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वास्तु शास्त्र टिप्स | Special Vaastu Shastra Tips For Your Home in Hindi.
वास्तु शास्त्र का परिचय | Introduction to Vastu Shastra.
इसके अलावा वायुमंडल और ब्रह्मांड में काफी मात्रा में अदृश्य शक्तियां एवं ऐसी ऊजाएं है, जिनको हम न देख सकते है और न ही महसूस कर सकते हैं तथा जिनका प्रभाव दीर्घ काल में ही अनुभव होता है। इसी को प्राकृतिक ओज (औरा) कहते है। जीवित मनुष्य के अंदर और उसके चारों ओर हर समय एक विशेष चुंबकीय क्षेत्र होता है। इसी विशेष चुंबकीय क्षेत्र को हम ‘बायोइलेक्ट्रिक चुंबकीय क्षेत्र‘ भी कहते हैं। इसी लिए दक्षिण-पश्चिम का भाग ऊंचा तथा पूर्व-उत्तर का भाग नीचे रखने से ‘बायोमैग्नेटिक फील्ड‘ के कारण मनुष्य के चुंबकीय क्षेत्र में कोई रुकावट नहीं आएगी। ये ‘बायोमैग्नेटिक फील्ड‘ वायुमंडल में वैसे तो बीस प्रकार के होते हैं, परंतु मानव शरीर के लिए चार प्रकार ही (बी.ई.एम.स) अधिक उपयोगी माना गया है। इसी लिए वास्तुशास्त्र में इन पांच भूतों - पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश एवं वायु - का विशेष स्थान है। मनुष्य को वास्तु शास्त्र के एक सौ पचास नियम बहुत ही बारीकी से अध्ययन करके अपनाने चाहिए, क्योंकि भूखंड की स्थिति एवं कोण की स्थिति जानने के बाद वास्तुशास्त्र के सभी पहलुओं का सुचारु रूप से अध्ययन करके ही भवन निर्माण, औद्योगिक भवन, व्यापारिक संस्थान आदि की स्थापना करें। तभी लाभ मिलेगा।
आवासीय तथा व्यावसायिक भवन निर्माण करते समय यदि इन पांच तत्वों को समझ कर इनका यथोचित ध्यान रखा जाए, तो ब्रह्मांड की प्रबल शक्तियों का अद्भुत उपहार हमारे समस्त जीवन को सुखी एवं संपन्न बनाने में सहायक होंगे।
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