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गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है, क्या है धार्मिक वजह, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और पूरी कथा | Govardhan Puja Shubh Muhurat Puja Vidhi, Story, Significance & Importance
दीपावली की अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। किसान परिवार इस पूजा को बड़े चाव से करते हैं। इसके जरिये जलवायु एवम प्राकृतिक संसाधन का धन्यवाद दिया जाता हैं। इस पूजा के कारण मानवजाति में इन प्राकृतिक साधनों के प्रति भावना का विकास होता हैं।
Govardhan Puja 2017 Muhurat, Puja Vidhi: गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं ये माना जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने वृंदावन के पूरे क्षेत्र को भारी बारिश से बचाया था।
जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।
गोवर्धन पूजा कब हैं एवम शुभ मुहूर्त क्या हैं ? (Govardhan Festival Puja 2022 Date Muhurat)
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार गोवर्धन पूजा दिवाली के दुसरे दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती हैं. वर्ष 2022 में यह पूजा 24 अक्टूबर दिन शुक्रवार को की जाएगी।
शुभ मुहूर्त :
गोवर्धन पूजा प्रातः काल मुहूर्त |
06:28 से 08:43 |
गोवर्धन पूजा सांय काल |
15:27से 17:42
|
इसके बीच में गोवर्धन पूजा करने का सबसे अच्छा मौका रहेगा.
गोवर्धन पूजा का महत्व (Govardhan Puja Importance)
गोवर्धन पूजा में गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती हैं. यह दिवस यह सन्देश देता हैं कि हमारा जीवन प्रकृति की हर एक चीज़ पर निर्भर करता हैं जैसे पेड़-पौधों, पशु-पक्षी, नदी और पर्वत आदि इसलिए हमें उन सभी का धन्यवाद देना चाहिये. भारत देश में जलवायु संतुलन का विशेष कारण पर्वत मालायें एवम नदियाँ हैं। इस प्रकार यह दिन इन सभी प्राकृतिक धन सम्पति के प्रति हमारी भावना को व्यक्त करता हैं।
इस दिन विशेष रूप से गाय माता की पूजा का महत्व होता हैं. उनके दूध, घी, छांछ, दही, मक्खन यहाँ तक की गोबर एवम मूत्र से भी मानव जाति का कल्याण हुआ हैं. ऐसे में गाय जो हिन्दू धर्म में गंगा नदी के तुल्य मानी जाती हैं, को इस दिन पूजा जाता हैं।
गोवर्धन पूजा को अन्न कूट भी कहा जाता हैं. कई जगहों में भंडारा होता हैं. आजकल यह अन्नकूट महीनो तक चलता हैं. इसे आधुनिक युग में पार्टी की तरह मनाया जाने लगा हैं।
गोवर्धन पर्वत पूजा की कथा (Govardhan Puja Katha)
इस त्यौहार के पीछे एक पौराणिक कथा हैं : भगवान कृष्ण का जन्म गौकुल में हुआ था. सभी ग्वालों के बीच रहकर भगवान कृष्ण ने कई लीलायें अपने बाल्यकाल में रची. कईयों का उद्धार किया तो कईयों का घमंड तोड़ा. उन्ही में से एक कहानी थी इंद्र देव की।
गौकुल में सभी गाँव वासी अच्छी फसल, अच्छी जलवायु के लिए इंद्र देव की पूजा करते थे. प्रति वर्ष वे सभी मिलकर नाचते गाते एवम इंद्र देव की पूजा अर्चना करते थे। उनके इस पूजन का कारण जानने के लिए बाल कृष्ण ने अपने पिता नन्द से पूछा कि यह पूजा क्यूँ और किसके लिए की जाती हैं। तब नन्द बाबा ने अपने पुत्र को बताया यह पूजा इंद्र देव के अभिवादन के लिए की जाती हैं। इस पर बाल कृष्ण ने नन्द बाबा एवम सभी गाँव वासी को बताया कि हमारे गाँव की जलवायु के लिए इन्द्रदेव का नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत का अभिवादन करना चाहिये। सभी को बाल कृष्ण की बात अच्छी लगी और सभी ने इंद्र देव की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की. हर्षोल्लास के साथ जश्न हुआ। यह सब देख इंद्र देव रुष्ठ हो गये, उन्होंने नागरिको के इस वर्ताव को खुद का अपमान समझ लिया.