जलवायु परिवर्तन क्या हैं ? इसके के कारण, असर और प्रभाव | What is Climate Change (Global Warming) its Impacts & Effects
समाज में यह जागरूकता फैलाये, पर्यावरण की रक्षा कराये…
जलवायु परिवर्तन औसत मौसमी दशाओं के पैटर्न में ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को कहते हैं। ‘ग्लोबल वार्मिंग’ विश्व के लिए कितनी बड़ी समस्या है, ये बात एक आम आदमी समझ नहीं पाता है। उसे ये शब्द थोड़ा ‘टेक्निकल’ लगता है इसलिए वो इसकी तह तक नहीं जाता है। लिहाजा इसे एक वैज्ञानिक परिभाषा मानकर छोड़ दिया जाता है। ज्यादातर लोगों को लगता है कि यह एक दूर की कौड़ी है और फिलहाल संसार को इससे कोई खतरा नहीं है। कई लोग इस शब्द को पिछले दशक से ज्यादा सुन रहे हैं इसलिए उन्हें ये बासी लगने लगा है। …
जलवायु परिवर्तन को रोकना | Climate Change - Global Warming in Hindi
जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग एक वैश्विक समस्या है। जलवायु में तेजी से बदलाव दुनिया भर में चिंता का एक प्रमुख कारण बन गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि प्राकृतिक चक्र के माध्यम से जलवायु में बदलाव आते हैं लेकिन मनुष्यों की गतिविधियों ने पर्यावरण को व्यापक नुकसान पहुंचाया है। ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव के कारण पृथ्वी का वातावरण सूरज से ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा अवशोषित करता है। हालांकि मानवीय गतिविधियां इन गैसों की मात्रा बढ़ा रही हैं विशेष रूप से पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड सुरक्षात्मक ग्रीनहाउस परत को नुकसान पहुंचा रही है जिससे ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन की समस्या हो गई है।
औद्योगिक युग की शुरुआत के बाद से औसत वैश्विक तापमान में 0.8 डिग्री की वृद्धि हुई है। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के तेजी से बदलते माहौल पर चिंता व्यक्त की है। इसलिए वे इस मुद्दे पर लगातार चेतावनी देकर खतरे की घंटी को बजा रहे हैं।
ग्रीन हाउस इफेक्ट क्या हैं
पृथ्वी का वातावरण सूर्य की कुछ ऊर्जा को ग्रहण करता है, उसे ग्रीन हाउस इफेक्ट कहते हैं। पृथ्वी के चारों ओर ग्रीन हाउस गैसों की एक परत होती है। इन गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड शामिल हैं। ये गैसें सूर्य की ऊर्जा का शोषण करके पृथ्वी की सतह को गर्म कर देती है इससे पृथ्वी की जलवायु परिवर्तन हो रहा है। गर्मी की ऋतु लम्बी अवधि की और सर्दी की ऋतु छोटी अवधि की होती जा रही है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि हम लोग उद्योगों और कृषि के जरिए जो गैसे वातावरण में छोड़ रहे हैं (जिसे वैज्ञानिक भाषा में उत्सर्जन कहते हैं), उससे ग्रीन हाउस गैसों की परत मोटी होती जा रही है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, असर और परिणाम (Impacts and Effects of Climate Change)
पृथ्वी ग्रह पर जलवायु परिवर्तन के कई कारण और प्रभाव हैं जिनमें से कुछ निम्न है -
जलवायु पैटर्न में बदलाव :- दुनिया की बढ़ती आबादी के साथ वाहनों की संख्या में वृद्धि हो रही है और औद्योगिकीकरण की बढ़ती गति से जलवायु चक्र अनियमित हो रहा है जिसके परिणामस्वरूप सूखा, अत्यधिक वर्षा, बाढ़, चक्रवात आदि समस्या उत्पन्न हो रही है। साथ ही दुनिया के विभिन्न हिस्सों में गर्मी के मौसम में ठंडी या गर्म हवा चलती है और कुछ देशों में पूरी तरह सूखा भी पड़ रहा है।
