वन बेल्ट वन रोड (OBOR) परियोजना क्या है? | What is One Belt One Road (OBOR) Project
वन बेल्ट वन रोड (एक पट्टा एक सड़क) चीन द्वारा प्रायोजित एक योजना है जिसमे पुराने सिल्क रोड के आधार पर एशिया, अफ्रीका और यूरोप के देशों को सड़कों और रेल मार्गो से जोड़ा जाना है।.. …
वन बेल्ट वन रोड (एक पट्टा एक सड़क) प्रोजेक्ट | One Belt One Road Project in Hindi
वन बेल्ट वन रोड (OBOR) प्रोजेक्ट, प्रेसिडेंट शी जिनपिंग का पसंदीदा प्लान है। इसके तहत चीन पड़ोसी देशों के अलावा यूरोप को सड़क से जोड़ेगा। ये चीन को दुनिया के कई पोर्ट्स से भी जोड़ देगा।
‘वन बेल्ट वन रोड’ प्रोजेक्ट को न्यू सिल्क रूट भी कहा जा रहा है, ऐसा इसलिए क्योंकि OBOR प्रोजेक्ट को एशिया-अफ्रीका को जोड़ने वाली प्राचीन सिल्क रोड के तर्ज पर ही बनाए जाने की बात कही जा रही है।
14 मई और 15 मई को बीजिंग में इसका औपचारिक तौर पर श्रीगणेश भी हो गया. इसके उद्घाटन के मौके पर चीन समेत 29 देशों के राष्ट्रप्रमुख और 70 अन्य देशों के प्रतिनिधि मौजूद रहे. वन बेल्ट-वन रोड चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का सपना है, जिसका मकसद बताया गया है एशियाई देशों के साथ चीन का संपर्क और सहयोग बेहतर करना और अफ्रीका व यूरोप को भी एशियाई देशों के साथ क़रीबी से जोड़ना।
इस प्रोजेक्ट का मकसद यूरोप, अफ्रीका और एशिया के कई देशों को सड़क और समुद्र रास्तों से जोड़ना है| ऐसा दावा है कि सड़क रास्तों से दुनिया के कई देशों को एक साथ जोड़ने से इन देशों के बीच कारोबार को बढ़ाने और इंफ्रस्ट्रक्चर को मजबूत करने में मदद मिलेगी।
दुनिया के 65 देशों को इस प्रोजेक्ट से जोड़ने की योजना है, जिनमें धरती की आधे से ज्यादा करीब 4.4 अरब आबादी रहती है।
इस प्रोजेक्ट में कई सड़क मार्गों, रेल मार्गों और समुद्र मार्गों से देशों को जोड़ने का प्रस्ताव है. प्रोजेक्ट के पूरा होने में करीब 30 से 40 साल लग सकते हैं।
‘वन बेल्ट वन रोड’ प्रोजेक्ट चीन ने प्रसिद्ध सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट (SREB) और 21 वीं सदी के समुद्री सिल्क रोड (MSR) का एकीकृत स्वरुप है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर बयान जारी कर कहा है कि कोई भी देश ऐसे प्रोजेक्ट को स्वीकार नहीं कर सकता जो संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की उसकी चिंताओं को नकारता हो।
‘वन बेल्ट वन रोड’ प्रोजेक्ट अमेरिकी केंद्रित व्यापार व्यवस्था का प्रत्युत्तर है, यह ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप और ट्रान्साटलांटिक व्यापार और निवेश भागीदारी जैसे प्रोजेक्ट के वर्चस्व को चायनीज प्रत्युतर है। OBOR वास्तव में बहुत बड़ा हो सकता है।
चीन, तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का लाभ उठा के नेपाल तक सिल्क रोड नोड का विस्तार करना चाहता है। यह किंघाई-तिब्बत रेलवे का एक विस्तार के माध्यम से नेपाल और दक्षिण एशिया के साथ जुड़ना चाहता है।
OBOR परियोजना क्या है?
