कौन थी रानी पद्मिनी / रानी पद्मावती रोचक इतिहास व कहानी ! | Rani Padmini / Rani Padmavati History & Story
Contribution of Sardar Vallabhbhai Patel in Current Modern India
रानी पद्मिनी, चित्तौड़ की रानी थी। पद्मिनी को पद्मावती के नाम से भी जाना जाता है, वह 13 वीं -14 वीं सदी की महान भारतीय रानी (रानी) है। रानी पद्मिनि के साहस और बलिदान की गौरवगाथा इतिहास में अमर है। …
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के किलों का इतिहास बड़ा ही रोचक है. यहाँ के किलों को सिर्फ यहाँ के राजपूतों की बहादुरी के लिए बस नहीं जाना जाता है, बल्कि इसे जाना जाता है यहाँ की सुंदर रानी पद्मावती या पद्मिनी के लिए. रानी पद्मावती के जीवन की कहानी वीरता, त्याग, त्रासदी, सम्मान और छल को दिखाती है. रानी पद्मिनी अपनी सुंदरता के लिए समस्त भारत देश में प्रसिद्ध थी. वैसे ऐसा कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि रानी पद्मिनी वास्तव में अस्तित्व में थी या नहीं. पद्मावत एक कविता थी, जिसे मालिक मोहम्मद जायसी ने 1540 में लिखा, जिसमें पहली बार पद्मावती के बारे में लिखित दस्तावेज मिले थे, जो कि लगभग उस घटना के 240 सालों बाद लिखा गया था।
रानी पदमिनी की कहानी | Rani Padmini / Padmavati) Biography in Hindi
पद्मावती, रावल रतन सिंह और अलाउद्दीन खिलजी तीनों का जीवन एक बिंदु पर आकर जुड़ जाता है. कुछ लोग पद्मावती को सिर्फ कहानी का एक पात्र ही मानते है. अलाउद्दीन के इतिहासकारों ने मुस्लिम शासक का राजपुताना में उस विजय को अपने पन्नों में जगह दी, ताकि वे सिध्य कर सकें कि राजपुताना राज्य में सुल्तान ने विजत प्राप्त की थी. वैसे राजपूत और हिन्दू वंश इस कहानी को एक कहानी ही मानते है और इसमें बिलकुल भी विश्वास नहीं करते है।
पद्मिनी सिंहल द्वीप (श्रीलंका) की अद्वितीय सुंदरी राजकन्या तथा चित्तौड़ के राजा भीमसिंह अथवा रत्नसिंह की रानी थी। उसके रूप, यौवन और जौहर व्रत की कथा, मध्यकाल से लेकर वर्तमान काल तक चारणों, भाटों, कवियों, धर्मप्रचारकों और लोकगायकों द्वारा विविध रूपों एवं आशयों में व्यक्त हुई है।
रानी पद्मावती परिवार (Rani Padmini Family)
पूरा नाम - रानी पद्मिनी, जन्म स्थान - सिंघाला, माता का नाम - चम्पावती, पिता का नाम - गंधर्भसेना, पति का नाम - राजा रावल रतन सिंह, मृत्यु - 1303 (चित्तोर).
