जन्माष्टमी पूजा विधि
Janmashtami
पाप और शोक के दावानल को दग्ध करने हेतु, भारत की इस पावन धरा पर स्वयं भगवान विष्णु अपनी सोलह कलाओं के साथ भगवान श्रीकृष्ण के रूप में भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में अवतरित हुए। भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्य उत्सव के रूप में ही हम इस पावन दिवस को महापर्व जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। पौराणिक कथानुसार जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ उस समय आकाश में घना अन्धकार छाया हुआ था, घनघोर वर्षा हो रही थी, उनके माता-पिता वसुदेव-देवकी बेड़ियों में बंधे थे, लेकिन प्रभु की कृपा से बेड़ियों के साथ-साथ कारागार के द्वार स्वयं ही खुल गए, पहरेदार गहरी नींद में सो गए और वसुदेव श्रीकृष्ण को उफनती यमुना के पार गोकुल में अपने मित्र नन्दगोप के घर ले गए और नन्द की पत्नी यशोदा के गर्भ से उत्पन्न कन्या को लेकर वापस कारागार आ गए।
नन्दगोपाल के जन्म स्थान मथुरा सहित पूरे भारत वर्ष में यह महापर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। देश के कई भागों में मटकी फोड़ने का कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है, जिसकी सुन्दरता और सौम्यता भक्तों के दिलों में भगवान श्रीकृष्ण की यादों को ताज़ा कर देती हैं। जन्माष्टमी पर भक्तों को दिन भर उपवास रखना चाहिए और रात्रि के 11 बजे स्नान आदि से पवित्र हो कर घर के एकांत पवित्र कमरे में, पूर्व दिशा की ओर आम लकड़ी के सिंहासन पर, लाल वस्त्र बिछाकर, उसपर राधा-कृष्ण की तस्वीर स्थापित करना चाहिए, इसके बाद शास्त्रानुसार उन्हें विधि पूर्वक नंदलाल की पूजा करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन जो श्रद्धा पूर्वक जन्माष्टमी के महात्म्य को पढ़ता और सुनता है, इस लोक में सारे सुखों को भोगकर वैकुण्ठ धाम को जाता है।
जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्म दिवस के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि धर्म की पुन: स्थापना और अत्याचारी कंस का वध करने के लिए भगवान विष्णु जी ने कृष्ण जी का अवतार लिया था। लीलाधर भगवान श्री कृष्ण को माधव, केशव, कान्हा, कन्हैया, देवकीनन्दन, बाल गोपाल आदि कई नामों से जाना जाता हैं।
जन्माष्टमी 2017 (Janmashtami 2017)
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण की जयंती मनाई जाती है। हिन्दू धर्मानुसार प्रत्येक मनुष्य को जन्माष्टमी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस साल जन्माष्टमी का व्रत 14 अगस्त, दिन सोमवार को रखा जाएगा।
जन्माष्टमी व्रत विधि (Janmashtami Vrat Vidhi in Hindi)
भविष्यपुराण के अनुसार जन्माष्टमी व्रत के दिन मध्याह्न में स्नान कर एक सूत घर (छोटा सा घर) बनाना चाहिए। उसे पद्मरागमणि और वनमाला आदि से सजाकर द्वार पर रक्षा के लिए खड्ग, कृष्ण छाग, मुशल आदि रखना चाहिए। इसके दीवारों पर स्वस्तिक और ऊं आदि मांगलिक चिह्न बनाना चाहिए। सूतिका गृह में श्री कृष्ण सहित माता देवकी की स्थापना करनी चाहिए।
एक पालने या झूले पर भगवान कृष्ण की बाल गोपाल वाली तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। सूतिका गृह को जितना हो सके उतना सजाकर दिखाना चाहिए।
इसके बाद पूर्ण भक्तिभाव के साथ फूल, धूप, अक्षत, नारियल, सुपारी ककड़ी, नारंगी तथा विभिन्न प्रकार के फल से भगवान श्री कृष्ण के बाल रुप की पूजा करनी चाहिए। अर्द्ध रात्रि में भगवान कृष्ण जी के जन्म पर आरती करनी चाहिए और प्रसाद बांटना चाहिए। व्रती को नवमी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराकर उसे दक्षिणा दे विदा करना चाहिए। जन्माष्टमी का व्रत करने वाले भक्तों को नवमी के दिन व्रत का पारण करना चाहिए।
जन्माष्टमी पूजन के मंत्र (Janmashtami Puja Mantra)
- योगेश्वराय योगसम्भवाय योगपताये गोविन्दाय नमो नमः (इस मंत्र द्वारा श्री हरि का ध्यान करें)
- यज्ञेश्वराय यज्ञसम्भवाय यज्ञपतये गोविन्दाय नमो नमः (इस मंत्र द्वारा श्री कृष्ण की बाल प्रतिमा को स्नान कराएं)
- वीश्वाय विश्वेश्वराय विश्वसम्भवाय विश्वपतये गोविन्दाय नमो नमः (इस मंत्र द्वारा भगवान को धूप ,दीप, पुष्प, फल आदि अर्पण करें)
- धर्मेश्वराय धर्मपतये धर्मसम्भवाय गोविन्दाय नमो नमः (इस मंत्र से नैवेद्य या प्रसाद अर्पित करें)
जन्माष्टमी व्रत का फल (Benefits of Janmashtami Vrat)
भविष्यपुराण के अनुसार जन्माष्टमी व्रत के पुण्य से व्यक्ति पुत्र, संतान, अरोग्य, धन धान्य ,दीर्घायु, राज्य तथा मनोरथ को प्राप्त करता है। इसके अलावा माना जाता है कि जो एक बार भी इस व्रत को कर लेता है वह विष्णुलोक को प्राप्त करता है यानि मोक्ष को प्राप्त करता है।
जन्माष्टमी का त्यौहार का एक मनोरंजक पक्ष दही-हांडी भी है। यह प्रकार का खेल है जिसमें बच्चे भगवान कृष्ण द्वारा माखन चुराने की लीला का मंचन करते हैं। महाराष्ट्र और इसके आसपास की जगहों पर यह प्रसिद्ध खेल है।