कोहिनूर हीरे का इतिहास | History of Kohinoor Diamond
जब हीरे की बात की जाए तो दुनिया के सबसे प्राचीन और मूल्यवान कोहिनूर हीरे – Kohinoor Diamond को कोई कैसे भूल सकता है। वास्तव में इसे कोह-ए-नूर कहा जाता है, जो एक पर्शियन शब्द है जिसका अर्थ रोशनियों के पहाड़ से है। यदि आप इस हीरे के बारे में और कुछ जानना चाहते है तो हम यहाँ आपको कोहिनूर हीरे – Kohinoor Hira के बारे में बताने जा रहे है …
सबसे मूल्यवान हीरा “कोहिनूर” – Kohinoor Diamond History In Hindi
हीरा एक प्रकार का रत्न है. विभिन्न नगों एवं रत्नों में सबसे अद्भुत रत्न है हीरा. राजा – महाराजाओं को भी हीरा अधिक प्रिय रहता था. सभी प्रकार के हीरों में “कोहिनूर” सबसे प्रसिद्ध, पुराना एवं महंगा हीरा है. यह जगमगाता हीरा अत्यंत ही बेशकीमती है. कोहिनूर का अर्थ “प्रकाश का पर्वत” या “प्रकाश की श्रंखला” होता है. इसकी शुरुआत आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले की कोल्लूर खदान से माना जाता है, परंतु फिर भी कोहिनूर को कई देश अपना होने का दावा करते हैं. हाल ही में कोहिनूर हीरा उसके असली जगह को ले कर सभी की चर्चा का विषय बना हुआ है.
कोहिनूर का इतिहास: (Kohinoor diamond history)
हीरे, जवाहरात, मोती, विभिन्न नग आदि में कोहिनूर हीरे का इतिहास बहुत ही पुराना है. इसका इतिहास लगभग 5000 वर्ष पुराना है. कोहिनूर कई देश का सफर करते हुए कई राजा महाराजाओं के हाथों से होते हुए अंततः वर्तमान में लंदन के टावर में सुरक्षित रखा गया है.
- हीरे का इतिहास बहुत पुराना है. लगभग 5000 वर्ष पहले संस्कृत भाषा में सबसे पहले हीरे का उल्लेख किया गया. इसे “स्यामंतक” के नाम से जाना गया. यहाँ गौर करने बात यह है कि स्यामंतक को कोहिनूर से अलग माना जाता था. सबसे पहले 13वीं शताब्दी में सन 1304 में यह मालवा के राजा की निगरानी में सबसे प्राचीनतम हीरा था.
- फिर 1339 में इस हीरे को समरकन्द के नगर में लगभग 300 वर्ष तक रखा गया. इस समय कुछ वर्षों तक हिन्दी साहित्य में हीरे को लेकर एक बहुत ही रोचक और अंधविश्वास से भरा हुआ कथन प्रचलित था. इसके अनुसार जो भी पुरुष इस हीरे को पहनेगा उसे श्राप लगेगा एवं वह कई दोषों से घिर जाएगा. इस श्राप के अनुसार हीरे को पहनने वाले व्यक्ति को सभी प्रकार की बदकिस्मती के लिए जाना जाएगा. इसे केवल कोई औरत या भगवान ही पहन सकते हैं, जो इसके सभी दोषों से दूर रह सकेंगे.
- कोहिनूर कई मुग़ल शासक के अधीन रहा. 14वीं शताब्दी में दिल्ली के शासक, अलाउद्दीन खिलजी की पहुँच में यह हीरा रहा.
- इसके बाद 1526 में मुग़ल शासक बाबर ने अपने लेख “बाबरनामा” में हीरे का उल्लेख करते हुए बताया, कि उन्हें यह हीरा सुल्तान इब्राहीम लोधी ने भेंट किया. उन्होने इसे “बाबर का हीरा” बताया.
- बाबर के वंशज, औरंगजेब तथा हुमायूँ ने राज्य के इस अमूल्य हीरे की सौगात की सुरक्षा करते हुए इसे अपने वंशज महमद (औरंगजेब का पोता) को सौंपा. औरंगजेब इसे लाहोर की बादशाही मस्जिद में ले आया. सुल्तान महमद बहुत ही निडर एवं कुशल शासक था. उसने कई राज्यों को अपने अधीन कर लिए थे.
