ सुथरे तौर पर रखने की बोर्ड की जिम्मेवारी और भी बढ़ गयी है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अनुसार शरिया कुरान से निकला हुआ क़ानून है अतः ये जुडीसरी के दायरे से बाहर पड़ता है. साथ ही बोर्ड ने ये भी कहा कि इसे ग़ैर संवैधानिक बताना कुरान को फिर से लिखने जैसा है.
कई ग़ैर सरकारी संस्थानों तथा केंद्र सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में इस प्रथा के विरुद्ध मुक़द्दमा दायर किया जा चुका है. इन मुक़दमों का सबसे बड़ा पहलू ये है कि ये प्रथा लैंगिक समानता के अधिकार के विरुद्ध है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पहले ही पिछली दिसम्बर के दौरान ये बात साफ़ की थी कि तीन तलाक़ औरतों के उन सभी अधिकारों का हनन करती है, जिसे देश का संविधान उन्हें मुहैया कराता है. ख़ुद भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात की पुष्टि की है कि मई के महीने में 11 से 19 तारिख के दौरान लगातार बैठक होगी, जिसमे स्त्रियों द्वारा दायर किये गये तीन तलाक़ के विरुद्ध सभी मुक़द्दमों पर चर्चा की जायेगी तथा मौखिक रूप से दिए जाने वाले तीन तलाक़ को अवैध घोषित किया जाएगा.
मशहूर हस्ती जावेद अख्तर का नजरिया (Javed Akhtar statement)
भारतीय सिनेमा के जानी मानी हस्ती तथा स्वयं राज्य सभा सांसद रह चुके जावेद अख्तर ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के इस नए कोड की निंदा की है. बोर्ड के महासचिव ने कहा कि “बोर्ड द्वारा जारी ये नया कोड तीन तलाक़ के वजहों की शरिया के ज़रिये व्याख्या करेगा”. साथ ही ये भी कहा कि “ये कोड उन लोगों को सही रास्ते पर लाएगी जो लोग तीन तलाक़ का दुरुप्रयोग करते हैं”. कई लोगों को शायद ये बात रास आई हो, किन्तु जावेद अख्तर ने लॉ बोर्ड के इस स्टेटमेंट की अपने ट्वीटस के ज़रिये धज्जियां उड़ा दीं. जावेद अख्तर शुरू से तीन तलाक़ के खिलाफ रहे हैं और कई बार इसे बैन करने की मांग कर चुके हैं. अपने ट्वीट में जावेद अख्तर ने लॉ बोर्ड के इस स्टेटमेंट को ‘छल’ करार दिया है और लॉ बोर्ड के मिस्यूज वाले कथन का खंडन करते हुए कहा है कि तीन तलाक़ स्वयं में एक ‘अब्यूज’ है, लॉ बोर्ड छल से तीन तलाक़ को बनाये रखना चाहती है.
जावेद अख्तर ने तीन तलाक़ पर सवाल उठाते हुए पूछा है कि ‘मिसयूज ऑफ़ ट्रिपल तलाक़’ का क्या मतलब है ? कल शायद ‘मिसयूज ऑफ़ रेप’, ‘मिसयूज ऑफ़ मोलेस्टेशन’ अथवा ‘मिसयूज ऑफ़ वाइफ बीटिंग’ जैसे मामले भी सुनने मिल सकते हैं. सभी स्कॉलर इस प्रथा का विरोध करते रहे हैं. इस प्रथा की वजह से अधिकांश मुस्लिम महिलायें अपना जीवन इस डर में गुज़रते हैं कि जाने कब उन्हें उनके शौहर से तीन बार तलाक़ शब्द सुनने मिल जाए और उनकी ज़िन्दगी बदतर हो जाए. कई मुस्लिम महिलायें अभी भी इस समस्या को झेल रही हैं. तीन तलाक़ के बाद पुरुषों को किसी भी तरह से कोई परेशानी नहीं होती और न ही स्त्रियों को कोई आर्थिक मदद प्राप्त होती है, जिससे उनका जीवन निर्वाह हो सके. तीन तलाक़ सिर्फ और सिर्फ घातक रूप में ही सामने आता रहा है.
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