रानी पद्मावती राजा गन्धर्व और रानी चम्पावती की बेटी थी. जो कि सिंघल कबिले में रहा करती थी. पद्मावती के पास एक बोलने वाला तोता ‘हीरामणि’ भी था, जो उनके बेहद करीब था. पद्मावती बहुत सुंदर राजकुमारी थी, जिनकी सुन्दरता के चर्चे दूर-दूर तक थे. पद्मावत कविता में कवी ने उनकी सुन्दरता को बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है. उनके अनुसार पद्मावती के पास सुंदर तन था, अगर वे पानी भी पीती तो उनके गले के अंदर से पानी देखा जा सकता, अगर वे पान खाती तो पान का लाल रंग उनके गले में नजर आता।
पद्मावती के लिए उनके पिता ने एक स्वयंवर आयोजित करवाया, जिसमें देश के सभी हिन्दू राजा, राजपूतों को आमंत्रण भेजा गया. मलकान सिंह जो एक छोटे से राज्य के राजा थे, उन्होंने सबसे पहले राजकुमारी पद्मावती का हाथ माँगा. चित्तोर के राजा रावल रतन सिंह भी इस स्वयंवर में गए थे, लेकिन उनकी पहली से 13 रानियाँ थी. रावल रतन सिंह ने मलकान सिंह को इस स्वयंवर में हरा दिया और रानी पद्मावती से विवाह कर लिया. वे अपनी पत्नी पद्मावती के साथ चित्तोर आ गए।
रानी पद्मावती की कहानी (Rani Padmini Story)
12 वीं एवं 13 वीं शताब्दी के समय चित्तोर में राजपुत राजा ‘रावल रतन सिंह’ का राज्य था, जो सिसोदिया राजवंश के थे. वे एक बहादुर और महान योद्धा थे. रावल रतन अपनी पत्नी पद्मावती से अत्याधिक प्रेम किया करते थे, इससे पहले इनकी 13 शादियाँ हो चुकी थी, लेकिन पद्मावती के बाद इन्होने कोई विवाह नहीं किया था. राजा बहुत अच्छे शासक थे, जो अपनी प्रजा से बहुत प्यार करते थे, इसके अलावा राजा को कला का बहुत शौक था. देश के सभी कलाकारों, नर्तकियों, कारीगरों, संगीतकार, कवि, गायक आदि का राजा स्वागत करते और उन्हें सम्मानित करते थे. उनके राज्य में एक बहुत अच्छा गायक ‘राघव चेतक’ था. लेकिन गायकी के अलावा राघव को काला जादू भी आता था, जो बात किसी को नहीं पता थी. राघव ने अपनी इस प्रतिभा का इस्तेमाल अपने ही राजा के खिलाफ करना चाहा, और वह एक दिन रंगे हाथों पकड़ा भी गया. राजा को जब ये बात पता चली, तब उसने सजा के रूप में उसका मुंह काला कर उसे गंधे में बिठाकर अपने राज्य से बहिष्कृत कर दिया. इस कड़ी और घिनौनी सजा से राजा रतन सिंह के दुश्मन और बढ़ गए, राघव चेतन ने राजा के खिलाफ बगावत कर दी।
अब इस कहानी में अलाउद्दीन खिलजी आते है. राघव चेतक अपने इस अपमान के बाद दिल्ली की ओर बढे, ताकि वे दिल्ली के सुल्तान से हाथ मिला सकें, और चित्तोर में हमला कर सकें. राघव चेतक अलाउद्दीन खिलजी के बारे में अच्छे से जानता था, उसे पता था कि सुल्तान दिल्ली के पास जंगल में रोज शिकार के लिए आता है. राघव अलाउद्दीन खिलजी से मिलने की चाह में रोज जंगल में बैठे बांसुरी बजाता रहता था।
एक दिन राघव की किस्मत ने पलटी खाई, उसने अलाउद्दीन खिलजी के जंगल में आते ही सुरीली आवाज में बांसुरी बजाना शुरू कर दिया. इतनी सुंदर बांसुरी की आवाज जब अलाउद्दीन खिलजी और उसके सैनिको के कानों में पड़ी तो सब आश्चर्यचकित हो गए. अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सैनिकों को उस इन्सान को ढूढने के लिए भेजा, राघव को सैनिक ले आये. अलाउद्दीन खिलजी ने उसे दिल्ली में अपने दरबार में आने को कहा. चालाक राघव ने इस मौके का फायदा उठाते हुए सुल्तान से कहा कि जब उसके पास इतनी सुंदर सुंदर वस्तुएं