मुहूर्त विचार | Muhurat Vichar
मूर्ति प्रतिष्ठा के मुहूर्त के विषय में विचार:
चैत्रे वा फाल्गुने वापि ज्येष्ठे वा माधवे तथा।
माघे वा सर्वदेवानों प्रतिष्ठा शुभदा भवेत्।।
मत्स्य पुराण
देवी की प्रतिमा प्रतिष्ठा:
देव्याः माघे आश्विने मासे उत्तमा सर्वकामदः।
न तिथिर्न च नक्षत्रं नोपवासे अकारणम्।
सर्वकालं प्रकत्र्तव्यं कृष्णपक्षे विशेषतः। दैवी पुराण
दैव्याः माघे आश्विने मासे उत्तमा सर्वकामदः।
जगदम्बा की प्रतिष्ठा केवल आश्विने एवं माघ मास में सर्वाधिक उत्तम रहती है।
शत चंडी, सहस्र चंडी एवं लक्ष चंडी के मुहूर्तः
वैशाखः फाल्गुनो माघः श्रावणो मार्ग एव च।
आश्विनः कार्तिको मासाः पूजायां तु शुभवाहाः।।
नव चंडी, शत चंडी, सहस्र चंडी एवं लक्ष चंडी जैसे जप अनुष्ठान कार्यों में वैशाख, फाल्गुन, श्रावण, मार्गशीर्ष, आश्विन तथा कार्तिक, ये सात महीने श्रेष्ठ है। यही महीने गायत्री यज्ञ के लिए भी उत्तम कहे गये है।
प्रतिष्ठा विधान में ग्राह्य नक्षत्रः
आषाढ़े द्वे तथा मूलमुत्तरत्रयमेव च।
ज्येष्ठ श्रवण रोहिण्यः पूर्वाभाद्रपदा तथा।
अनुराधा तथा स्वाति प्रतिष्ठासु प्रशस्यते।।
अत्र आषाढे़ द्वे इत्यनेन उत्तराषाढ़ा, उत्तराफाल्गुनी,
उत्तराभाद्रपदत्रयाणां नक्षत्राणां कथनम्।।
नरिसिंह का कथन है:
तथा महाश्विनी मास उत्तमः सर्वकामदः।
देवी तत्र सदा शक्रपासुनापि प्रतिष्ठा।।
भवेने फलदां पुंसा कर्कस्थे च वृषस्थिते।
न तिथिर्नच नक्षत्रं नापिवारोअथ कारणम्।।
अर्थात्, सब कामनाओं को देने वाली श्रेष्ठ और आश्विन मास के नव रात्रों में भगवती जगदम्बा घर में पुरुषों को फल देने वाली है। कर्क, श्रावणद्ध वृष; ज्येष्ठद्ध के सूर्य में करना ठीक नहीं। वहां वार, नक्षत्र, तिथि आदि भी कारण नहीं होते।
माघवीये-मयूखेः
मातृभैरववाराहनारसिंहत्रिविक्रमाः।
महिषासुर-हन्त्रयश्च स्थाप्या वै दक्षिणयने।।
जगदम्बा, भैरव, वराह, नृसिंह, इत्यादि चैबीस अवतार, भगवान विष्णु की स्थापन