जानिए, NPA क्या है ? एनपीए क्यूँ है देश के लिए खतरा | What is NPA (Non Performing Asset) in Hindi
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यदि किसी मियादी ऋण पर 1 वर्ष में एक तिमाही या 90 दिनों से अधिक होने के बावजूद भी इस राशि पर बैंक को ना तो ब्याज और ना ही मूलधन की क़िस्त अदा की गयी हो तो इस प्रकार का ऋण NPA (Non Performing Asset) बैड लोन कहलाता है। भारत में दिसम्बर 2016 में बैंकों (सार्वजनिक + निजी बैंकों) का कुल NPA बढ़कर 9.5% या 14 लाख करोड़ तक पहुँच गया था।.. …
नमस्कार दोस्तों इस आज हम NPA(Non performing Asset) की बात करेंगे की ये NPA क्या होता है. और क्यू बढ़ता हुआ npa बैंक के लिए अच्छा नहीं है. इसके साथ साथ इसके कैलकुलेशन की बात भी करेंगे और देखेंगे की NPA बढ़ने से बैंक के लाभ में क्या बदलाव होता है।
नॉन परफॉर्मिंग एसेट (NPA - Bad Loans) किसे कहते हैं | What is NPA & what are the reasons behind its increase in India
बैंकों की वे परिसंपत्तियां जिन पर बैंक कोई लेनदेन नही कर पाती है या जिन परिसंपत्तियों पर बैंक को कोई रिटर्न नही मिलता है, गैर निस्पदंकारी संपत्तियां (Non Performing Assets -NPA) कहलाती हैं। बैंक की परिसंपत्तियों में ग्राहकों को दिए गए ऋण और एडवांस भुगतान शामिल होते हैंl यदि ग्राहक इन ऋणों का न तो ब्याज देता है और न ही बैंक को मूल कर्ज की वापसी करता है तो इस प्रकार की संपत्तियों को गैर निस्पदंकारी संपत्तियां (NPA) कहा जाता है।
गैर निस्पदंकारी संपत्ति (Non Performing Assets -NPA)
भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक, NPA की पहचान के लिए मार्च 31, 2014 से यह नियम बनाया गया है कि यदि किसी मियादी ऋण पर 1 वर्ष में एक तिमाही या 90 दिनों से अधिक होने के बावजूद भी इस राशि पर बैंक को ना तो ब्याज और ना ही मूलधन की क़िस्त अदा की गयी हो तो इस प्रकार का ऋण NPA कहलाता है। कृषि ऋणों के सम्बन्ध में किसी ऋण को NPA तब कहा जाता है जब ब्याज तथा मूलधन की क़िस्त का भुगतान, इसकी अदायगी की तिथि के बाद दो फसलों तक नही हो सके।
सन 1993 में किसी ऋण को NPA तब कहा जाता था जबकि ब्याज और मूलधन की क़िस्त अदायगी 12 महीने तक ना हो, इसे 1995 में घटाकर 6 महीने कर दिया गया था और 2014 से 3 महीने कर दिया गया।
किसी बैंक की कुल निस्पदंकारी संपत्तियों के प्रतिशत के रूप में गैर निस्पदंकारी संपत्तियों (NPA) का भाग ही गैर निस्पदंकारी संपत्ति अनुपात (Non Performing Assets Ratio) कहलाता है।
अक्टूबर 2009 से रिज़र्व बैंक ने N.P.A. के सम्बन्ध में पूरक व्यवस्था के रूप में ग्रेडेड प्रोविजनिंग प्रणाली की व्यवस्था शुरू की जिसके अनुसार N.P.A. को तीन भागों में बांटा जाता है।
सब स्टैण्डर्ड संपत्तियां (Sub Standard Assets) :- इसके अंतर्गत उस संपत्तियों को रखा जाता है जो कम से कम पिछले 18 माह तक NPA रहीं हों। इसके अंतर्गत गिरवी रखी गयी संपत्तियों का मूल्य उधार दी गयी राशि से कम हो जाता है।
संदिग्ध संपत्तियां (Doubtful Assets) :- इस वर्ग में उन संपत्तियों को रखा जाता जो 18 महीने से अधिक N.P.A. रहीं हों। इस ऋण में वे सभी कमजोरियां होतीं हैं जो कि सब स्टैण्डर्ड संपत्तियों में होतीं हैं।
हानि वाली संपत्तियां (Lossful Assets) :- ऐसी संपत्तियां जिनकी पहचान बैंक के आंतरिक और बाहरी पर्यवेक्षक ने हानि वाली संपत्ति के रूप में गिना हो।
एनपीए क्यूँ है देश के लिए खतरा
NPA एक ऐसा मुद्दा है जिसे बार बार उठाया जाता रहा है और आप सुनते है कि यह भी हमारी इकॉनमी और banks के लिए सिर दर्द बना हुआ है और इसके बारे में हर बार जब भी इकॉनमी की बात होती है कुछ न कुछ ठोस कदम उठाने की बात होती है।
