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वास्तु शास्त्र टिप्स | Special Vaastu Shastra Tips For Your Home in Hindi.
पांच तत्वों का विवेचन | Description of Five Elements.
पृथ्वी (भूमि)
लाखों वर्ष पूर्व सूर्य के वर्तुलाकार (घूमते हुए) कक्ष से कुछ ग्रह बाहर निकल गये थे। इनसे नव ग्रहों तथा अन्य उपग्रहों का निर्माण हुआ। ये सभी ग्रह और उपग्रह, आपसी आकर्षण के कारण, सूर्य के चारों ओर अपने-अपने विशेष ग्रह पथों में भ्रमण करने लगे। कुछ समय पश्चात् सूर्य से तृतीय स्थान पर स्थित पृथ्वी ज्यों ही सूर्य से दूर हटी, वह ठंडी पड़ने लगी। उससे प्रस्फुटित (निकलने वाली) ज्वालामुखी से पर्वत और घाटियों का निर्माण हुआ। पृथ्वी के गर्भ में निश्चित स्थान पर दक्षिण-उत्तर में स्थित चुंबक तथा पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी पृथ्वी के सभी सजीव और निर्जिव पदार्थों पर अपना प्रभाव रखती है। अतः पृथ्वी का विशेष महत्व है। पृथ्वी तथा अन्य तत्वों से जीवनक्रम आरंभ हुआ। इसलिए पृथ्वी को माता कहते है। भवन निर्माण करते समय ‘भूमि पूजन‘ का वास्तविक उद्देश्य यही है। पर्यावरण तथा वायुमंडल से बाहर की अनंत शक्तियों से पृथ्वी का घनिष्ठ संबंध है। संपूर्ण सौर मंडल में पृथ्वी ग्रह पर जीवन है। संभव है कि ब्रह्मांड के अन्य सौर मंडलों में पृथ्वी जैसे कुछ ग्रहों पर हमारी पृथ्वी से भी अधिक शक्तिशाली तथा अधिक जागृत रचना (जीवित रचना) हो! पृथ्वी में स्पर्श, शब्द (ध्वनि), रस, रूप के अतिरिक्त ‘गंध‘ रूपी विशेष गुण विद्यमान है।
उपयुक्त पांच तत्वों को यथोचित मान और स्थान देते हुए मानव को आरोग्य, उन्नति, समृद्धि तथा मन की शांति हेतु चेष्टा करनी चाहिए। संपूर्ण विश्व के वास्तु शास्त्र का पंच महाभूतों से घनिष्ठ संबंध है। अतः हमें इन पांच तत्वों से प्राप्य स्वर्गीय आनंद को प्राप्त करने में कमी नहीं छोड़नी चाहिए।
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