गणेश चतुर्थी - श्री गणेश जी का लेखक रूप स्मरण करने योग्य
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पूरे देश में गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जा रहा है। देश के लगभग सभी शहरों और गांवों में उनकी जगह जगह मूर्तियों की स्थापना की जा रही है। इस अवसर पर गणेशोत्सव मनाया जाता है जिस पर अनेक प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। गणेश उत्सव के दौरान होने वाले कार्यक्रमों में लोग बहुत उत्साह से शामिल होते हैं।
भगवान श्रीगणेश ही का हमारे जीवन में कितना धार्मिक महत्व यह इसी बात से समझा जा सकता है कि किसी भी शुभ कार्य के प्रारंभ में उनका स्मरण किया जाता है। इसका कारण उनको भगवान शिव तथा अन्य देवताओं द्वारा दिया गया है वह वरदान है जो उनको अपने बौद्धिक कौशल के कारण मिला था।
एक समय देवताओं में अपनी श्रेष्ठता को लेकर होड़ लगी थी। श्रेष्ठ देवता के चयन के लिये यह तय किया गया कि जो इस प्रथ्वी का दौरा सबसे पहले कर लौटेगा वही उसका दावेदार होगा। सारे देवतागण उसके लिये दौड़ पड़े मगर श्री गणेश महाराज अपने माता पिता के पास बैठे अपनी लीला करते रहे। जब बाकी देवताओं के वापस लौटने की संभावना देखी तो तत्काल उठे और अपने माता पिता भगवान शिव और पार्वती की प्रदक्षिणा कर घोषणा की कि उन्होंने तो सारी सृष्टि का दौरा कर लिया क्योंकि भगवान शिव और माता पार्वती ही उनके लिये सृष्टि स्वरूप हैं। उनके इस तर्क को स्वीकार किया गया और यह आशीर्वाद दिया गया कि जो मनुष्य किसी भी शुभ कर्म के प्रारंभ में उनकी छबि की स्थापना करेगा उसे उसका अच्छा फल प्राप्त होगा। उसके बाद से उनको शुभफलदायक माना जाने लगा।
मगर उनका यह रूप सकाम भक्तों के लिये ही सर्वोपरि है जबकि निष्काम तथा ज्ञानी भक्त उनको महाभारत ग्रंथ के लेखक के रूप में भी उनकी याद करते हैं जिसमें सम्मिलित श्रीगीता संदेश बाद में भारतीय अध्यात्म का एक महान स्त्रोत बन गया और जिसा आज पूरा विश्व लोहा मानता है। वैसे महाभारत के रचनाकार तो ऋषि वेदव्यास जी है पर उसकी रचना श्री गणेश महाराज की कलम से ही हुई है।
श्री गणेशजी का चेहरा हाथी का है और सवारी चूहे की है जो कि उनके भक्तों में विनोद का भाव भी पैदा करता है। उनको यह चेहरा उनके पिता भगवान शिव ने ही दिया जिन्होंने क्रोधवश उसे काट दिया था। एक बार माता पार्वती जी नहा रही थी और उन्होंने अपने पुत्र बालक गणेश को यह निर्देश दिया कि वह दरवाजे पर बैठकर पहरा दें और किसी को घर के अंदर न आने दें। आज्ञाकारी बालक गणेश जी वहीं जम गये। थोड़ी देर बात भगवान शिव आये तो श्री गणेश जी ने उनको अंदर जाने से रोका। पिता पुत्र में विवाद हुआ और भगवान शिव ने अपने ही बेटे का सिर अपने फरसे से काट दिया। बाद में उनको पछतावा हुआ और फिर उनको हाथी का सिर लगाकर पुनः जीवन प्रदान किया गया।
भगवान श्रीगणेश का चरित्र बहुत विशाल है। जब श्री वेदव्यास महाभारत की रचना कर रहे थे तब उन्होंने उसके लेखन के लिये श्रीगणेश जी का स्मरण किया। लिखने के लिये श्रीगणेश जी यह शर्त रखी कि जब तक वेदव्यास की वाणी चलती रहेगी वह लिखते रहेंगे और जब वह रुक जायेगी तो लिखना बंद कर देंगे।
हमारे अध्यात्म में अनेक भगवान हैं मगर श्री गणेश जी की हस्तलिपि में लिखी गयी श्री मद्भागवत गीता को एक अनुपम ग्रंथ है जिसके कारण सकाम था निष्काम दोनों ही प्रकार के भक्तों में उनको श्रेष्ठ माना जाता है। सकाम भक्ति तथा राजस भाव वाले मनुष्य श्रीमद्भागवत गीता का पूज्यनीय तो मानते हैं पर उसके ज्ञान से यह सोचकर घबड़ाते हैं कि वह उनको सांसरिक कर्म से विरक्त कर देगी। यह उनका वहम है। जबकि इसके विपरीत श्रीमद्भागवत गीता तो निष्काम भक्ति तथा निष्प्रयोजन दया के साथ ही देह, मन और विचारों में शुद्धता लाने का मंत्र बताने वाला एक महान ग्रंथ है और हृदय में पवित्र भाव लाकर उसका अध्ययन करने से जीवन के ऐसे रहस्य हमारे सामने प्रकट हो जाते हैं जो हमारे ज्ञान चक्षु खोल देते हैं। इस संसार वह स्वरूप हमारे सामने आता है जो सामान्य रूप से नहीं दिखता। मूर्तिमान श्रीगणेश जी का वह अमूर्तिमान लेखकीय स्वरूप उन ज्ञानियों को बहुत लुभाता है जो श्री गीता संदेश का महत्व समझते हैं।
यहां प्रस्तुत है श्रीगणपत्यथर्वशीर्षम् के श्लोक आधार पर उनके स्मरण के लिये मंत्र।
ॐ (ओम) नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि। त्वमेव केवलं कर्तासि। त्वमेव धर्तासि। त्वमेव केवलं हर्तासि। त्वमेव सर्व खल्विदं ब्रह्मासि। त्वं साक्षादात्मासि नित्यम्
हिन्दी में भावार्थ- गणपति जी आपको नमस्कार है। आप ही प्रत्यक्ष तत्व हो, केवल आप ही कर्ता, धारणकर्ता और संहारकर्ता हो। आप ही विश्वरूप ब्रह्म हो और आप ही साक्षात् नित्य आत्मा हो।
ऋतं वच्मिं। सत्यं वच्मि।।
हिन्दी में भावार्थ- यथार्थ कहता हूं। सत्य कहता हूं।