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नवरात्रि : माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री की पावन कथा
devi-siddhidatri

सभी सिद्धियों को देने वाली यही सिद्धिदात्री माँ हैं। नवरात्र के नवमी के दिन माँ सिद्धिदात्री का अवाहन, ध्यान व उपासना की जाती है।

सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली है देवी सिद्धिदात्री 

या देवी सर्वभू‍तेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और मां सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे मां, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।

मान्यता है कि इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ माता की उपासना करने से उपासक को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है।

माँ दुर्गा की नवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। मार्कण्डेय पुराण में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्व ये आठ सिद्धियाँ बताई गई हैं। इन सभी सिद्धियों को देने वाली यही सिद्धिदात्री माँ हैं। नवरात्र के नवमी के दिन माँ सिद्धिदात्री का अवाहन, ध्यान व उपासना की जाती है। देवी पुराण के अनुसार भगवान शंकर ने इन्हीं शक्तिस्वरूपा देवी की की उपासना करके सभी सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। जिसके प्रभाव से शंकर जी का आधा शरीर स्त्री का हो गया था। इसी कारण शिव जी अर्द्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए। माँ सिद्धिदात्री सिंहवाहिनी, चतुर्भुजा तथा सर्वदा प्रसन्नवदना हैं।

मां दुर्गा का नवां स्वरूप सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता है और वे अपने भक्तों को आठों प्रकार की सिद्धियां देने में सक्षम हैं। देवी प्राण में ऎसा उल्लेख मिलता है कि भगवान शंकर ने भी इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी चार भुजाएं हैं, दाई ओर की दो भुजाओं मे गदा और चक्र और बाई ओर की दो भुजाओं में पद्म और शंख सुशोभित हैं। इनके सिर पर सोने का मुकुट और गले में सफेद फूलों की माला है। ये कमल पर आसीन हैं और केवल मानव ही नहीं बल्कि सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवता और असुर सभी इनकी आराधना करते हैं। संसार में सभी वस्तुओं को सहज और सुलभता से प्राप्त करने के लिए नवरात्रा के नवें दिन इनकी पूजा की जानी चाहिए।

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियां होती हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है।

इनके नाम इस प्रकार हैं -

1. अणिमा 2. लघिमा 3. प्राप्ति 4. प्राकाम्य 5. महिमा 6. ईशित्व,वाशित्व 7. सर्वकामावसायिता 8. सर्वज्ञत्व 9. दूरश्रवण 10. परकायप्रवेशन 11. वाक्‌सिद्धि 12. कल्पवृक्षत्व 13. सृष्टि 14. संहारकरणसामर्थ्य 15. अमरत्व 16. सर्वन्यायकत्व 17. भावना 18. सिद्धि

नवदुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री मां की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।

सिद्धिदात्री मां के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से मां भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। मां भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती।

मां के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिए हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करनी चाहिए। मां भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है।

इनकी आराधना से जातक को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। आज के युग में इतना कठिन तप तो कोई नहीं कर सकता लेकिन अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर कुछ तो मां की कृपा का पात्र बनता ही है।

प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य उपरोक्त यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करना चाहिए।

ध्यान मंत्र

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

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