- इसके बाद 1739 में परसिया के राजा नादिर शाह भारत आए. वे सुल्तान महमद के राज्य पर शासन करना चाहते थे. आखिरकार उन्होने सुल्तान महमद को हरा दिया और सुल्तान तथा उनके राज्य की धरोहरों को उनके अधीन कर लिया. तब नादिर शाह ने ही राज्य के बेशकीमती हीरे को “कोहिनूर” का नाम दिया. इस हीरे को उन्होने कई सालों तक परसिया में अपनी कैद में रखा.
- कोहिनूर को देखने के लिए नादिर शाह लंबे समय तक जीवित नहीं रह सके. 1747 में राजनीतिक लड़ाई के चलते नादिर शाह की हत्या कर दी गयी और इस बेशकीमती कोहिनूर को जनरल अहमद शाह दुर्रानी ने अपने कब्जे में ले लिया.
- फिर अहमद शाह दुर्रानी के वंशज शाह शुजा दुर्रानी कोहिनूर को 1813 में वापस भारत ले कर आए. इसे उन्होने अपने हाथ के कड़े में जड़वा कर कई दिनों तक पहना रखा. फिर आखिर में शुजा दुर्रानी ने कोहिनूर को सिक्ख समुदाय के संस्थापक राजा रंजीत सिंह को सौंप दिया. इस बेशकीमती तोहफे के बदले में राजा रंजीत सिंह ने शाह शुजा दुर्रानी को अफ़ग़ानिस्तान से लड़ने एवं राजगद्दी वापस लाने में मदद की.
- महाराज रंजीत सिंह के एक प्रिय घोड़े का नाम भी कोहिनूर था. राजा रंजीत सिंह ने अपनी वसीयत में कोहिनूर हीरे को उनकी मृत्यु के बाद जगन्नाथपूरी (उड़ीसा, भारत) के मंदिर में देने की बात कही, परंतु ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने उनकी वसीयत नहीं मानी.
- 29 मार्च 1849 को द्वितीय एंग्लो – सिक्ख युद्ध की संपति पर ब्रिटीश फोर्स ने राजा रंजीत सिंह को हरा दिया था और राजा रंजीत सिंह की सभी संपत्ति तथा राज्य पर कब्जा कर लिया. ब्रिटिश सरकार ने लाहोर की संधि लागू करते हुए कोहिनूर को ब्रिटिश (इंग्लैंड) की महारानी विक्टोरिया को सौंपने की बात कही.
बहुत से लोग इसे सम्यन्तक मणि भी कहते है और इसके बारे में कहाँ जाता है की इसे भगवान् सूर्य ने अपने प्रबल भक्त ‘सत्राजित’ की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान स्वरुप दिया था और यही इसके उत्पत्ति की कहानी मानी जाती है और यही से इसकी अभिशप्त कहानी शुरू होती है। पुराणों के अनुसार यह हीरा एक दिन सत्राजित से खो गया और इसका झूठा आरोप श्रीकृष्ण पर लगा, परन्तु श्रीकृष्ण ने यह हीरा ढूंढ कर वापस सत्राजित को दे दिया और सत्राजित ने श्रीकृष्ण से प्रभावित हो यह उन्हें ही भेंट कर दिया, इसीलिए कहाँ जाता है की श्री कृष्ण पर झूठे आरोप से इस हीरे की अभिशापित कहानी शुरू हुई और बाद में इसी हीरे के कारण यदुवंश का विनाश भी हुआ। यदुवंश के विनाश के बाद यह हीरा इतिहास में कहीं खो गया और मध्यकाल तक इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता लेकिन सन 1306 में एक लेख लिखा गया जिसमे पहली बार इस हीरे का उल्लेख किया गया, इस लेख में मुताबिक जो भी इस हीरे को अपने पास रखेगा उसे बुरीतबाही का सामना करना पड़ेगा, परन्तु तब के शासको ने बात को हँसी में उड़ा दिया लेकिन कोहिनूर ने अपना असर दिखाना जारी रखा।
वर्तमान में कहां है:
कोहिनूर कई देश का सफर करते हुए कई राजा महाराजाओं के हाथों से होते हुए अंततः वर्तमान में लंदन के टावर में सुरक्षित रखा गया है. इस वक्त कोहिनूर हीरा ब्रिटेन के राजपरिवार के पास है। लंदन टॉवर, ब्रिटेन की राजधानी लंदन के केंद्र में टेम्स नदी के किनारे बना एक भव्य किला है जिसे सन् 1078 में विलियम द कॉकरर ने बनवाया था. राजपरिवार इस किले में नहीं रहता है और शाही जवाहरात इसमें सुरक्षित हैं जिनमें कोहिनूर हीरा भी शामिल है.
