जब आप यहां आएंगे, तो श्रीकृष्ण के दर्शन अवश्य हो जाएंगे
आज चलते हैं कृष्ण के धाम । कृष्ण अर्थात प्रेम की मूरत । कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन जन्माष्टमी मनाई जा रही है। जन्माष्टमी के त्यौहार में भगवान विष्णु की, श्री कृष्ण के रूप में, उनकी जयन्ती के अवसर पर प्रार्थना की जाती है। हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार कृष्ण का जन्म, मथुरा के असुर राजा कंस का अंत करने के लिए हुआ था। कृष्ण ने ही संसार को “गीता” का ज्ञान भी दिया जो हर इंसान को भय मुक्त रहने का मंत्र देती है। इस उत्सव में कृष्ण के जीवन की घटनाओं की याद को ताजा करने व राधा जी के साथ उनके प्रेम का स्मरण करने के लिए रास लीला की जाती है। तो आज चलिए हम चलते हैं कृष्ण की नगरी जो अदभूत है, जहां हमें कृष्ण के होने का अनुभव हाेता है।
मथुरा का सौन्दर्य
जन्माष्टमी वैसे तो पूरी भारत में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है लेकिन कृष्ण के अपने घर यानी मथुरा में इसकी उमंग का रंग देखते ही बनता है। यहां का जन्माष्टमी उत्सव इतना प्रसिद्ध है कि विदेशों से लोग खास इसे देखने आते हैं। मथुरा में ही भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर मंदिर है जहां कृष्ण भगवान ने द्वापर युग में जन्म लिया था। इसके साथ ही जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में मथुरा में गौरांग लीला और रामलीला होती है और ठाकुरजी के नए वस्त्रों को तैयार किया जाता है। मान्यता है कि ठाकुर जी का श्रृंगार सभी देवों से अदभुत होता है।
भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ा स्थली वृन्दावन
वृंदावन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिला के अंतर्गत आता है। यह भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ा स्थली था। वह अपने सखाओं के साथ गाय चराने और खेलने के लिए यहां आया करते थे। यहां पर मंदिरो की संख्या काफी अधिक है।पूरे वृंदावन में लगभग पांच हजार मंदिर है। क्षेत्रफल के अनुपात में यह संख्या काफी अधिक है। यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण को काफी प्रिय था। ज्यादा लीलाये भगवान कृष्ण ने यही पर ही रचाई थीं।
मथुरा और वृंदावन आपस में अंर्तसंबंधित है।
कहा जाता है भगवान कृष्ण वृंदावन छोड़कर नही गये है वह आज भी वृंदावन में है। कृष्ण भक्तो के लिए यह महत्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक व्यक्ति की यह इच्छा होती है कि वह देह त्याग से पूर्व एक बार वृंदावन जरूर आये।भगवान श्रीकृष्ण ने अपना अधिकांश समय यहीं पर व्यतीत किया था।इसी कारण वृंदावन को अन्य धार्मिक स्थलो से अलग माना जाता है। चैतन्य महाप्रभु का कहना था कि वृंदावन वह धाम है, जहां पर कण-कण में भगवान कृष्ण बसते है। यहां के पेड़ो, पत्तो आदि के अन्दर भी भगवान श्रीकृष्ण का वास है। इसे प्रधान धाम भी कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति यहां पर आकर ही जीवन के सत्य को जान पाता है। वृंदावन में आकर सभी को आध्यात्मिक आंनद की प्राप्ति होती है।
वृंदावन में बांके बिहारी जी का एक भव्य मंदिर है। इस मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की एक प्रतिमा है।
इस प्रतिमा के विषय में मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात् श्री कृष्ण और राधा समाए हुए हैं। इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा कृष्ण के दर्शन का फल मिल जाता है। इस प्रतिमा के प्रकट होने की कथा और लीला बड़ी ही रोचक और अद्भुत है इसलिए हर साल मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को बांके बिहारी मंदिर में बांके बिहारी प्रकटोत्सव मनाया जाता है।
