भूमि का चयन | Selection of the Land.
» भूमि के आसपास का वातावरण:
शस्तौषधिद्रुमलता मधुरा सुगंधा
स्निग्धा समा न सुषिरा च मही नराणाम्।
अप्यध्वनिश्रमविनोदमुपागतानां
धते श्रियं किमुत शाश्वमन्दिरेषु।। - बृहत्संहिता
यदि भूमि पर यज्ञीय वृक्ष, सुगंधित वृक्ष चरण इत्यादि हो, तो वह भूमि ब्राह्मणों के लिए श्रेष्ठ, यदि भूमि पर कांटेदार वृक्ष हो, तो क्षत्रियों के लिए श्रेष्ठ, यदि भूमि पर चूहों इत्यादि के बिल हो, धान्य बिखरा हुआ हो, फलदार वृक्ष हो, तो वैश्या वर्ग एवं सभी वर्गों के लिए श्रेष्ठ, भूमि पर गंदगी, कीचड़, विष्ठा एवं जहरीले प्राणियों का निवास हो, तो वह भूमि शूद्र वर्ग के लिए श्रेष्ठ है।
श्रेव्तासृक् पीतकृष्णा हयगजनिनदा षड्रसा चैकवणां,
गोधान्याम्भोजगन्धोपलतुषरहितवाकप्रतीच्युन्नता या।
पूर्वो दग्वारिसारा वरसुरभिमसा शूलहीनास्थिवज्र्या,
सा भूमिः सर्वयोग्या कणदररहिता सम्मताद्यैर्मुनीन्द्रैः।। - मयमतम् 201
सफेद (लहू की तरह) लाल, पीली, घोड़ों की हिनहिनाहट एवं हाथियों की चिंघाड़ से भरी हुई, छह प्रकार के रसों से संपन्न, एक ही वर्ण वाली, गाय-बैल आदि पशु, धान्य एवं कमल की सुगंध से युक्त, कंकड़ और छिलकों से रहित, दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर उठी (उभर कर आई) हुई, उत्तर या पूर्व में नदी की सीमा से बंधी हुई, उत्तम सुरभि के समान, पैने पदार्थ एवं अस्थियों से रहित, जहां बीज आदि सूख नहीं जाते, ऐसी भूमि सबके निवास के लिए योग्य है, ऐसा प्राचीन श्रेष्ठ मुनियों का कहना है।