ग्रीन कवर का नुकसान :- खेती की जमीन में वृद्धि के साथ ही साथ तेजी से बढ़ती आबादी का निपटान करने के लिए मनुष्यों द्वारा वनों के अकारण काटने या जलाए जाने से जलवायु परिवर्तन पूरी तरह बदल गया है। इन गतिविधियों से वर्षा चक्र की अनियमितता और दुनिया के कुछ स्थानों में तापमान में भारी वृद्धि या गिरावट देखने को मिली है। नतीजतन आज हम सबसे खराब जलवायु परिवर्तन की स्थिति का सामना कर रहे हैं।
सागर जल स्तर में वृद्धि :- जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप समुद्र जल स्तर में वृद्धि हुई है। ग्लेशियरों के पिघलने के कारण महासागर गर्म हो रहे हैं। महासागरों का जल स्तर खतरनाक अनुपात से बढ़ रहा है जो तटीय इलाकों के व्यापक तबाही का कारण बन सकता है। भूमि में पानी का खत्म होना, बाढ़, मिट्टी का क्षरण, खारा पानी आदि दुष्प्रभाव जमीन को तबाह कर देता है। यह तटीय जीवन को तबाह कर खेती, पीने के पानी, मत्स्य पालन और मानव आवास को हानि पहुंचाएगा। ध्रुवीय ग्लेशियर पिघलने से समुद्र के स्तर में भी वृद्धि होगी। लगातार तूफान और टॉर्नेडो पहले ही ऐसे संकेत के रूप में उभरे हैं।
प्राकृतिक संसाधनों की कमी :- जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक संपदा पर नुकसान पहुंचा है। यह ग्लेशियर, प्रवाल भित्तियों, वनस्पति (मैंग्रोव), आर्कटिक और अल्पाइन पारिस्थितिकी तंत्र, बोरियल वन, उष्णकटिबंधीय वन, प्रेयरी झीलों और घास के मैदानों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
संकट में खेती :- जलवायु परिवर्तन का कृषि उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, अधिक देशों में जहां कृषि उत्पादन वर्षा पर निर्भर है। तापमान में वृद्धि रोगों को जन्म देती है जो मनुष्य और कृषि दोनों के लिए विनाशकारी होती है। अनुमान है कि 2100 तक फसलों की उत्पादकता 10-40 प्रतिशत कम हो जाएगी। सूखा और बाढ़ में वृद्धि से फसलों के उत्पादन में अनिश्चितता आएगी। बारिश से पीड़ित क्षेत्रों की फसलों को अधिक नुकसान होगा क्योंकि सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता कम हो जाएगी।
जैव-विविधता को ख़तरा :- तापमान में वृद्धि पशुओं के दूध उत्पादन और प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है। अनुमान है कि तापमान में वृद्धि के कारण 2020 तक दूध उत्पादन 16 मिलियन टन तक और 2050 तक 15 मिलियन टन तक गिर सकता है। मिश्रित नस्लों की प्रजातियां गर्मी के प्रति कम सहिष्णु हैं। इसलिए उनकी प्रजनन क्षमता दूध उत्पादन को प्रभावित करेगी जबकि स्वदेशी नस्लों में जलवायु परिवर्तन का असर कम दिखाई देगा। यदि जलवायु परिवर्तन की घटना को नियंत्रित नहीं किया गया तो कई प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं और क़यामत का कारण बन सकती हैं।
स्वास्थ्य :- अधिक मात्रा में कीटनाशकों के उपयोग से हृदय, फेफड़े और यकृत की बीमारियों, निर्जलीकरण, संक्रामक रोगों, कुपोषण आदि मनुष्यों और जानवरों में विभिन्न बीमारियों को जन्म देती है।
प्राकृतिक वनों की कमी :- वनों की कटाई की गति बढ़ने से अक्सर जंगल की आग, सूखा, उष्णकटिबंधीय तूफान और ज्वालामुखीय गतिविधियों के रूप में इसका प्रतिबिंब दिखाई दे रहा है। ये घटनाएं प्राकृतिक वनों को तबाह कर देती हैं।
विकासशील देशों पर प्रभाव :- यह संभव है कि गरीब और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन की आशंका को सहन करना होगा। इसका कारण यह है कि इन देशों और लोगों के पास जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए क्षमता और संसाधन नहीं हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा असर उन गरीब देशों पर होगा जो समुद्र के बढ़ते स्तर से खुद को सुरक्षित रखने में अपेक्षाकृत कम सक्षम हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण (Reasons and Causes of Climate Change)
