भारत में समलैंगिकता – विकृति या सामाजिक अपराध ? | Homosexuality in India, Social Crime or Mental Disease
समलिंगता का अर्थ है समान लिंग की ओर आकर्षित होना और उसके साथ संबंध बनाना। इस संबंध में पुरुष, पुरुष के साथ और स्त्री, स्त्री के साथ संबंध बनाती है। पुरुष समलिंगी को अंग्रेजी में गे (Gay) कहते हैं और महिला समलिंगी को लैस्बियन (Lesbian) कहा जाता है। आधुनिक युग में कुछ देशों ने समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दे दी है तो कुछ देश इसके सख्त खिलाफ हैं। …
क्या आप जानते हैं कि समलैंगिकता क्या है? | Do you know what is homosexuality?
भारत एक प्राचीन देश है, कुछ अनुमानों के अनुसार भारतीय सभ्यता लगभग 5 हजार वर्ष पुरानी है, इसलिये इसका समाज भी बहुत पुराना और जटिल प्रकृति का है। अपनी लम्बी ऐतिहासिक अवधि के दौरान, भारत बहुत से उतार-चढ़ावों और अप्रवासियों के आगमन का गवाह हैं; जैसे: आर्यों का आगमन, मुस्लिमों का आगमन आदि। ये लोग अपने साथ अपनी जातिय बहुरुपता और संस्कृति को लेकर आये साथ ही भारत की विविधता, समृद्धि व जीवन शक्ति में अपना योगदान दिया।
समलैंगिकता एक रोग है। यह प्रकृति के खिलाफ है। दुनियाभर में समलैंगिकता का ग्रॉफ बढ़ता जा रहा है। जहाँ हॉलीवुड-बॉलीवुड की फिल्में इन्हें बढ़ावा दे रही है वहीं सरकारें भी इन्हें कानूनी मान्यता देने में लगी है। समलैंकिगता का मूल कारण खोजना आवश्यक है अन्यथा एक सभ्य समाज के समक्ष स्वस्थ रूप से जीने का संकट पैदा होने लगेगा।
आधुनिक समाज कहीं ना कहीं उन सब चीजों के लिये कम सहिष्णु हैं जो उनके बनायी गयी परम्पराओं के अनुसार व्यवहारिक और सामान्य नहीं हैं। जब हम सामाजिक व्यवहार का अध्ययन धार्मिक अल्पसंख्यकों जैसे इस्लाम या ईसाई या यौन अल्पसंख्यकों जैसे समलैंगिकों (एक समान लिंग वाले व्यक्तियों का आपस में प्रेम संबंध) के परिपेक्ष्य में करते हैं, तो इन सभी मामलों पाते हैं कि बहुसंख्यक लोग अल्पसंख्यकों को लक्ष्य बनाकर व्यापक स्तर पर उनका शोषण और विरोध करते हैं।
प्राचीन भारत की तरह न होकर, वर्तमान भारत में लोग समलैंगिक लोगों के साथ समानता का व्यवहार नहीं कर पा रपहे हैं और जिसके कारण वर्तमान समाज में मानव अधिकारों का लगातार उल्लंघन हो रहा हैं।
भोजन, आवास और पानी की तरह ही यौन आवश्यकता भी मानव की आधारभूत आवश्यकताओं में से एक हैं जिसके बिना न तो जीवन का पूरी तरह से अहसास हो सकता हैं न ही उसका आनंद लिया जा सकता हैं। यौन झुकाव प्रत्येक व्यक्ति के लिये अलग हो सकता हैं। अनियमित यौन व्यवहार के लोग अल्पमत हैं, लेकिन वे वास्तविकता में हैं। अनियमित यौन व्यवहार को इस तरह समझा जा सकता हैं कि इस प्रकार के व्यक्तियों के लिये विपरित लिंग के प्रति कोई आकर्षण न होकर समान लिंग के प्रति आकर्षण होता हैं।
समलैंगिकता क्या हैं?