OBOR परियोजना (इसे सदी की सबसे बड़ी परियोजना भी कहा जा रहा है) में दुनिया के 65 देशों को कई सड़क मार्गों, रेल मार्गों और समुद्र मार्गों से देशों को जोड़ने का प्रस्ताव हैl इन 65 देशों में विश्व की आधे से ज्यादा (करीब 4.4 अरब) आबादी रहती हैl वन बेल्ट वन रोड परियोजना का उद्देश्य एशियाई देशों, अफ्रीका, चीन और यूरोप के बीच कनेक्टिविटी और सहयोग में सुधार लाना है। यह रास्ता चीन के जियान प्रांत से शुरू होकर रुस, उज्बेकिस्तान, कजाकस्तान, ईरान, टर्की, से होते हुए यूरोप के देशों पोलैंड उक्रेन, बेल्जियम, फ़्रांस को सड़क मार्ग से जोड़ते हुए फिर समुद्र मार्ग के जरिए एथेंस, केन्या, श्रीलंका, म्यामार, जकार्ता, कुआलालंपुर होते हुए जिगंझियांग (चीन) से जुड़ जाएगा। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने में करीब 30 साल लग सकते हैं और इसके 2049 तक पूरा होनी की उम्मीद है।
अमेरिका के वर्चस्व को ड्रैगन की चुनौती
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति चीन, सड़क मार्गों पर अपना दबदबा बनाना चाहता है। अमेरिका और चीन के बीच चल रही होड़ में इससे चीन को फायदा होगा। बता दें कि ज्यादातर समंदर मार्गों पर अभी भी अमेरिका का एकतरफा वर्चस्व है इसको देखते हुए चीन ने अपना खास जोर सड़क मार्गों को विकसित करने में लगाएगा जिससे अमेरिका को कारोबार में टक्कर दी जा सके।
अर्थशास्त्री इसे उस मार्शल प्लान की तर्ज पर देख रहे हैं, जिसने दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका को दुनिया की सुपर पावर बना दिया, लेकिन ये उससे भी बड़ा प्रोजेक्ट है. अगर कीमत के लिहाज़ से देखा जाए तो आज की क़ीमत के हिसाब से अमेरिका का मार्शल प्लान 130 अरब डॉलर का था, जबकि चीन का प्रोजेक्ट इससे कई गुना ज़्यादा बड़ा यानी दस ख़रब डॉलर का है।
वन बेल्ट-वन रोड प्रोजेक्ट में भारत का रुख (One Belt One Road Initiative and India)
भारत ने चीन में होने जा रहे OBOR शिखर सम्मेलन में प्रतिनिधि भेजने से इनकार कर दिया। दरअसल, इस प्रोजेक्ट में चीन-पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) भी प्रस्तावित है। ये कॉरिडोर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित- बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है, जिस पर भारत अपना हक जताता रहा है। भारत ने इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताया है। कॉरिडोर बनने के बाद कारोबार के अलावा चीन के राजनीतिक हस्तक्षेप से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
दक्षिण एशिया में चीन का प्रभाव बढ़ेगा
नेपाल, बांग्लादेश ने चीन के साथ हाल ही में करार किया है. वो इस प्रोजेक्ट में शामिल हो रहे हैं. वहीं श्रीलंका, म्यांमार भी शिखर सम्मेलन के दौरान इस प्रोजेक्ट से जुड़ने की इच्छा जता सकते है. पाकिस्तान पहले से ही चीन का अहम सहयोगी बना बैठा है।
दक्षिण एशियाई देशों के बीच भारत के दबदबे को कम करने के लिए ये प्रोजेक्ट चीन के लिए काफी खास है. इन हालात में भारत के सभी पड़ोसी देशों पर चीन की पकड़ और मजबूत हो जाएगी।
साथ ही इन देशों में चीनी नागरिकों और कॉरिडोर के इलाके में चीनी सैनिकों की मौजूदगी भी देश के संप्रभुता के लिहाज से खतरा हो सकती है।
वन बेल्ट वन रोड मैप (One Road One Belt Map)
एक रूट बीजिंग को तुर्की तक जोड़ने के लिए प्रपोज्ड है। यह इकोनॉमिक रूट सड़कों के जरिए गुजरेगा और रूस-ईरान-इराक को कवर करेगा।
दूसरा रूट साउथ चाइना सी के जरिए इंडोनेशिया, बंगाल की खाड़ी, श्रीलंका, भारत, पाकिस्तान, ओमान के रास्ते इराक तक जाएगा।
पाक से साथ बन रहे CPEC को इसी का हिस्सा माना जा सकता है। फिलहाल, 46 बिलियन डॉलर के चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) पर काम चल रहा है। बांग्लादेश, चीन, भारत और म्यांमार के साथ एक कॉरिडोर (BCIM) का प्लान है।
CPEC के तहत पाक के ग्वादर पोर्ट को चीन के शिनजियांग को जोड़ा जा रहा है। इसमें रोड, रेलवे, पावर प्लान्ट्स समेत कई इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट किए जाएंगे।
सिल्क रूट क्या है ?
