जानिए, अपनी माता का वध क्यों किया था परशुराम ने और कहाँ मिली थी उन्हें मातृहत्या के पाप से मुक्ति ?
परशुराम भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। उनके पिता का नाम जमदग्नि तथा माता का नाम रेणुका था। परशुराम के चार बड़े भाई थे लेकिन गुणों में यह सबसे बढ़े-चढ़े थे। एक दिन गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख हवन हेतु गंगा तट पर जल लेने गई रेणुका आसक्त हो गयी और कुछ देर तक वहीं रुक गयीं। हवन काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्नि ने अपनी पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचार करने के दण्डस्वरूप सभी पुत्रों को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दी। लेकिन मोहवश किसी ने ऐसा नहीं किया। तब मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया और उनकी विचार शक्ति नष्ट हो गई।
अन्य भाइयों द्वारा ऐसा दुस्साहस न कर पाने पर पिता के तपोबल से प्रभावित परशुराम ने उनकी आज्ञानुसार माता का शिरोच्छेद कर दिया। यह देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वर मांगने के लिए कहा। तो उन्होंने तीन वरदान माँगे-
माँ पुनर्जीवित हो जायँ,
उन्हें मरने की स्मृति न रहे,
भाई चेतना-युक्त हो जायँ और
जमदग्नि ने उन्हें तीनो वरदान दे दिये। माता तो पुनः जीवित हो गई पर परशुराम पर मातृहत्या का पाप चढ़ गया।
मातृकुण्डिया - चितौड़ - राजस्थान (Matrikundiya - Chittorgarh - Rajasthan) :
राजस्थान के चितौड़ जिले में स्तिथ मातृकुण्डिया वह जगह है जहाँ परशुराम अपनी माँ की हत्या (वध) के पाप से मुक्त हुए थे। यहां पर उन्होंने शिव जी की तपस्या की थी और फिर शिवजी के कहे अनुसार मातृकुण्डिया के जल में स्नान करने से उनका पाप धूल गया था। इस जगह को मेवाड़ का हरिद्वार भी कहा जाता है। यह स्थान महर्षि जमदगनी की तपोभूमि से लगभग 80 किलो मीटर दूर हैं।
परशुराम महदेव गुफा मंदिर (Parshuram Mahadev Gufa Temple) :
मातृकुण्डिया से कुछ मील की दुरी पर ही परशुराम महदेव मंदिर स्तिथ है इसका निर्माण स्वंय परशुराम ने पहाड़ी को अपने फरसे से काट कर किया था। इसे मेवाड़ का अमरनाथ कहते है। इसके बारे में समूर्ण जानकारी आप यहाँ पढ़ सकते है
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