ये प्राकृतिक नियम हैं कि एक व्यक्ति दूसरे विपरीत लिंग के प्रति लैंगिक दृष्टि से या भावनात्मक रुप से जुड़ा होता हैं जैसे: आदमी औरतों की ओर आकर्षित होते हैं और इसके विपरीत भी। लेकिन कुछ समय और कुछ मामलों में ये लैंगिक और भावनात्मक आकर्षण विपरीत लिंग के प्रति न होकर समान लिंग के व्यक्ति की तरफ होता हैं। समान लिंग के प्रति आकर्षण और झुकाव ही समलैंगिकता हैं और ऐसे झुकाव वाले व्यक्ति समलैंगिक कहे जाते हैं। समलैंगिक व्यक्ति दोनों लिंग के हो सकते हैं जैसे: गे (आदमी का आदमी से शारीरिक संबंध), लेसबियन (औरत का औरत से शारीरिक संबंध)। समलैंगिक झुकाव के लिये एक और शब्द प्रयोग किया जाता हैं एल.जी.बी.टी.। लेसबियन, गे, बाइसेक्सुयल और ट्रांसजेंडर का संक्षिप्त नाम हैं।
समलैंगिकता के कारण
इस प्रकार के लैंगिक व्यवहार या चुनाव के पूरी तरह से ज्ञात नहीं है लेकिन विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा किये गये बहुत से शोधों से अलग-अलग परिणाम और व्याख्याएं पायी गयी हैं। इसके पीछे का कारण जैविक, मानसिक या दोनों का मिश्रण हो सकता हैं।
जैविक कारण
बहुत से वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला हैं कि कोई भी व्यक्ति एक विशेष लैंगिक झुकाव के साथ पैदा होता हैं और ये उसके जीन में होता हैं। अतः ये एक प्राकृतिक घटना हैं। लेकिन इस निष्कर्ष का कोई सबूत नहीं हैं कि समलैंगिक व्यवाहर एक साधारण जैविक घटना हैं। लैंगिक चुनाव में आनुवांशिकता एक कारक हो सकती हैं लेकिन इसके साथ ही और कारकों की भी उपस्थिति होती हैं।
सामाजिक व मानसिक कारण
ये वास्तविकता हैं कि सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण एक बच्चें के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। किसी का परिवार, मित्र, समाज और अनुभव ही उसके जीवन के प्रति दृष्टिकोण, भावनाओं और उसका/उसकी गतिविधियों को निर्धारित करता हैं। किसी की लैंगिक झुकाव के लिये मनौवैज्ञानिक कारक बहुत महत्वपूर्ण हैं।
लेकिन ये सत्य हैं कि केवल एक ही कारक नहीं बल्कि बहुत से कारकों का मिश्रण किसी की लैंगिक झुकाव का कारण बनता हैं। और ये प्राकृतिक हैं कि किसी भी व्यक्ति अपनी पसंद के अनुसार क्या खाना हैं. क्या पहनना हैं और किस तरह रहना हैं; चुनने का पूरा अधिकार हैं इसी तरह ये भी प्राकृतिक हैं कि वो ये निर्णय भी खुद ले कि उसे किसके साथ अपने यौन संबंध बनाने हैं, समान लिंग के साथ या विपरीत लिंग के साथ।
समलैंगिकों के खिलाफ भेदभाव
हमारे समाज में समलैंगिकों के साथ बहुत अधिक तथा सभी स्तरों पर भेदभाव किया जाता हैं; जिसकी शुरुआत उनके घर से, उसके बाद बाहर, समाज, देश और पूरे विश्व में होनी शुरु हो जाती हैं। उनका पूरा जीवन संघर्ष से भर जाता सिर्फ इसलिये कि वो एक विशेष लैंगिक झुकाव के साथ पैदा हुये हैं जो दूसरों से अलग हैं। जबकि ये बहुत से मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक शोधों से स्पष्ट हो गया हैं कि इस प्रकार का व्यवहार प्राकृतिक हैं।
