जानिए क्या है "अफ्सपा" कानून ? #RepealAFSPA | What is Special Powers act Afspa
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जानिए क्या है “अफस्पा” कानून?, अफस्पा की विशेषताएं, अधिनियम द्वारा झटके का सामना करना, विभिन्न समुदायों के बीच मतभेद, अफस्पा कब लागू किया, सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) को हटाये जाने की मांग जोर पकड़ती नजर आ रही है.. …
सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम भारतीय संसद द्वारा 11 सितंबर 1958 में पारित किया गया था।[1] अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड के ‘अशांत इलाकों’ में तैनात सैन्य बलों को शुरू में इस कानून के तहत विशेष अधिकार हासिल थे। कश्मीर घाटी में आतंकवादी घटनाओं में बढोतरी होने के बाद जुलाई 1990 में यह कानून सशस्त्र बल (जम्मू एवं कश्मीर) विशेष शक्तियां अधिनियम, 1990 के रूप में जम्मू कश्मीर में भी लागू किया गया।[2] हालांकि राज्य के लदाख इलाके को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया।
सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम | Armed Force Special Power Act in Hindi
भारतीय संसद ने “अफस्पा” यानी आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट 1958 को लागू किया, जो एक फौजी कानून है, जिसे “डिस्टर्ब” क्षेत्रों में लागू किया जाता है, यह कानून सुरक्षा बलों और सेना को कुछ विशेष अधिकार देता है। अफस्पा को 1 सितंबर 1958 को असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड सहित भारत के उत्तर-पूर्व में लागू किया गया था, इन राज्यों के समूह को सात बहनों के नाम से जाना जाता है। इसे भारतीय संघ से अलग पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा रोकने के लिए लागू किया गया था। बाद में पंजाब और चंडीगढ़ भी इस अधिनियम के दायरे में आए और 1997 में इस कानून को वहाँ पर समाप्त कर दिया गया। अफस्पा 1990 में, जम्मू और कश्मीर राज्य के लिए लागू किया गया था।
किसी क्षेत्र को डिस्टर्ब कब माना जाता है?
विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषा, क्षेत्रीय समूहों, जातियों, समुदायों के बीच मतभेद या विवादों के कारण राज्य या केंद्र सरकार एक क्षेत्र को “डिस्टर्ब” घोषित करती हैं।
अफस्पा की विशेषताएं
आफस्पा कानून बहुत छोटा सा कानून है जिसमे महज़ 7 धाराएँ हैं...
- राज्य या केंद्र सरकार के पास किसी भी भारतीय क्षेत्र को “डिस्टर्ब” घोषित करने का अधिकार है।
- अधिनियम की धारा (3) के तहत, राज्य सरकार की राय का होना जरुरी है कि क्या एक क्षेत्र “डिस्टर्ब” है या नहीं। अगर ऐसा नही है तो राज्यपाल या केंद्र द्वारा इसे खारिज किया जा सकता है।
- अफस्पा अधिनियम की धारा (3) के तहत राज्य या संघीय राज्य के राज्यपाल को बजट की आधिकारिक सूचना जारी करने के लिए अधिकार देता है, जिसके बाद उसे केंद्र के नागरिकों की सहायता करने के लिए सशस्त्र बलों को भेजने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
- (विशेष न्यायालय) अधिनियम 1976 के अनुसार, एक बार “डिस्टर्ब” क्षेत्र घोषित होने के बाद कम से कम 3 महीने तक वहाँ पर स्पेशल फोर्स की तैनाती रहती है।
अफस्पा के अधिकार
अफस्पा के अनुसार, जो क्षेत्र “डिस्टर्ब” घोषित कर दिए जाते हैं वहाँ पर सशस्त्र बलों के एक अधिकारी को निम्नलिखित शक्तियाँ दी जाती हैं :-
- चेतावनी के बाद, यदि कोई व्यक्ति कानून तोड़ता है और अशांति फैलाता है, तो सशस्त्र बल के विशेष अधिकारी द्वारा आरोपी की मृत्यु हो जाने तक अपने बल का प्रयोग किया जा सकता है।
- अफसर किसी आश्रय स्थल या ढांचे को तबाह कर सकता है जहाँ से हथियार बंद हमले का अंदेशा हो।
- सशस्त्र बल किसी भी असंदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकते हैं। गिरफ्तारी के दौरान उनके द्वारा किसी भी तरह की शक्ति का इस्तेमाल किया जा सकता है।
- अफसर परिवार के किसी व्यक्ति, सम्पत्ति, हथियार या गोला-बारूद को बरामद करने के लिए बिना वारंट के घर के अंदर जा कर तलाशी ले सकता है और इसके लिए जरूरी, बल का इस्तेमाल कर सकता है।
