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जैन धर्म का संक्षिप्त विवरण: जानिए भगवान महावीर की शिक्षाएं एवं संदेश | Jainism Detailed: Lord Mahavira Philosophy, Education & Message


महावीर की शिक्षाएं और जैन धर्म के प्रसार के कारणों का संक्षिप्त विवरण

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जैन धर्म का संक्षिप्त विवरण | Jainism Detailed

जैन धर्म ने गैर-धार्मिक विचारधारा के माध्यम से रूढ़िवादी धार्मिक प्रथाओं पर जबरदस्त प्रहार किया। जैन धर्म लोगों की सुविधा हेतु मोक्ष के एक सरल, लघु और सुगम रास्ते की वकालत करता है। यहाँ हम जैन धर्म, महावीर की शिक्षाएं और जैन धर्म के प्रसार के कारणों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं।

जैन शिक्षा एवं संदेश | Shri Bhagvan mahavir ki Shiksha

जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जैन का शाब्दिक अर्थ कर्मों का नाश करनेवाला और 'जिन भगवान' के अनुयायी। जैन धर्म ने गैर-धार्मिक विचारधारा के माध्यम से रूढ़िवादी धार्मिक प्रथाओं पर जबरदस्त प्रहार किया। जैन धर्म लोगों की सुविधा हेतु मोक्ष के एक सरल, लघु और सुगम रास्ते की वकालत करता है। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।

वर्धमान महावीर (539-467 ई.पू.)

ध्यान मेरा पिता है, अहिंसा मेरी माता है, ब्रह्मचर्य मेरा भाई है, अनासक्ति मेरी बहन है, शांति मेरी पत्नी है और सत्य मेरा मित्र है। अगर ये सब मेरा परिवार है तो मैं अकेला कहाँ हूँ।’

  1. महावीर का जन्म वैशाली के नजदीक कुंडग्राम में क्षत्रिय कुल में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम सिद्धार्थ और त्रिशला था।
  2. उनकी पत्नी का नाम यशोदा था।
  3. तेरह वर्षों की कठोर तपस्या और साधना के बाद उन्हें सर्वोच्च आध्यात्मिक ज्ञान, जिसे “कैवल्य ज्ञान” कहा जाता है, की प्राप्ति हुई। इसके बाद उन्हें महावीर या जिन कहा जाने लगा।
  4. उन्होंने तीस साल तक जैन धर्म के सिद्धांत का प्रचार किया और जब वह 72 वर्ष के थे तो राजगृह के पास पावापुरी में उनका निधन हो गया।

जैन धर्म के उदय के कारण

  1. 6ठी शताब्दी ई.पू. में धार्मिक अशांति।
  2. उत्तरवैदिक काल की जटिल रस्में और बलिदान जो काफी मंहगे थे और आम जनता द्वारा स्वीकार्य नहीं थे।
  3. पुजारियों के उदय के कारण अंधविश्वास और विस्तृत अनुष्ठानों की परम्परा का जन्म।
  4. कठोर जाति व्यवस्था।
  5. व्यापार के विकास के कारण वैश्यों की आर्थिक हालत में सुधार हुआ। जिसके परिणामस्वरूप वे वर्ण व्यवस्था में अपनी सामाजिक स्थिति में सुधार करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने नए उभरते हुए धर्म का समर्थन किया।

महावीर की शिक्षाएं

  1. महावीर ने वेदों के एकाधिकार को अस्वीकार किया और वैदिक अनुष्ठानों पर आपत्ति जताई।
  2. उन्होंने जीवन के नैतिक मूल्यों की वकालत की। उन्होंने कृषि कार्य को भी पाप माना था क्योंकि इससे पृथ्वी, कीड़े और जानवरों को चोट पहुँचती है।
  3. महावीर के अनुसार, तप और त्याग का सिद्धांत उपवास, नग्नता और आत्म यातना के अन्य-उपायों के अभ्यास के साथ जुड़ा हुआ है।