कुल मिलाकर समाज की आम धारणा ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ हैं और हम उन्हें अपने में से एक मानने को तैयार नहीं हैं।
भारत में कानून और समलैंगिकता
भारत बहुत ही प्रगतिशील और गतिशील संविधान रखता हैं जो एक तरह से विशाल और जटिल राज्य की रीढ़ की हड्डी हैं। भारतीय संविधान ने अधिकार दिये हैं और देश के सभी नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करता हैं, चाहे वो बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक। संविधान सभी से बिना किसी भेदभाव के एक समान व्यवहार करता हैं। ये सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य हैं कि किसी के भी साथ भेदभाव न हो।
एल.जी.बी.टी. समुदाय एक अल्पसंख्यक समुदाय हैं और संविधान के अनुसार वो भी समान हैं। लेकिन उनका समानता का अधिकार और समाज में समान व्यवहार के अधिकार का नियमित रुप से उल्लंघन हो रहा हैं। न केवल समाज या सभी लेकिन राज्य तंत्र भी उनके साथ अलग ढंग से व्यवहार करता हैं विशेषतः पुलिस. वो अधिकारों के उल्लंघन के लिए नियमित रूप से शिकार बन रहे हैं। वो अपने बुनियादी मानव अधिकार और जीवन का अधिकार जिसमें जीवन का पूरा आनंद लेकर जीने का अधिकार शामिल है, से वंचित हैं।
एल.जी.बी.टी. समुदाय के लिये आई.पी.सी. की धारा 377
हमारे कानूनों में प्रमुख कमी या विवादास्पद कानूनी प्रावधान में से एक भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 377 है।
आई.पी.सी. की धारा 377 कहती है:
अप्राकृतिक अपराध: "जो कोई भी स्वेच्छा से किसी भी आदमी, औरत या जानवर के साथ प्रकृति के आदेश के खिलाफ शारीरिक संभोग करेगा, आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा, या उल्लेख की अवधि तक कारावास में रखा जायेगा जिसे 10 साल तक बढाया जा सकता हैं और जो जुर्माना भरने के लिये भी उत्तरदायी होगा।"
व्याख्या: इस धारा में प्रवेश को शारीरिक समागम बनाने के लिये आवश्यक अपराध मानते हुये व्याख्या की गयी हैं।
इसलिए, धारा 377 समलैंगिक गतिविधि का अपराधीकरण करती हैं और इसे उच्च दंड जैसे आजीवन कारावास, के लिये दंडनीय बनाती है।
सुप्रीम कोर्ट और एल.जी.बी.टी. अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एक दूरगामी निर्णय को खारिज कर दिया और स्थिति को पहले की तरह कर दिया, दुबारा समलैंगिक रिश्ता एक अपराध हैं। इस निर्णय से एल.जी.बी.टी. समुदाय के साथ ही समाज के उदारवादी विचारधारा के लोगों को भी आश्चर्यचकित कर दिया। इस पर सुप्रीम कोर्ट नें कारण दिया हैं कि भारतीय समाज समान लिंग संबंधों को स्वीकार करने के लिये अभी भी पूरी तरह से परिपक्व नहीं हैं और यदि धारा 377 में बदलाव करके समलैंगिकता को वैध बनाना हैं तो इसमें बदलाव संसद द्वारा किया जायेगा न कि सुप्रीम कार्ट द्वारा।
समलैंगिक पुरुष :
- ऐसे पुरुष जो बचपन से ही महिलाओं के साथ ही रहे हैं और जिन्हें माँ ने ही पाल-पोसकर बड़ा किया है। इससे धीरे-धीरे उनकी मानसिक संरचना बदलकर ज्यादातर स्त्रेण हो जाती है।
- वैज्ञानिक कहते हैं कि समलैंगिकता का कारण पुरुषों के सेक्स हार्मोन में परिवर्तन का होना है।
- पत्नी द्वारा पति की उपेक्षा की जाना।