सिल्क रूट को प्राचीन चीनी सभ्यता के व्यापारिक मार्ग के रूप में जाना जाता हैl 200 साल ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी के बीच हन राजवंश के शासन काल में रेशम का व्यापार बढ़ाl 5वीं से 8वीं सदी तक चीनी, अरबी, तुर्की, भारतीय, पारसी, सोमालियाई, रोमन, सीरिया और अरमेनियाई आदि व्यापारियों ने इस सिल्क रूट का काफी इस्तेमाल किया। ज्ञातब्य है कि इस मार्ग पर केवल रेशम का व्यापार नहीं होता था बल्कि इससे जुड़े सभी लोग अपने-अपने उत्पादों जैसे घोड़ों इत्यादि का व्यापार भी करते थे।
लद्दाख के एक बड़े इलाके पर चीन का कब्ज़ा है. उसके पश्चिम में पाकिस्तान ने अपने कब्ज़े का एक बड़ा हिस्सा 1962 की भारत-चीन लड़ाई के बाद चीन के सुपुर्द कर दिया है. कराकोरम हाइवे कश्मीर में चीन का पहला trans-border infrastructure project है जो साठ के दशक का है. तब से ही पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में चीन का दखल बढ़ता गया है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के साथ जुड़ने से कश्मीर विवाद में चीन की भूमिका और बढ़ गई है।
1400 अरब डॉलर का है ड्रैगन का ड्रीम प्रोजेक्ट
ओबीओआर लगभग 1,400 अरब डॉलर की परियोजना है. चीन को उम्मीद है कि उसका यह ड्रीम प्रोजेक्ट 2049 तक पूरा हो जाएगा. 2014 में आई रेनमिन यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि नई सिल्क रोड परियोजना करीब 35 वर्ष में यानी 2049 तक पूरी होंगी. यानि समाजवादी चीन बनने की अपनी 100वीं वर्षगांठ को और अभिमान के साथ मनाने का चीन ने अभी से पूरा खांका तैयार कर लिया है।
चीन के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में शामिल न होने वाला भारत दक्षिण एशिया का अकेला देश रह गया है
अमेरिका का यू-टर्न
14 और 15 मई को हुए OBOR फोरम में अब अमेरिका भी शामिल होगा. अमेरिका ने अचानक यू-टर्न लेते हुए यह फैसला किया है. दोनों देशों का यह कदम भारत पर काफी दबाव डालने वाला है.
प्रोजेक्ट में कौन कौन सी मुश्किलें होंगी
OBOR के समंदर मार्ग पर साउथ एशिया सी के विवाद का साया होगाl साउथ एशिया सी को लेकर चीन का जापान समेत कई देशों के साथ विवाद हैl प्रोजेक्ट के लिहाज से एक बड़ा खतरा सुरक्षा का भी हैl चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा के लिए तालिबान समेत कई आतंकी संगठन भी बड़ा खतरा बन सकते हैंl यूरोप के कई बड़े देश इस परियोजना से दूरी बनाने पर विचार कर रहे हैं क्योंकि उनके आर्थिक और पर्यावरणीय हितों का ध्यान नही रखा गया है।
भारत का जवाब
ईस्ट एशिया पॉलिसी के तहत हम एक ट्राईलेटरल हाईवे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। इसमें पड़ोसी देशों को तरजीह दी जाएगी। पॉलिसी के तहत म्यांमार और बांग्लादेश को जोड़ा जाएगा।
गो वेस्ट पॉलिसी के तहत हम ईरान के चाबहार पोर्ट और सेंट्रल एशिया के कुछ और देशों से जुड़ेंगे।
भारत का बयान इसलिए अहमियत रखता है क्योंकि चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट में साउथ एशियाई देशों खासकर भूटान की अनदेखी की गई है। भूटान के चीन से डिप्लोमैटिक रिलेशन नहीं हैं।
भारत-रूस का ग्रीन कॉरिडोर : भारत और रूस साथ मिलकर दोनों देशों के बीच 7200 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाने की तैयारी कर रहे हैं. यह ग्रीन कॉरिडोर भारत और रूस की दोस्ती के 70 साल पूरे होने के मौके पर शुरू होगा. यह ग्रीन कॉरिडोर ईरान होते हुए भारत और रूस को जोड़ेगा. इसके साथ ही भारत यूरोप से भी जुड़ेगा।
CPEC को लेकर भारत विरोध करता रहा है। हमारा दावा है कि कॉरिडोर पाक के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से गुजरेगा, तो इससे सुरक्षा जैसे मसलों पर असर पड़ेगा।
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