एनआरआई से जुड़े टैक्स नियम | NRIs New Tax Rules
टैक्स एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही आम आदमी ही नहीं जानकार भी घबराने लगते हैं। कारण है कि आयकर कानूनों में इतने सारे पेंच है कि किसी के लिए भी इन्हें समझना टेढ़ी खीर साबित हो सकती है।..
ऐसे ही मौकों पर टैक्स गुरू अपनी जानकारी और अनुभव का खजाना लेकर आते हैं और करते हैं टैक्स से जुड़ी मुश्किलों को दूर। आज आपके टैक्स से जुड़े मुश्किल सवालों का जवाब देंगे टैक्स एक्सपर्ट मुकेश पटेल। आज फोकस रहेगा प्रवासी भारतीयों से जुड़े टैक्स नियमों पर।
एक सामान्य भारतीय नागरिक के मुकाबले प्रवासी भारतीय के लिए टैक्स नियमों में क्या अंतर होता है?
एनआरआई का मतलब होता है नान-रेसीडेंसियल इंडियन। कई लोग ये मानते हैं कि एनआरआई में सिर्फ भारतीय नागरिक शामिल होते है, लेकिन ये बात गलत है। एनआरआई होने के लिए भारतीय नागरिक होना जरूरी नहीं है। भारतीय मूल के व्यक्ति यानि पीआईओ को भी एनआरआई का दर्जा हासिल होता है। पीआईओ में विदेश में रह रहे भारतीय मूल के तीन पीढियों के लोग शामिल होते हैं।
फेमा के तहत सभी एनआरआई को टैक्स नियमों में विशेष छूट मिलती है। भारत में रहने की अवधि के आधार पर आयकर विभाग रेसिडेंशियल स्टेटस तय करता है। फेम में देखा जाता है कि किसी व्यक्ति का विदेश में रहने का मकसद क्या है। कोई कारोबारी अगर साल में 182 दिन से ज्यादा भारत में रहे तो उसे रेसिडेंट माना जाता है। 7 साल में 2 साल से ज्यादा भारत में रहने पर आरओआर का दर्जा मिलता है। बता दें की आरओआर की पूरी दुनिया की आय पर इनकम टैक्स लगता है।
एनआरआी की सिर्फ भारत में होने वाली आय पर टैक्स लगता है। जबकि उसकी भारत के बाहर से होने वाली आय पर टैक्स नहीं लगता। आर एनओआर के लिए टैक्स के नियम एनआरआई की तरह ही होते हैं।
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