दीवाली मनाने के 6 रोचक तथ्य
हम दीवाली क्यों मनाते है, आखिर इसके पीछे क्या कारण है, कुछ लोगों का कहना है दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या वापस लौटे थे, उनके अयोध्या आने की खुशी में दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। दीपावली मनाने के पीछे अलग अलग राज्यों और धर्मो में अलग-अलग कारण व्याप्त हैं।
धर्म कोई भी हो मगर इस दिन सभी के मन में उल्लास और प्रेम का दीप जलता है। हम सभी अपने घरो की साफ-सफाई करते हैं, घरों में कई पकवान बनते हैं। हम आपको बताते है 7 पौराणिक और ऐतिहासिक कुछ ऐसे रोचक तथ्यों के बारे में जिसकी वजह से न केवल हिंदू बल्कि पूरी दुनिया के लोग दीपावली के त्योहार को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं।
भगवान राम की विजय- हिंदू धर्म में मान्यता है कि दीपावली के दिन आयोध्या के राजा श्री राम ने लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध किया था, वध करने के बाद वे अयोध्या वापस लौटे थे। उनके अयोध्या लौटने की खुशी में वहां के निवासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था और खुशी मनाई थी। उसी दिन से दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा ।
श्री कृष्ण ने किया था नरकासुर का वध- दीवाली के एक दिन पहले राक्षस नरकासुर ने 16,000 औरतों का अपहरण कर लिया था तब भगवान श्री कृष्ण ने असुर राजा का वध करके सभी औरतों का मुक्त किया था, कृष्ण भक्तिधारा के लोग इसी दिन को दीपावली के रूप में मनाते हैं।
विष्णु जी का नरसिंह रुप - एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विंष्णु ने नरसिंह रुप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था इसी दिन समुद्रमंथन के दौरान लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए थीं।
सिक्खों के लिए है खास दिन- इस दिन सभी सिक्ख अपने तीसरे गुरू अमर दास जी का आर्शिवाइ लेने के लिए इक्ट्ठा होते हैं। 1577 में इसी दिन स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था, और इसके अलावा 1619 में कार्तिक अमावस्या के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था।
जैनियो के लिए खास दिन- जैन धर्म में दीपावली के दिन का काफी बड़ा महत्व है, इस दिन आधुनिक जैन धर्म की स्थापना के रूप में मनाश्स जाता है इसके अलावा दीवाली के दिन जैनियो को निर्वाण भी प्राप्त हुआ था।
आर्य समाज की स्थापना के रूप में- इस दिन आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया था। इसके अलावा मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा दीप जलाकर लटकाया जाता है। वहीं शाह आलम द्वितीय के समय में पूरे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था इस मौके पर हिन्दू और मुसलमान दोनों मिलकर पूरे हर्ष और उल्लास के साथ त्योहार मनाते थे।
इतिहास के पन्नों में दर्ज आकड़ों के अनुसार 500 ईसा वर्ष पूर्व मोहनजोदड़ो सभ्यता में खुदाई के दौरन मिट्टी की एक मूर्ति में देवी के दोनों हाथों में दीप जलते दिखाई देते हैं। जिससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस समय भी दीपावली का त्यौहार मनाया जाता था।