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दिवाली को हिन्दू ही नहीं सिख और जैन भी मानते है, यहाँ जाने वजह | Diwali Festival also Celebrated by Sikh & Jain Religion
दिवाली हर साल बड़े हर्षो उल्लास से मनाया जाने वाला त्यौहार है। बहुत से लोग मानते है यह सिर्फ हिन्दू धर्म के भगवान श्री राम, माता सीता, भाई लक्ष्मण के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की ख़ुशी में मनाया जाता है। पर क्या आप जानते है दिवाली को सिख धर्म और जैन धर्म के लोग भी मानते है इसके पीछे उनकी अलग मान्यता है।
सिख धर्म में दीपावली की मान्यता (Why Deepawali Is Celebrated In Sikh Religion In Hindi)
मुग़ल शहंशाह जहांगीर ने सिख धर्म में छठे गुरु हरगोबिन्द साहिब जी को ग्वालियर के किले में बंदी बना लिया था। पर गुरु जी ने जेल भी सुबह – शाम कीर्तन करना शुरू कर दिया। अपने गुरु को जेल में देख के श्रद्धालु (भगतो) से रहा नहीं गया। सिखों का एक जत्था श्री आकाल तख़्त साहिब जी अरदास करके अपने गुरु को छुड़वाने के लिए बाबा बुढा जी की अगुवाई में ग्वालियर के किले के लिए रवाना हो गया। जहाँ पर गुरु हरगोबिन्द साहिब जी को बंदी बनाया हुआ था। लकिन वह पहुंचने के बाद भी उन्हें आपने धर्म गुरु से मिलने नहीं दिया गया जिससे सिखों में और अधिक आक्रोश भर गया। इसके बाद साई मिया मीर जी ने जहांगीर से बात की और गुरु जी को छोड़ने के लिए माना लिया।
लेकिन गुरु हरगोबिन्द साहिब जी ने अकेले ग्वालियर किले से रिहाई के लिए मना कर दिया। क्योंकि गुरु जी अपने साथ वहां क़ैद अन्य राजाओं को भी आजाद करना चाहते थे। जहांगीर ने गुरु जी की बात एक शर्त पर मान ली और उसने कहा कि वह सिर्फ उतने राजाओं को ही छुड़वा सकते है जितने कि उन्हें पकड़े सके । जहांगीर चाहता था की कम से कम राजा कैद से रिहा हो। सिख गुरु जी ने भी जहांगीर की बात मानकर अपने लिए एक खास तरह के वस्त्र तैयार कराये जिस सभी राजा पकड़ सके। गुरु जी का वस्त्र पकड़ कर 52 के 52 राजा और गुरु जी रिहा हो गए।
गुरु जी की रिहाई का दिन कार्तिक मास की अमावस्या का था जो की दिवाली का दिन है। गुरु जी के रिहा होकर अमृतसर आने की ख़ुशी में सभी लोगों ने अपने-अपने घरों में दीये जलाये और गुरु जी का स्वागत किया। इसी दिन की ख़ुशी में आज भी अमृतसर और श्री हरमंदिर साहिब में दिवाली का त्यौहार बहुत धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
जैन धर्म में दीपावली की मान्यता (Why Deepawali Is Celebrated In Jain Religion In Hindi)
जैन धर्म की स्थापना करने वाले तीर्थंकर महावीर जो जैनियों के भगवान भी माने जाते है। उन्हें दिवाली के दिन निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। जिस कारण यह दिन जैनियों के लिए विशेष दिन बन गया और इस वजह से जैन समाज दीवाली मनाता है।
इस अवसप्रिणी काल के चौबीसवें तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर स्वामी जी (Bhagwan Mahaveer Swami Ji) अपने सभी घाती कर्मों (Karma) को नष्ट करके मोक्ष (Moksh) को प्राप्त हुए थे।
जैन धर्म में दीपावली की अलग ही मान्यता है और मनाने का तरीका भी दूसरों से थोड़ा अलग ही है क्योंकि जैन धर्म का सार ‘अहिंसा परमो धर्म:’ है अर्थात अहिंसा ही परम धर्म है।
बुद्ध धर्म में दीपावली की मान्यता (Why Deepawali Is Celebrated In Bodh In Hindi)
बुद्ध धर्म में वैसे तो दिवाली हिदुओं की तरह मनाई जाती है लेकिन नेपाल में बुद्ध धर्म के अनुयायी इसे कुछ अलग कारणों से भी मनाते हैं। कहा जाता है कि इसी दिन सम्राट अशोक ने सबकुछ छोड़कर शांति और अहिंसा का पथ चुना था और बुद्ध धर्म ग्रहण किया था। तब से लेकर अब तक इस दिन को अशोक विजयादशमी के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन सभी अनुयायी मंत्रों का जाप करते हैं और भगवान बुद्ध को याद करते हैं।
हिन्दू श्रीराम की वापिसी पर मनाते हैं दीपावली
दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लसित था।श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व यानि की दीपावली के रूप में मनाया जाता है।
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