धार्मिक नगरी वृन्दावन में निधिवन एक अत्यन्त पवित्र, रहस्यमयी धार्मिक स्थान है. मान्यता है कि निधिवन में भगवान श्रीकृष्ण एवं श्रीराधा आज भी अर्द्धरात्रि के बाद रास रचाते हैं। रास के बाद निधिवन परिसर में स्थापित रंग महल में शयन करते हैं। रंग महल में आज भी प्रसाद (माखन मिश्री) प्रतिदिन रखा जाता है।
शयन के लिए पलंग लगाया जाता है। सुबह बिस्तरों के देखने से प्रतीत होता है कि यहां निश्चित ही कोई रात्रि विश्राम करने आया तथा प्रसाद भी ग्रहण किया है। लगभग दो ढ़ाई एकड़ क्षेत्रफल में फैले निधिवन के वृक्षों की खासियत यह है कि इनमें से किसी भी वृक्ष के तने सीधे नहीं मिलेंगे तथा इन वृक्षों की डालियां नीचे की ओर झुकी तथा आपस में गुंथी हुई प्रतीत हाते हैं।
निधिवन परिसर में ही संगीत सम्राट एवं धुपद के जनक श्री स्वामी हरिदास जी की जीवित समाधि, रंग महल, बांके बिहारी जी का प्राकट्य स्थल, राधारानी बंशी चोर आदि दर्शनीय स्थान है. निधिवन दर्शन के दौरान वृन्दावन के पंडे-पुजारी, गाईड द्वारा निधिवन के बारे में जो जानकारी दी जाती है, उसके अनुसार निधिवन में प्रतिदिन रात्रि में होने वाली श्रीकृष्ण की रासलीला को देखने वाला अंधा, गूंगा, बहरा, पागल और उन्मादी हो जाता है ताकि वह इस रासलीला के बारे में किसी को बता ना सके।
ब्रज की होली
रंगों का त्योहार होली यों तो पूरे देश में उत्साह से मनाया जाता है लेकिन कान्हा की नगरी मथुरा में इसका अंदाज ही कुछ अलग है। होली के हुरियारों पर कहीं डंडों की मार पड़ती है तो कहीं कोड़ों से पीटा जाता है। गुलाल और रंगों के साथ ही कीचड़ के थपेड़े हुरियारों को झेलने पड़ते हैं। लेकिन इस मार में ही अजब सा प्यार है। यही कारण है कि बृज की होली का खुमार पूरे देश में चढ़ता है और हर साल लाखों लोग इस त्योहार को मनाने यहां आते हैं।
होली के त्योहार की शुरुआत मंदिरों में बसंत पंचमी से हो जाती है। मंदिरों में भगवान कृष्ण को गुलाल लगाने के बाद रोजाना भक्त होली खेलते हैं। यह क्रम लगातार चलता है। यह जोश फाल्गुन की नवमी तक पूरे चरम पर पहुंच जाता है। इसी दिन विश्व प्रसिद्ध बरसाने की होली मनाई जाती है। इस बार बरसाने की होली आठ मार्च को मनाई जाएगी। यहां बरसाने की हुरियारिनों से होली खेलने नंदगांव के हुरियारे आते हैं। हुरियारिन जहां डंडे हाथों में लेकर तैयार रहती हैं वहीं हुरियारे हाथ में ढाल लिए रहते हैं। गुलाल की बौछार के बीच जब लाठियों की मार पड़ती है तो अच्छे-अच्छे खिलाड़ी भी दुम दबाकर भागते नजर आते हैं। ढाल से बचते-बचाते तमाम हुरियारे लाठी खा भी जाते हैं। शाम को ये हुरियारे श्रीजी मंदिर पहुंचते हैं और यहां राधारानी के दर्शन के बाद मार खाने को तैयार हो जाते हैं। मंदिर से रंगीली गली तक लट्ठामार होली का दृश्य देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक हर साल बरसाने पहुंचते हैं। यहां लट्ठ- मार होली पर ही ढोल नगाड़ों के साथ समाज गायन भी चलता है। इसके साथ ही समाज गायन ब्रज के लगभग सभी मंदिरों में शुरू हो जाता है।
फाल्गुन की नवमी से शुरू होने वाला यह जश्न फिर थमने का नाम नहीं लेता। मंदिरों में गुलाल और रंग बिखेरा जाता है तो सड़कों पर गुजरने वाले भी इस रंग में मस्त हो जाते हैं। वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर हो या कोई और, होली के रंग सभी जगह बिखरते हैं। एकादशी को ही कृष्ण जन्मभूमि पर मथुरा में भी होली होती है। दोपहर दो बजे से यहां पहले सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं फिर लट्ठ मार होली। यहां कार्यक्रम के दौरान ही फूलों की होली भी लोगों को महका देती है। मथुरा में विश्राम घाट के नजदीक द्वारिकाधीश मंदिर पर यों तो रोजाना होली खेली जा रही है पर यहां का असली आकर्षण एकादशी की कंुज होली है। इस दिन मंदिर में पेड़ों की डंडियों से कुंज बनाकर बीच में पानी के फव्वारे लगाए जाते हैं। इन कुंज और फव्वारों के साथ ही होली के रंग समूचे मंदिर में बिखर जाते हैं।