जलवायु परिवर्तन, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में तेजी से वृद्धि के कारण जलवायु में अत्यधिक परिवर्तन को दर्शाता है। मुख्य रूप से कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन हमारे लिए एक चिंताजनक मुद्दा बन चुका है। विश्व जनसंख्या और तेजी से आर्थिक विकास में भारी वृद्धि का भुगतान कर रहा है क्योंकि यह प्रगति पर्यावरण के लिए सौहार्दपूर्ण और टिकाऊ नहीं है। कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4), क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स (CFC), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) और ट्रापोस्फेरिक ओजोन (O3) जैसी ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा पर्यावरण में बढ़ रही है जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है। जीवाश्म ईंधन, कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के जलने के कारण वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ रहा है।
जलवायु परिवर्तन के अंतर्गत आंतरिक और बाहरी दोनों कारण हैं। आंतरिक कारणों में जलवायु प्रक्रियाओं में बदलाव (जैसे गर्मी संचलन, ज्वालामुखी विस्फोट) या मानव निर्मित (जैसे ग्रीनहाउस गैसों और धूल उत्सर्जन में वृद्धि) कारण शामिल हैं।
जलवायु परिवर्तन के प्राकृतिक कारण
जलवायु परिवर्तन के लिए महाद्वीपों का सरकना, ज्वालामुखी, समुद्री तरंगों और पृथ्वी के घूमने जैसे कई प्राकृतिक कारण जिम्मेदार हैं। पृथ्वी की जलवायु को एक डिग्री से अधिक ठंडा या गर्म होने के लिए हजारों साल लगते हैं। ज्वालामुखी, महीन राख और गैसों द्वारा जारी निरंतर गर्मी वातावरण का तापमान बढ़ाती है।
- चक्रीय परिवर्तन
- महाद्वीपीय बहाव
- ज्वालामुखी विस्फोट
- पृथ्वी का झुकाव
- समुद्र की लहरें
- आसमान से रेडिएशन
जलवायु परिवर्तन के मानवीय कारण
- ग्रीनहाउस उत्सर्जन
- शहरीकरण और औद्योगिकीकरण
- बढ़ता प्रदूषण
- कोयला आधारित पॉवरहाउस
- प्रौद्योगिकी और परिवहन क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव
- कोयला खनन
- खेती के क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि
- प्लास्टिक / पॉलिथीन का अंधाधुंध उपयोग
- वनों की कटाई
डब्ल्यू-डब्ल्य.एफ. की एक रिपोर्ट के अनुसार अगले 50 साल में दुनिया उजड़ जाएगी। यह महज किसी ज्योतिषी की भविष्यवाणी नहीं हैं, बल्कि पर्यावरण से जुड़े ख्याति के वैज्ञानिकों की है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जिस रफ्तार से दुनिया के संसाधनों की लूट हो रही है, उसके हिसाब से पचास साल के अंदर दुनिया की आबादी की जरूरतों को मुहैया कराने के लिए पृथ्वी जैसे कम-से-कम दो और ग्रहों पर कब्जा करने की आवश्यकता पड़ जाएगी। पर्यावरण से जुड़ी दुनिया की सबसे मशहूर संस्था वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ) की ताजा रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
डब्ल्यू-डब्ल्यू.एफ की इस रिपोर्ट में वैज्ञानिक साफ चेतावनी देते हैं कि या तो हमें अपनी अय्याशी की लाइफ स्टाइल को बदल देना चाहिए या फिर पृथ्वी के जैसे ही दो और ग्रहों की तलाश कर उन पर कब्जे की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए, क्योंकि सन् 2050 तक तो यह पृथ्वी हमारे लिए बेकार हो जाएगी।
ग्लोबल वॉर्मिंग है क्या?