- बचपन की गलतियाँ आदतों में बदल जाती हैं।
- दो दोस्तों का इस कदर जुड़ जाना कि अलग होने का मन न करे।
समलैंगिक स्त्री :
- बचपन से ही उसकी शिक्षा-दीक्षा पुरुषों की तरह दी जाती है जैसे कि उसे बेटी की जगह बेटा कहकर पुकारना। लड़कियों की अपेक्षा लड़के के साथ रहना आदि से स्त्रेण चित्त बदलकर पुरुषों-सा चित्त होने लगता है।
- सेक्स हार्मोन में परिवर्तन का होना भी एक कारण है।
- पति द्वारा इच्छाओं की पूर्ति न कर पाना।
- बचपन की गलतियाँ आदतों में बदल जाती हैं।
- दो दोस्तों का इस कदर जुड़ जाना कि अलग होने का मन न करे।
कई कारण होते हैं समलैंगिकता के
समलैंगिकता के कारण अभी स्पष्ट नहीं हैं, फिर भी वैज्ञानिक जगत की मान्यता है कि आनुवंशिकी और जन्म से पूर्व गर्भ में हार्मोन की गड़बड़ी और वातावरण के प्रभाव इसके कारण माने जाते रहे हैं। कुछ चिकित्सक इसे मानसिक रोग मानते हैं तो बहुत से नहीं। वैज्ञानिकों का कहना है कि समलैंगिकता केवल मनुष्यों में ही नहीं बल्कि कई पशुओं में भी पाई जाती है। पेंग्विन, चिंपाजी और डॉल्फिनों में यह रोग पाया गया है। लेकिन यह सभी प्राकृतिक गड़बड़ी या मानसिक विकारों का शिकार होते हैं।
एलजीबीटी गोद लेने के अधिकार के बारे में और जानें
एलजीबीटी गोद लेने समलैंगिक, समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) व्यक्तियों द्वारा बच्चों की गोद है। यह एक एकल एलजीबीटी व्यक्ति द्वारा की अन्य जैविक बच्चे (सौतेली बच्चे को गोद लेने) और गोद लेने के एक ही लिंग के दो में से एक साथी के द्वारा एक ही सेक्स जोड़ी, गोद लेने के द्वारा एक संयुक्त गोद लेने के रूप में हो सकता है। एक ही लिंग के जोड़ों द्वारा संयुक्त गोद लेने 25 देशों में कानूनी है। एलजीबीटी गोद लेने सवाल यह है कि एक ही लिंग के जोड़ों के विरोधियों पर्याप्त माता-पिता होने के लिए, जबकि अन्य विरोधियों सवाल प्राकृतिक कानून का तात्पर्य क्या है कि गोद लेने के बच्चों के अधिकारी एक प्राकृतिक सही विषमलैंगिक माता पिता द्वारा उठाया जा करने की क्षमता है। चूंकि संविधान और विधियों आमतौर पर एलजीबीटी व्यक्तियों की गोद लेने के अधिकार को संबोधित करने के लिए असफल हो, न्यायिक निर्णय अक्सर तय है कि वे या तो व्यक्तिगत रूप से या जोड़ों के रूप में माता-पिता के रूप में काम कर सकते हैं।
21वीं शताब्दी में भारत सर्वशक्ति और विश्व का नेता बनने के लिये कोशिश कर रहा हैं, वास्तव में इसमें विश्व की सर्वोच्च शक्ति बनने की पूरी क्षमता हैं। लेकिम इस क्षमता पर पूरी तरह से विश्वास तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि हम एक समाज के रुप में तथाकथित निषेध मुद्दों जैसे समलैंगिकता को न केवल स्वतंत्रता से स्वीकार करे बल्कि उन पर स्वतंत्र रुप से बहस भी करें।
अतः इन सभी कारणों और समस्याओं से बचने के लिए आवश्यक है कि किशोरावस्था में बच्चों को सेक्स संबंधी शिक्षा दी जाए। बच्चे को स्वस्थ सेक्स शिक्षा व जानकारी मिलने से बच्चे इस तरह की गलत मानसिकता से बच सकते हैं।
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