कोहिनूर हीरा की कीमत (Kohinoor diamond price)
बाबर ने ही हीरे का मूल्य बताते हुए कहा कि यह सबसे बेशकीमती एवं महंगा रत्न है, जिसकी कीमत पूरी दुनिया की एक दिन की आय के आधे मूल्य के लगभग है. कोहिनूर हीरा अपने पूरे इतिहास में अब तक एक बार भी नहीं बिका है यह या तो एक राजा द्वारा दूसरे राजा से जीता गया या फिर इनाम में दिया गया. इसलिए इसकी कीमत कभी नहीं लग पाई.
ब्रिटिश इंडिया कंपनी द्वारा कोहिनूर को रखना:
- कोहिनूर हीरा भारत में राजा रंजीत सिंह की निगरानी में कई दिनों तक सुरक्षित रहा. परंतु 1849 में ब्रिटिश फोर्स द्वारा पंजाब जीतने पर सिक्ख शासक रंजीत सिंह की सारी संपत्ति को ब्रिटिश सरकार ने अपने कब्जे में कर लिया. इसके बाद बेशकीमती कोहिनूर को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके खजाने में रख लिया तथा बाकी सिक्ख शासक की संपत्ति को लड़ाई के मुआवजे के तौर पर रख लिया गया.
- फिर इस कोहिनूर को जहाजी यात्रा से ब्रिटेन लाया गया. ऐसा माना जाता है कि कोहिनूर को ले जाते वक़्त इसकी देख रेख एवं सुरक्षा करने वाले के हाथों यह बेशकीमती हीरा घूम गया, परंतु कुछ ही दिनों बाद उसके नौकर द्वारा कोहिनूर लौटाए जाने का वाक्या प्रचलित है. अंततः जुलाई 1850 में इस बेशकीमती, जगमगाते हुए हीरे को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के अधीन सौंप दिया गया.
कोहिनूर को कटवाना (Kohinoor diamond Facts):
- महारानी विक्टोरिया के अधीन इस कोहिनूर को क्रिस्टल पैलेस (Crystal Palace) में प्रदर्शिनी के लिए रखा गया. इस समय इसका वजन 186 केरेट था. लेकिन यह प्रकाश का पर्वत उस समय उतना प्रभावी तथा जगमगाता हुआ नहीं दिखा. लोगों को यह देख कर काफी निराशा हुई. खासकर महारानी विक्टोरिया के पति प्रिंस अल्बर्ट (Prince Albert) हीरे की चमक देख कर अधिक निराश हुए. इसलिए महारानी ने इसे फिर से नया स्वरूप देने का निश्चय किया.
- 1852 में इसे डच के जौहरी मिस्टर केंटर (Mr. Cantor) को दिया गया, जिसने इसे काट कर 105.6 केरेट का कर दिया. इसे काट कर ओवल शेप में 3.6cm x 3.2cm x 1.3cm की साइज़ का बनाया गया. इसके पहले इसे कभी नहीं काटा गया.
कोहिनूर पर बवाल: (Issues On Kohinoor)
कोहिनूर पर कई देश अपना हक बताते हैं. भारत कहता है कि कोहिनूर भारत की सम्पदा है, जिसे ब्रिटीशों ने गलत तरीके से लूट लिया, वहीं ब्रिटिश सरकार कहती है कि कोहिनूर को रंजीत सिंह ने लाहोर शांति संधि के दौरान ब्रिटीशों को तोहफे में दिया. कोहिनूर पर कई बार कई सवाल उठे.