और नाराज होकर गौकुल में आंधी तूफान खड़ा कर दिया जिससे त्राहि मच गई. सभी गाँववासी विलाप करने लगे. सभी का जीवन खतरे में था। ऐसे समय में बाल कृष्ण ने महान गोवर्धन पर्वत को अपने छोटी सी ऊँगली पर उठा लिया और सभी गांववासी को संरक्षण प्रदान किया. इंद्र देव के साथ युद्ध भी किया जिसमे इंद्र देव की करारी हार हुई औत उनका घमंड टूट गया. उन्हें अहसास हुआ कि जिस जलवायु के लिए वो खुद को महान समझते हैं यह उनका कर्तव्य हैं जिसके लिए उनका अभिमान गलत हैं। तब ही से दीवाली के दुसरे दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा गोवर्धन पूजा की जाती हैं।
गोवर्धन पूजा विधि (Govardhan Puja Vidhi)
इस दिन भगवान कृष्ण एवम गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती हैं. खासतौर पर किसान इस पूजा को करते हैं। इसके लिए घरों में खेत की शुद्ध मिट्टी अथवा गाय के गोबर से घर के द्वार पर,घर के आँगन अथवा खेत में गोवर्धन पर्वत बनायें जाते हैं. और उन्हें 56 भोग का नैवेद्य चढ़ाया जाता हैं।
पूजन विधि :
- इस दिन प्रात: गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है। अनेक स्थानों पर इसके मनुष्याकार बनाकर पुष्पों, लताओं आदि से सजाया जाता है। शाम को गोवर्धन की पूजा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, फूल, खील, बताशे आदि का प्रयोग किया जाता है।
- गोवर्धन में ओंगा (अपामार्ग) अनिवार्य रूप से रखा जाता है।
- पूजा के बाद गोवर्धनजी के सात परिक्रमाएं उनकी जय बोलते हुए लगाई जाती हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व अन्य खील (जौ) लेकर चलते हैं। जल के लोटे वाला व्यक्ति पानी की धारा गिराता हुआ तथा अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।
- गोवर्धनजी गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में बनाए जाते हैं। इनकी नाभि के स्थान पर एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है। फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिए जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांट देते हैं।
- अन्नकूट में चंद्र-दर्शन अशुभ माना जाता है। यदि प्रतिपदा में द्वितीया हो तो अन्नकूट अमावस्या को मनाया जाता है।
- इस दिन प्रात:तेल मलकर स्नान करना चाहिए।
- इस दिन पूजा का समय कहीं प्रात:काल है तो कहीं दोपहर और कहीं पर सन्ध्या समय गोवर्धन पूजा की जाती है।
- इस दिन सन्ध्या के समय दैत्यराज बलि का पूजन भी किया जाता है।
- गोवर्धन गिरि भगवान के रूप में माने जाते हैं और इस दिन उनकी पूजा अपने घर में करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की वृद्धि होती है। आज का दिन तीन उत्सवों का संगम होता है।
- इस दिन दस्तकार और कल-कारखानों में कार्य करने वाले कारीगर भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी करते हैं। इस दिन सभी कल-कारखाने तो पूर्णत: बंद रहते ही हैं, घर पर कुटीर उद्योग चलाने वाले कारीगर भी काम नहीं करते। भगवान विश्वकर्मा और मशीनों एवं उपकरणों का दोपहर के समय पूजन किया जाता है।
इस प्रकार गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) घरों में की जाती हैं
गोवर्धन पर्वत परिक्रमा (Govardhan Parvat Parikrama)
इस दिन कई लोग मथुरा वृन्दावन उत्तरपदेश के समीप स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं. हिन्दू धर्म में परिक्रमा का बहुत अधिक महत्व होता हैं. घर में पूजा से ज्यादा इस परिक्रमा का महत्व होता हैं।
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