है, तो वो क्यूँ इस साधारण से संगीतकार को अपने राज्य में बुला रहा है. सुल्तान सोच में पड़ गए और राघव से अपनी बात को स्पष्टता से समझाने को कहा. राघव तब सुल्तान को बताता है कि वो एक गद्दार है, साथ ही वो वहां की रानी पद्मावती की सुन्दरता का वखान कुछ इस तरह करता है कि अलाउद्दीन खिलजी उसकी बात सुन कर ही उत्तेजना से भर जाते है और चित्तोर में हमले का विचार कर लेते है. अलाउद्दीन खिलजी सोचता है कि इतनी सुंदर रानी को उसके हरम की सुन्दरता बढ़नी चाहिए।
चित्तौड़ राज्य
प्रजा प्रेमी और न्याय पालक राजा रावल रत्न सिंह चित्तौड़ राज्य को बड़े कुशल तरीके से चला रहे थे। उनके शासन में वहाँ की प्रजा हर तरह से सुखी समपन्न थीं। राजा रावल रत्न सिंह रण कौशल और राजनीति में निपुण थे। उनका भव्य दरबार एक से बढ़कर एक महावीर योद्धाओं से भरा हुआ था। चित्तौड़ की सैन्य शक्ति और युद्ध कला दूर-दूर तक मशहूर थी।
अलाउद्दीन खिलजी की चित्तोर में चढ़ाई (Allahuddin Khilji Attack on Chittor)
पद्मावती की सुन्दरता को सुन अलाउद्दीन खिलजी चित्तोर में चढ़ाई शुरू कर देता है. वहां पहुँच कर अलाउद्दीन खिलजी देखता है कि चित्तोर में सुरक्षा व्यवस्था बहुत पुख्ता है, वो निराश हो जाता है. लेकिन पद्मावती को देखने की उसकी चाह बढ़ती जा रही थी, जिस वजह से वो रावल रतन सिंह को एक सन्देश भेजता है, और बोलता है कि वो रानी पद्मावती को एक बहन की हैसियत से मिलना चाहता है. किसी औरत से मिलना चाहना, ये बात किसी राजपूत को बोलना शर्म की बात माना जाता है, उनकी रानी को बिना परदे के देखने की इजाज़त किसी को नहीं होती है. अलाउद्दीन खिलजी एक बहुत ताकतवर शासक था, जिसके सामने किसी को न कहने की हिम्मत नहीं थी. हताश रतन सिंह, सुल्तान के रोष से बचने और अपने राज्य को बनाए रखने के लिए उनकी यह बात मान लेते है।
रानी पद्मावती अपने राजा की बात मान लेती है. लेकिन उनकी एक शर्त होती है, कि सुल्तान उन्हें सीधे नहीं देख सकते बल्कि वे उनका आईने में प्रतिबिम्ब देख सकते है. अलाउद्दीन खिलजी उनकी इस बात को मान जाते है. उन दोनों का एक निश्चय किया जाता है, जिसके लिए विशेष तैयारी की जाती है. खिलजी अपने सबसे ताकतवर सैनिकों के साथ किले में जाता है, जो किले में गुप्त रूप से देख रेख भी करते है. अलाउद्दीन खिलजी पद्मावती को आईने में देख मदहोश ही हो जाता है, और निश्चय कर लेता है कि वो उनको पाकर ही रहेगा. अपने शिविर में लौटते समय, रतन सिंह उसके साथ आते है. खिलजी इस मौके का फायदा उठा लेता है और रतन सिंह को अगवा कर लेता है, वो पद्मावती एवं उनके राज्य से राजा के बदले रानी पद्मावती की मांग करते है।
संगारा चौहान राजपूत जनरल गोरा और बादल ने अपने राजा को बचाने के लिए सुल्तान से युद्ध करने का फैसला किया. पद्मावती के साथ मिलकर दोनों सेनापति एक योजना बनाते है. इस योजना के तहत वे खिलजी को सन्देश भेजते है कि रानी पद्मावती उनके पास आने को तैयार है. अगले दिन सुबह 150 पालकी खिलजी के शिविर की ओर पलायन करती है. जहाँ राजा रतन सिंह को रखा गया था, उससे पहले से पालकी रुक जाती है. खिलजी के सभी सैनिक और रतन सिंह जब ये देखते है कि चित्तोर से पालकी आ रहा है तो उन्हें लगता है कि वे अपने साथ रानी पद्मावती को लेकर आये है. जिसके बाद सब राजा रतन सिंह को बहुत अपमानित करते है. सबको आश्चर्य में डालते हुए, इन पालकियों से रानी या उनकी दासी नहीं बल्कि रतन सिंह की सेना के जवान निकलते है, जो जल्दी से रतन सिंह को छुड़ाकर खिलजी के घोड़ों में चित्तोर की ओर भाग जाते है. गोरा युद्ध में पराक्रम के साथ लड़ता है, लेकिन शहीद हो जाता है, जबकि बादल राजा को सही सलामत किले में वापस लाने में सफल होता है।
