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प्रवासी भारतीयों के माध्यम से भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर फैलाने का कार्य | NRI, OCI & Their Contribution Spread Indian Culture


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9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मान्यता दी गई है क्योंकि इसी दिन 1915 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और अंततः दुनिया भर में प्रवासी भारतीयों और औपनिवेशिक शासन के तहत लोगों के लिए और भारत के सफल स्वतंत्रता संघर्ष के लिए प्रेरणा बने। यह दिन हर साल प्रवासी भारतीय दिवस (पीबीडी) सम्मेलन के रूप में मनाया जाता है।..

विश्व में प्रवासी भारतीय की विशेष पहचान

विश्व में प्रवासी भारतीय अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए हैं। आज भारत के बाहर कई देशों के शासनाध्यक्ष भी भारतीय हैं। इनमें आयरलैंड के मराठी मूल के और पुर्तगाल के गोवा मूल के प्रधानमंत्री हालिया नाम हैं। प्रवासी भारतीय दिवस नौ जनवरी 1915 को महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में प्रवासी भारतीयों की संख्या करीब 3 करोड़ 12 लाख है। इनमें से एक करोड़ 30 लाख उनकी है जो एक समय गिरमिटिया कहे जाते थे। ये वे प्रवासी भारतीय हैैं जिनके पूर्वजों को अंग्रेज शासक मजदूरी करने के लिए मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद आदि देशों में ले गए थे। इनमें एक बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश और बिहार से गए लोगों की थी। इनकी खासियत यह है कि इन्होंने खुद को अपनी पुरानी परंपरा यानी भारतीय संस्कृति से जोड़े रखा है। वैसे तो आजादी के बाद ही बनारसी दास चतुर्वेदी ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से एक प्रवासी भारतीय केंद्र बनाने का सुझाव दिया था, लेकिन यह संकल्पना बहुत बाद में पूरी हो सकी। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 2003 से प्रवासी भारतीय सम्मेलन की शुरुआत की। इसके बाद मनमोहन सिंह सरकार ने अलग से एक प्रवासी कार्य मंत्रालय बनाया। इसे वर्तमान सरकार ने विदेश मंत्रालय का अंग बना लिया है। अब तक एक दर्जन से अधिक प्रवासी भारतीय सम्मेलन हो चुके हैं। ये भारत के अलग-अलग प्रदेशों में होते रहे हैं ताकि विश्व में बसे सभी प्रवासी भारतीयों की भाषाई एवं प्रांतीय अस्मिता भी उन्हें भारत से जुड़ने के लिए प्रेरित करे।

प्रवासी भारतीय भारत के साथ जुड़ें

भारत सरकार की प्रवासी भारतीयों से दो अपेक्षाएं हैं। एक तो वे भारत के साथ अपनी जड़ों से जुड़ें और साथ ही अपने अनुभवों का लाभ भारत को समृद्ध करने में प्रदान करें। इसी प्रकार प्रवासी भारतीयों की भी भारत से कुछ अपेक्षाएं है। गिरमिटिया लोगों के वंशज भारतीयों की समस्या कुछ अलग है तो एनआरआइ वर्ग वाले प्रवासी भारतीयों की अलग। प्रवासी भारतीयों का तीसरा समूह वह है जो खाड़ी देशों में कामगार के रूप में है। इस तरह भारत सरकार को तीन प्रकार के प्रवासियों को अलग-अलग तरह से संतुष्ट एवं समायोजित करना पड़ता है।

भारत के प्रवासी ही सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा स्वदेश भेजते हैं

प्रवासी भारतीयों का यह तीसरा वर्ग विदेशी मुद्रा का एक बड़ा स्रोत है। विश्व बैैंक के अनुसार भारत के प्रवासी ही सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा स्वदेश भेजते है। चीन के प्रवासी विदेशी मुद्रा स्वदेश भेजने के मामले में दूसरे नंबर पर चले गए हैैं। इन तीन तरह के प्रवासी भारतीयों की समस्याएं अलग-अलग तरह की है। इन सभी का ख्याल रखना और उनकी समस्याओं का निराकरण करना भारत सरकार की जिम्मेदारी है। विश्व में सबसे बड़ा डायस्पोरा होने के कारण अब समय आ गया है कि सरकार अलग-अलग देशों के प्रवासी भारतीयों से संवाद स्थापित करे और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए विश्व प्रवासी भारतीय सचिवालय जैसे केंद्र की स्थापना करे। इसी के साथ उसे दुनिया भर के प्रवासी भारतीयों को एक सूत्र में पिरोने का भी काम करना होगा ताकि वे भारत की प्रतिष्ठा और पहचान बढ़ाने में सहायक हो सकें तथा एक-दूसरे की मदद भी कर सकें।

प्रवासी भारतीयों की समस्याओं के समाधान के लिए अलग सचिवालय हो

वैसे तो भारत सरकार के अलग-अलग मंत्रालय प्रवासी भारतीयों की समस्याओं का समाधान करते है, लेकिन कई बार उनमें आपसी समन्वय न हो पाने के कारण मुश्किल पेश आती है। इसी कारण एक ऐसे केंद्र या सचिवालय की अपेक्षा है जो प्रवासी भारतीयों की हर तरह की समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हो सके, चाहे वे आर्थिक हों या सामाजिक।

भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर फैलाने का कार्य

भारत सरकार को प्रवासी भारतीयों के जरिये भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर फैलाने के लिए कुछ अतिरिक्त कार्य करना चाहिए। प्रवासी भारतीयों के सहयोग से दीवाली जैसे पर्व को दुनिया भर में वैसे ही मनाया जा सकता है जैसे क्रिसमस मनाया जाता है। ऐसी कोई पहल प्रवासी भारतीयों के विभिन्न संगठन भी कर सकते हैं। हालांकि अभी भी कई देशों में प्रवासी भारतीय होली, दीवाली के साथ अन्य अनेक पर्व मनाते हैं, लेकिन आम तौर पर उनमें दूसरे लोगों अर्थात गैर भारतीयों की भागीदारी कम ही होती है। क्या यह आवश्यक नहीं कि प्रवासी भारतीयों के संगठन सुख-समृद्धि के पर्व दीवाली को सारी दुनिया से परिचित कराएं? इसी के साथ वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा से भी दुनिया को नए सिरे से परिचित कराने का काम हो सकता है। योग, आयुर्वेद, प्राचीन भारतीय ज्ञान का प्रचार-प्रसार भी प्रवासी भारतीय आसानी से कर सकते हैं। अगर भारत सरकार और प्रवासी भारतीयों के बीच आपसी समन्वय और भरोसा और अधिक बढ़ सके तो इससे दोनों को लाभ होगा।

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