jain education

जैन धर्म का प्रसार

  1. संघ के माध्यम से, महावीर ने अपनी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया, जिसमें महिलाएं और पुरुष दोनों शामिल थे।
  2. चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंग के शासक खारवेल और दक्षिण भारत के शाही राजवंश जैसे गंग, कदम्ब, चालुक्य और राष्ट्रकूट के संरक्षण में जैन धर्म का प्रसार हुआ।
  3. जैन धर्म की दो शाखाएँ हैं- श्वेताम्बर (सफेद वस्त्र धारण करने वाला) और दिगम्बर (आकाश को धारण करने वाला या नंगा रहने वाला)।
  4. प्रथम जैन संगीति का आयोजन तीसरी शताब्दी ई.पू. में पाटलीपुत्र में हुआ था, जिसकी अध्यक्षता दिगम्बर मत के नेता स्थूलबाहू ने की थी।
  5. द्वित्तीय जैन संगीति का आयोजन 5वीं शताब्दी ईस्वी में वल्लभी में किया गया था। इस परिषद में 'बारह अंगों' का संकलन किया गया था।

जैन धर्म अपनाने के बाद एक व्यक्ति को पांच प्रतिज्ञाएं लेनी चाहिए:

  • किसी भी जीवित प्राणी को नुकसान नहीं पहुँचाएंगे – अहिंसा
  • ऐसा सत्य बोले जिससे किसी को कष्ट न हो – सत्य
  • ऐसा कुछ भी ना लें, जिसे किसी के द्वारा दिया न गया हो – अस्तेय
  • किसी भी तरह की कामुक खुशी में लिप्त ना हो – ब्रह्मचर्य (महावीर से जुड़ा हुआ)
  • उन लोगों को भौतिक चीजों और स्थानों से खुद को अलग करना होगा – अपरिग्रह

जैन धर्म का मूलमंत्र

णमो अरिहंताणं , णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं।

णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।

वर्तमान के लिए हितकर वीर वाणी

भगवान महावीर द्वारा कहे गए सिद्धान्त इस युग के लिए सर्वथा प्रासंगिक हैं उनके कुछ अनमोल वचन यहाँ प्रस्तुत हैं-

  1. पेड़-पौधे, जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी सभी में जीवन है अतः इनकी व्यर्थ में हिंसा नहीं करनी चाहिए।
  2. प्रत्येक प्राणीमात्र की आत्मा शक्तिरूप में भगवान परमात्मा है अतः सबको अपने समान समझो।
  3. जो व्यवहार तुम्हें दूसरों के द्वारा प्रतिकूल लगता है वैसा व्यवहार तुम दूसरों के प्रति मत करो।
  4. ईश्वर जगत् का कत्र्ता नहीं है वह परमवीतराग है।
  5. ईश्वर का संसार में पुनर्जन्म नहीं होता वह जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
  6. हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पांचों पापों का त्याग करो।
  7. चैरासी लाख योनियों में भ्रमण करते हुए प्राणियों के लिए मात्र धर्म ही सहारा है।
  8. आवश्यकता से अधिक परिग्रह संचय मत करो।
  9. जैसे शरीर के लिए भोजन आवश्यक है, वैसे ही आत्मा के लिए प्रभुभक्ति आवश्यक है।

त्यादि वचनों का जीवन में पालन करना चाहिए।

भगवान महावीर ने अपनी दिव्य वाणी से हमें जो शिक्षाएँ दी हैं, यदि हम उन शिक्षाओं की गहराई समझ पाएँगे और उन्हें अपने जीवन में इस्तेमाल कर पाएँगे, तो ही हम महावीर (तीर्थंकर) का लाभ संसार रूपी भवसागर को पार करने के लिए ले पाएँगे।

भगवान महावीर ने अपनी पूरी जिन्दगी आध्यात्मिक स्वतंत्रता का उपदेश देने में समर्पित कर दी। सत्तर वर्ष की आयु में, भगवान महावीर ने 527 ईसा पूर्व निर्वाण को प्राप्त किया था, जिसका अर्थ यह है कि महावीर जन्म और मृत्यु के बंधन (चक्र) से मुक्त हो गए। I Love My India जय हिंद।

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