उत्सव और उमंग का पर्व लोहड़ी | Indian Festival
आज लोहड़ी का पर्व है और कल मकर सक्रांति। इन दोनों उत्सवों को मनाने की जोरदार तैयारी हो चुकी है। परिवार के सदस्यों के साथ लोहड़ी पूजन की सामग्री जुटाकर शाम होते ही विशेष पूजन के साथ आग जलाकर लोहड़ी का जश्न मनाया जाएगा। इस उत्सव को पंजाबी समाज जोशो-खरोश से मनाता है। लोहड़ी मनाने के लिए लकड़ियों की ढेरी पर सूखे उपले भी रखे जाते हैं। समूह के साथ लोहड़ी पूजन करने के बाद उसमें तिल, गुड़, रेवडी एवं मूँगफली का भोग लगाया जाता है।
ढोल की थाप के साथ गिद्दा और भाँगड़ा नृत्य इस अवसर पर विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं। राजेन्द्र नागपाल कहते हैं कि पंजाबी समाज में इस पर्व की तैयारी कई दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। इसका संबंध मन्नत से जोड़ा गया है अर्थात् जिस घर में नई बहू आई होती है या घर में संतान का जन्म हुआ होता है तो उस परिवार की ओर से खुशी बाँटते हुए लोहड़ी मनाई जाती है। सगे-संबंधी और रिश्तेदार उन्हें आज के दिन विशेष सौगात के साथ बधाइयाँ भी देते हैं।
गोबर के उपलों की माला बनाकर मन्नत पूरी होने की खुशी में लोहड़ी के समय जलती हुई अग्नि में उन्हें भेंट किया जाता है। इसे चर्खा चढ़ाना कहते हैं।
लोहड़ी एवं मकर सक्रांति एक-दूसरे से जुड़े रहने के कारण सांस्कृतिक उत्सव और धार्मिक पर्व का एक अद्भुत त्योहार है। आज जहाँ शाम के वक्त लकड़ियों की ढेरी पर विशेष पूजा के साथ लोहड़ी जलाई जाएगी, वहीं कल प्रातः मकर सक्रांति का स्नान करने के बाद उस आग से हाथ सेकते हुए लोग अपने घरों को आएँगे। इस प्रकार लोहड़ी पर जलाई जाने वाली आग सूर्य के उत्तरायण होने के दिन का पहला विराट एवं सार्वजनिक यज्ञ कहलाता है।
इस उत्सव का एक अनोखा ही नजारा होता है। लोगों ने अब समितियाँ बनाकर भी लोहड़ी मनाने का नया तरीका निकाल लिया है। ढोल-नगाड़ों वालों की पहले ही बुकिंग कर ली जाती है। अनेक प्रकार के वाद्य यंत्रों के साथ जब लोहड़ी के गीत शुरू होते हैं तो स्त्री-पुरुष, बूढ़े-बच्चे सभी स्वर में स्वर, ताल में ताल मिलाकर नाचने लगते हैं। 'ओए, होए, होए, बारह वर्षी खडन गया सी, खडके लेआंदा रेवड़ी...,' इस प्रकार के पंजाबी गाने लोहड़ी की खुशी में खूब गाए जाएँगे।
तिलक राज खट्टर कहते हैं कि लोहड़ी पर शाम को हमारे परिवार के लोगों के साथ रिश्तेदार भी इस उत्सव में शामिल होंगे। यद्यपि बधाई के साथ अब तिल के लड्डू, मिठाई, ड्रायफूट्स आदि देने का रिवाज भी चल पड़ा है फिर भी रेवड़ी और मूँगफली का विशेष महत्व बना हुआ है। इसीलिए कई किलो रेवड़ी और मूँगफली पहले से ही खरीद कर रख दी गई है। बड़े-बुजुर्गों के चरण छूकर सभी लोग बधाई के गीत गाते हुए खुशी के इस जश्न में शामिल होंगे।
राजेन्द्र तनेजा कहते हैं कि ढोल की थाप के साथ गिद्दा नाच में हमारे कई रिश्तेदार सम्मिलित होते हैं। शाम होते ही उत्सव शुरू हो जाता है और देर रात तक चलता ही रहता है। इस पर्व का एक यह भी महत्व है कि बड़े-बुजुर्गों के साथ उत्सव मनाते हुए नई पीढ़ी के बच्चे अपनी पुरानी मान्यताओं एवं रीति-रिवाजों का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, ताकि भविष्य में भी पीढ़ी दर पीढ़ी उत्सव चलता ही रहे।