भारत में भी ग्लोबल वार्मिंग एक प्रचलित शब्द नहीं है और भाग-दौड़ में लगे रहने वाले भारतीयों के लिए भी इसका अधिक कोई मतलब नहीं है। लेकिन विज्ञान विश्व की बात करें तो ग्लोबल वार्मिंग को लेकर भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं। इसको 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है। यह खतरा तृतीय विश्वयुद्ध या किसी क्षुद्रग्रह (एस्टेरोइड) के पृथ्वी से टकराने से भी बड़ा माना जा रहा है।
ग्लोबल वार्मिंग (जलवायु परिवर्तन) यानी सरल शब्दों में कहें तो हमारी धरती के तापमान में लगातार बढ़ोतरी होना। हमारी धरती प्राकृतिक तौर पर सूर्य की किरणों से गरम होती है। ये किरणें वायुमंडल से गुजरते हुए पृथ्वी की सतह से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित होकर लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर धरती के ऊपर एक प्राकृतिक आवरण बना लेती हैं। यह आवरण लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस तरह धरती को गरम बनाए रखता है। इंसानों, दूसरे प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी मोटा होता जाता है। ऐसे में यह आवरण सूर्य की ज्यादा किरणों को रोकने लगता है और फिर यहीं से शुरू होते हैं ग्लोबल वॉर्मिंग के दुष्प्रभाव मसलन समद्र स्तर ऊपर आना, मौसम में एकाएक बदलाव और गर्मी बढ़ना, फसलों की उपज पर असर पड़ना और ग्लेशियरों का पिघलना। यहां तक कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से प्राणियों की कई प्रजातियां भी लुप्त हो चुकी हैं।
ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के उपाय
- वैज्ञानिकों और पर्यावरणवादियों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग में कमी के लिए मुख्य रुप से सीएफसी गैसों का ऊत्सर्जन कम रोकना होगा और इसके लिए फ्रिज़, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों का इस्तेमाल कम करना होगा या ऐसी मशीनों का उपयोग करना होगा जिनसे सीएफसी गैसें कम निकलती हैं।
- औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से निकले वाला धुँआ हानिकारक हैं और इनसे निकलने वाला कार्बन डाई ऑक्साइड गर्मी बढ़ाता है। इन इकाइयों में प्रदूषण रोकने के उपाय करने होंगे।
- वाहनों में से निकलने वाले धुँए का प्रभाव कम करने के लिए पर्यावरण मानकों का सख़्ती से पालन करना होगा।
- उद्योगों और ख़ासकर रासायनिक इकाइयों से निकलने वाले कचरे को फिर से उपयोग में लाने लायक बनाने की कोशिश करनी होगी।
- और प्राथमिकता के आधार पर पेड़ों की कटाई रोकनी होगी और जंगलों के संरक्षण पर बल देना होगा।
- अक्षय ऊर्जा के उपायों पर ध्यान देना होगा यानी अगर कोयले से बनने वाली बिजली के बदले पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा और पनबिजली पर ध्यान दिया जाए तो आबोहवा को गर्म करने वाली गैसों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
कुल मिलाकर जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग मानव समाज के लिए एक बड़ा खतरा बनकर उभरा है। आज तक मनुष्य इस तरह के बड़े पर्यावरण संकट का सामना करने के लिए मजबूर नहीं हुआ। अगर हम 'ग्लोबल वार्मिंग’ को रोकने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाते हैं, तो हम पृथ्वी पर जीवन को बचाने में सक्षम नहीं होंगे।
देशों को ऊर्जा, पर्यावरण और बढ़ती अर्थव्यवस्था की संतुलित ऊर्जा जरूरतों के लिए नीतियों को लागू करना चाहिए। उन्हें इस तथ्य के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए कि उन्हें अगली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण की सुरक्षा, संरक्षण और बेहतर दुनिया बनाना होगा।
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