असल में npa को Full Form में Non-performing asset कहा जा सकता है और अगर साधारण भाषा में बात करें तो यह ऐसी सम्पति होती है जिसका देश की अर्थव्यवस्था में कोई योगदान नहीं होता है।
NPA प्रभाव सभी लोगो और देश की अर्थव्यवस्था में पड़ता है क्योंकि
- अगर एनपीए बढ़ जाता है तो इस से देश की अर्थव्यवस्था पर खराब असर पड़ता है।
- Bank के शेयर होल्डर्स को भी इस से नुकसान होता है।
- इस का प्रभाव बैंक्स के मुनाफे पर भी पड़ता है।
Non Performing Assets – NPA के बढ़ने के कारण
- परियोजना के पूरा होने में विलम्ब के कारण ब्याज तथा मूलधन की क़िस्त भुगतान में देरी
- ब्याज दरों में बृद्धि के कारण किश्त भुगतान में कठिनाई
- सार्वजनिक बैंकों द्वारा NPA की गणना के सम्बन्ध में विदेशों में पहले से चली आ रही विधि के स्थान पर सिस्टम आधारित पद्धित अपनाने के कारण NPA में बृद्धि हुई है
- बाजार में मौजूद अनिश्चितता के कारण जिन लोगों ने ऋण लिए हैं उनके द्वारा ऋण न चुका पाना
- जान बूझकर ऋण न चुकाने (willful defaulter) वालों की संख्या में बढ़ोत्तरी होना और ऐसे बकायेदारों के खिलाफ राजनीतिक दखल के कारण पर्याप्त कार्यवाही न हो पाना
- जिस विशेष उद्देश्य के लिए उधार लिया जाता है उस काम के लिए उस धन का उपयोग नहीं किया जाना
List of Willful Defaulter India
NPA रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाये कदम
1. SARFAESI अधिनियम 2002 :- इस अधिनियम का उद्येश्य जानबूझकर ऋणों का भुगतान ना करने वालों पर नियंत्रण लगाना है। यह अधिनियम बैंकों को यह अधिकार प्रदान करता है कि भुगतान प्राप्त ना होने की स्थिति में गिरवी रखी प्रतिभूति को बैंक जब्त कर ले या उस संपत्ति को असेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी को बेच दे या इकाई का प्रबंधन अपने हाथों में ले लें।
2. असेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (Asset Reconstruction Company) :- ये ऐसी कम्पनियाँ होतीं हैं जो कि NPA को बैंकों से खरीद (NPA की कुल राशि से कम दाम पर) लेतीं हैं और फिर इस NPA को उस व्यक्ति से वसूल करने की डील करती हैं जिनके नाम पर उधार होता है।
3. डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (Debt Recovery Tribunal) :- इन ट्रिब्यूनल की स्थापना 1993 में की गयी थीl ये ट्रिब्यूनल लोगों से ऋण वसूलने का कम करते हैं, लेकिन यह अपने उद्येश्यों में सफल नही हो सका था।
NPA से सम्बंधित ताजा आंकड़े
- दिसम्बर 2016 में बैंकों(सार्वजनिक + निजी बैंकों) का कुल NPA बढ़कर 9.5% या 14 लाख करोड़ तक पहुँच गया था जो कि जिसमे 30 सितंबर 2016 तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए 6,30,323 करोड़ रुपये था।
- बैंकों के अलग अलग NPA के हिसाब से सबसे अधिक NPA स्टेट बैंक के पास 108172 cr. है, जबकि दूसरे नंबर पर 38934 cr. के साथ बैंक ऑफ़ बड़ोदा और तीसरे नंबर पर 36519 cr. के साथ बैंक ऑफ़ इंडिया का नंबर आता है।
- सबसे ज्यादा NPA (कुल NPA का 31.5%) माध्यम श्रेणी (Medium Industries)के उद्यमों के ऊपर है जबकि बड़े उद्यमों(Large Industries) के ऊपर कुल NPA का 24% है।
बढ़ते हुए NPA के आकर को देश की बैंकिंग इंडस्ट्री के लिए बड़ा खतरा माना जाता है क्योंकि यदि किसी बैंक का NPA बढ़ जाता है तो उसका लाभ घटता है इसके साथ ही अर्थव्यवस्था में अन्य जरूरी क्षेत्रों के लिए पैसे की कमी समग्र देश के विकास में बाधा बनने लगती है। इसलिए सरकार ने NPA को रोकने के लिए कई उपाय अपनाये हैं और आने वाले समय में यह उम्मीद की जाती है कि जो लोग जानबूझकर ऋण नही चुकाते हैं उनके खिलाफ सख्त कानून बनाया जायेगा। जय हिंद।
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