देखने लायक है राधा का बरसाना ये सभी जानते हैं कि राधा रानी का गाँव बरसाना है और यहाँ आने के लिए श्री कृष्ण भी तरसा करते थे। बरसाना मथुरा से 42 कि॰मी॰, कोसी से 21 कि॰मी॰, छाता तहसील का एक छोटा-सा गाँव है। बरसाना राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान था। यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा का जन्म हुआ था। दिल्ली से 114 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मथुरा जिले में बरसाना की होली पूरे विश्व भर में लोकप्रिय है। बरसाने में होली का उत्सव 45 दिनों तक मनाया जाता है जिसे देखने के लिए पर्यटक भारी संख्या में यहां आते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर भी यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है।
बरसाना में राधा रानी का विशाल मंदिर है, जिसे लाड़ली महल के नाम से भी जाना जाता है। यहां सुबह-शाम भक्तों का तांता लगा रहता है। इस मंदिर में स्थापित राधा रानी की प्रतिमा को ब्रजाचार्य श्रील नारायण भट्ट ने बरसाना स्थित ब्रहृमेश्वर गिरि नामक पर्वत में से संवत् 1626 की आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकाला था। इस मंदिर में दर्शन के लिए 250 सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। यहां राधाष्टमी के अवसर पर भाद्र पद शुक्ल एकादशी से चार दिवसीय मेला जुड़ता है। इस मंदिर का निर्माण आज से लगभग 400 वर्ष पूर्व ओरछा नरेश ने कराया था। यहां की अधिकांश पुरानी इमारतें 300 वर्ष पुरानी हैं। जहां पर यह मंदिर स्थित है वहां से पूरा बरसाना गांव दिखता है। बरसाना के चारों ओर अनेक प्राचीन व पौराणिक स्थल हैं. यहां स्थित जिन चार पहाड़ों पर राधा रानी का भानुगढ़, दान गढ़, विलासगढ़ व मानगढ़ हैं, वे ब्रह्मा के चार मुख माने गए हैं। इसी तरह यहां के चारों ओर सुनहरा की जो पहाड़ियां हैं उनके आगे पर्वत शिखर राधा रानी की अष्टसखी रंग देवी, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चंपकलता, चित्रा, तुंग विद्या व इंदुलेखा के निवास स्थान हैं। यहां स्थित मोर कुटी, गहवखन व सांकरी खोर आदि भी अत्यंत प्रसिद्ध हैं। सांकरी खोर दो पहाड़ियों के बीच एक संकरा मार्ग है। कहा जाता है कि बरसाने की गोपियां जब इसमें से गुजर कर दूध-दही बेचने जाती थीं तो कृष्ण व उनके ग्वाला-बाल सखा छिपकर उनकी मटकी फोड़ देते थे और दूध-दही लूट लेते थे।
कैसे पहुंचें
बरसाना दिल्ली-आगरा राजमार्ग पर स्थित कोसीकलां से 7 किमी और मथुरा से 50 किमी जबकि गोवर्धन 23 किमी की दूरी पर स्थित है। आप बस, कार या टैक्सी के जरिए यहां पहुंच सकते हैं। बरसाना के लिए दिल्ली, आगरा और मथुरा से नियमित रूप से बसें चलाई जाती हैं। अगर आप ट्रेन के जरिए बरसाना पहुंचाना चाह रहे हैं तो यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन कोसीकलां है। बरसाना में रहने के लिए काफी संख्या में धर्मशालाए मौजूद हैं।
बरसाना गाँव लट्ठमार होली के लिये सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है जिसे देखने के लिये हजारों भक्त एकत्र होते हैं। बसंत पंचमी से बरसाना होली के रंग में सरोबार हो जाता है।