अपनी हार के बाद खिलजी क्रोध में आ जाता है और अपनी सेना से चित्तोर में चढ़ाई करने को बोलता है. अलाउद्दीन खिलजी की सेना रतन सिंह के किले को तोड़ने की बहुत कोशिश करती है, लेकिन वो सफल नहीं हो पाती है. जिसके बाद अलाउद्दीन अपनी सेना को किले को घेर कर रखने को बोलता है. घेराबंदी के लिए एक बड़ी और ताकतवर सेना को खड़ा किया गया. लगातार कई दिनों तक वे घेराबंदी किये खड़े रहे, जिससे धीरे धीरे किले के अंदर खाने पीने की कमी होने लगी. अंत में रतन सिंह ने अपनी सेना को आदेश दिया कि किले का दरवाजा खोल दिया जाए और दुश्मनों से मरते दम तक लड़ाई की जाये. रतन सिंह के इस फैसले के बाद रानी हताश होती है, उसे लगता है कि खिलजी की विशाल सेना के सामने उसके राजा की हार हो जाएगी, और उसे विजयी सेना खिलजी के साथ जाना पड़ेगा. इसलिए पद्मावती निश्चय करती है कि वो जौहर कर लेगी. जौहर का मतलब होता है, आत्महत्या, इसमें रानी के साथ किले की सारी औरतें आग में कूद जाती है।
रानी पद्मावती की मृत्यु (Rani Padmavati Death)
26 अगस्त सन 1303 में पद्मावती भी जौहर के लिए तैयार हो जाती है और आग में कूद कर अपने पतिव्रता होने का प्रमाण देती है. किले की महिलाओं के मरने के बाद, वहां के पुरुषों के पास लड़ने की कोई वजह नहीं होती है. उनके पास दो रास्ते होते है या वे दुश्मनों के सामने हार मान लें, या मरते दम तक लड़ते रहें. अलाउद्दीन खिलजी की जीत हो जाती है, वो चित्तोर के किले में प्रवेश करता है, लेकिन उसे वहां सिर्फ मृत शरीर, राख और हड्डियाँ मिलती है।
रानी पद्मावती पर फिल्म (Rani Padmavati Movie)
अलाउद्दीन खिलजी एवं पद्मावती के बीच कोई प्रेम कहानी नहीं थी, लेकिन फिर भी ये कहानी बहुत प्रचलित है. इस पर आज से 6-7 साल पहले सोनी टीवी पर एक सीरियल भी आ चूका है. अब बॉलीवुड के महान निर्देशक संजय लीला भंसाली इस विषय पर फिल्म बना रहे है. बहुत समय से संजय ने इस फिल्म के बारे में सोच रखा था, अब जाकर उनका सपना पूरा होते दिखाई दे रहा है. पद्मावती के मुख्य रोल में दीपिका पादुकोण फाइनल है, जबकि राजा रावल रतन सिंह के लिए शाहिद कपूर का नाम है. अलाउद्दीन खिलजी के रोल के लिए रणवीर सिंह फाइनल माने जा रहे थे, जो संजय के पसंदीदा कलाकार भी है. यह फिल्म 1 दिसंबर 2017 को रिलीज़ होगी।
इतिहास में राजा रावल रत्न सिंह, रानी और पद्मावती, सेना पति गौरा और बादल का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है और चित्तौड़ की सेना वहाँ के आम नागरिक भी सम्मान के साथ याद किये जाते हैं जिनहोने अपनी जन्म भूमि की रक्षा के खातिर अपने प्राणों का बलिदान दिया। आज भी चित्तोड़ की महिलाओ के जौहर करने की बात को लोग गर्व से याद करते है। जिन्होंने दुश्मनों के साथ रहने की बजाये स्वयं को आग में न्योछावर करने की ठानी थी। राणी पद्मिनी – Rani Padmini के बलिदान को इतिहास में सुवर्ण अक्षरों से लिखा गया है। I Love My India जय हिंद।
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