- 1947 में भारत की आजादी के बाद से ही भारत ने कोहिनूर को वापस लाने की कवायद शुरू कर दी. इसके बाद 1953 में महारानी एलीज़ाबेथ द्वितीय के राजतिलक दौरान भी भारत द्वारा कोहिनूर की मांग की गयी, परंतु हर बार ब्रिटिश सरकार कोहिनूर पर ब्रिटिश हक़ बताकर भारत की सभी दलील ख़ारिज करती जाती है.
- कोहिनूर पर हक़ के लिए भारत के साथ साथ पाकिस्तान भी सूची में शामिल है. 1976 में पाकिस्तान ने कोहिनूर पर अपना हक़ बताते हुए ब्रिटिश सरकार से कोहिनूर, पाकिस्तान को लौटाने की बात कही. इसके जवाब में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री जेम्स केलेघन ने तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो को खत लिखा की “कोहिनूर को 1849 में लाहोर की शांति संधि के तहत महाराजा रंजीत सिंह ने ब्रिटिश सरकार को दिया है. और इसलिए ब्रिटिश महारानी कोहिनूर को पाकिस्तान को नहीं सौंप सकती”
- इसके बाद सन 2000 में भी कई बार भारतीय सदन ने कोहिनूर पर भारतीय दावा करते हुए ब्रिटिश सरकार पर आरोप लगाया, कि कोहिनूर को ब्रिटिश सरकार ने अनैतिक रूप से प्राप्त किया है.
- भारत के साथ साथ तालिबान के विदेशी मुद्दे के प्रवक्कता, फैज अहमद फैज ने कहा कि कोहिनूर अफ़ग़ानिस्तान की संपत्ति है, और इसे जल्द से जल्द अफ़ग़ानिस्तान को सौंपा जाना चाहिए. उन्होने कहा कि इतिहास बताता है कि कोहिनूर अफ़ग़ानिस्तान से भारत गया और फिर भारत से ब्रिटेन. इसलिए अफ़ग़ानिस्तान कोहिनूर का प्रबल दावेदार है.
- कोहिनूर को लौटाने के जवाब में जुलाई 2010 में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड केमरून ने कहा कि “अगर ब्रिटिश सरकार प्रत्येक देश के दावे को सही मानते हुए अमूल्य रत्न एवं वस्तुएँ लौटाती है, तो कुछ ही समय में ब्रिटिश संग्रहालय अमूल्य धरोहर से खाली हो जाएगा.” फरवरी 2013 में भारतीय दौरे पर उन्होने कोहिनूर को लौटाने से साफ इंकार कर दिया.
- हाल ही में अप्रैल 2016 में भारत की ओर से ब्रिटेन पर कोहिनूर लौटने की याचिका दायर की गई. इस पर भारतीय संस्कृति मंत्री श्री महेश शर्मा ने कहा है कि “कोहिनूर के मुद्दे को जल्द से जल्द हल किया जाएगा”. कोहिनूर को लेकर भारत के कुछ लोगों का मानना है कि कोहिनूर को भारत सरकार ने ही ब्रिटिश राज्य (United Kingdom) को तोहफे स्वरूप भेंट किया गया. सूप्रीम कोर्ट में कोहिनूर पर याचिका के दौरान भारतीय वकील ने कहा कि ब्रिटिश सरकार ने रंजीत सिंह से जबरदस्ती कोहिनूर नहीं छिना है, बल्कि रंजीत सिंह ने स्वेच्छा से युद्ध के मुआवज़े के तौर पर ब्रिटिश सरकार को कोहिनूर भेंट किया था.
- कोहिनूर मुद्दा अभी भी काफी चर्चे में है. एक और जहाँ भारत उसे वापिस लाने की कवायद कर रहा है, वहीं ब्रिटिश सरकार भी इसे नहीं लौटाने की जिद पर अड़ी है. दोनों ही देश की सरकारें सही फैसले के लिए हल ढूंढ रही है.
प्राचीन भारत की शान कोहिनूर हीरे की खोज वर्तमान भारत के आंध्रप्रदेश राज्य के गुंटूर जिले में स्तिथ गोलकुंडा की खदानों में हुई थी जहां से दरियाई नूर और नूर-उन-ऐन जैसे विशव प्रसिद्द हीरे भी निकले थे। पर यह हीरा खदान से कब बाहर आया इसकी कोई पुख्ता जानकारी इतिहास में नहीं है।
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