- एक वाहन को रोक कर या गैर-कानूनी ढंग से जहाज पर हथियार ले जाने पर उसकी तलाशी ली जा सकती है।
- यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो उसको जल्द ही पड़ोसी पुलिस स्टेशन में अपनी गिरफ्तारी के कारण के साथ उपस्थित होना होता है कि उसको क्यों गिरफ्तार किया गया।
- सेना के अधिकारियों को उनके वैध कार्यों के लिए कानूनी प्रतिरक्षा दी जाती है।
- सेना के पास इस अधिनियम के तहत अभियोजन पक्ष, अनुकूल या अन्य कानूनी कार्यवाही के तहत अच्छे विश्वास में काम करने वाले लोगों की रक्षा करने की शक्ति है। इसमें केवल केंद्र सरकार हस्तक्षेप कर सकती है।
अफस्पा के तहत राज्य
मई 2015 में, त्रिपुरा में कानून व्यवस्था की स्थिति की संपूर्ण समीक्षा के बाद, 18 सालों के बाद अंत में अफस्पा को इस राज्य से हटा दिया गया था। निम्नलिखित राज्य अभी भी अफस्पा के दायरे में आते हैं :-
असम, नगालैंड, मणिपुर (नगरपालिका क्षेत्र इंफाल को छोड़कर), अरुणाचल प्रदेश (केवल तिरप, चंगलांग और लोंगडींग जिले और असम की सीमा के 20 किलोमीटर की बेल्ट तक), मेघालय (असम की सीमा से 20 किलोमीटर की बेल्ट तक सीमित) और जम्मू और कश्मीर
विशेषाधिकार
इस कानून के अंतर्गत सशस्त्र बलों को तलाशी लेने, गिरफ्तार करने व बल प्रयोग करने आदि में सामान्य प्रक्रिया के मुकाबले अधिक स्वतंत्रता है, तथा नागरिक संस्थाओं के प्रति जवाबदेही भी कम है, अफ्सपा कानून के तहत सेना के जवानों को किसी भी व्यक्ति की तलाशी केवल संदेह के आधार पर लेने का पूरा अधिकार प्राप्त है।
विरोध
इस कानून का विरोध करने वालों में मणिपुर की कार्यकर्ता इरोम शर्मिला का नाम प्रमुख है, जो इस कानून के खिलाफ 16 वर्षों से उपवास पर थी। उनके विरोध की शुरुआत सुरक्षा बलों की कार्यवाही में कुछ निर्दोष लोगों के मारे जाने की घटना से हुई।
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिर आयोग के कमिश्नर नवीनतम पिल्लई ने 23 मार्च 2009 को इस कानून के खिलाफ जबरदस्त आवाज उठायी थी और इसे पूरी तरह से बंद कर देने की मांग की थी. उन्होंने इस औपनिवेशिक कानून की संज्ञा दी थी. दूसरी ओर सेना के जवानों का कहना है कि चूंकी जम्मू-कश्मीर में जवानों को हर समय जान की जोखिम रहती है. इस कारण से उनके पास ऐसे कानून का होना वाजिब है।
आफस्पा से लोगों की शिकायत क्या है?
पिछले दशकों में जब आफस्पा उत्तर पूर्व और कश्मीर में लागू रहा है, लगातार यह देखा गया है कि सशस्त्र बलों के द्वारा निर्दोषों को उठाया जाना, अमानवीय यातनाएं देना, फर्जी मुठभेड़, यौन हिंसा और बलात्कार आदि अनेकों घटनाये हुई हैं.. कुछ घटनाएँ इस प्रकार हैं:-
- 1987 में मणिपुर के ओइनाम में “ऑपरेशन ब्लूबर्ड” के दौरान 30 नागा गांवो में फौज के द्वारा घरों को जलाया गया, फर्जी मुठभेड़, महिलाओं पर यौन हिंसा और अमानवीय यातनाओं के व्यापक प्रमाणों के बावजूद कोई करवाई नहीं की गयी.
- 2000 में इम्फाल के पास मालोम में असम राइफल्स की अंधाधुंध गोलीबारी में 10 लोगों की मौत हुई जिनमे 60 वर्ष की बूढी महिला और 18 वर्षीय वीरता पुरुस्कार जीतने वाली बालिका भी थी. इसके बाद मणिपुर में भारी जन आक्रोश पैदा हुआ. इरोम शर्मीला नामक कवियत्री ने तबसे आफस्पा को रद्द करने के लिए अपनी भूख हड़ताल शुरू की जो आज भी ज़ारी है.
- 2000 में जम्मू–कश्मीर के अनंतनाग जिले के पथ्रीबल में कुछ साधारण ग्रामीणों को “विदेशी आतंकी” और छात्तिसिंगपुरा में सिखों के हत्यारे बताकर फौज ने मुठभेड़ में मार डाला.
- 2004 में जब इम्फाल में असम राइफल्स ने थंजम मनोरमा का बलात्कार व उसकी हत्या की तो पूरा मणिपुर सुलग गया. अधेड़ उम्र की महिलाओं ने असम राइफल्स के हेडक्वार्टर के समक्ष “Indian Army Rape Us” (भारतीय फौज हमारा बलात्कार करो) के बैनर के साथ नग्न प्रदर्शन कर लोकतंत्र की आत्मा को झकझोरा.
मानवाधिकार समर्थक क्षेत्रीय जनता द्वारा सेना पर लगाए गए मर्डर, रेप और जबरन वसूली के आरोपों को सिविल कानूनों के दायरे में रखने की मांग करते रहे हैं। माना जाता है कि ऐसा कदम घातक होगा, क्योंकि इससे सेना पर झूठे आरोप गढे जाएंगे और सेना के मनोबल पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
पिछले कुछ वर्षों में, अफस्पा के लागू होने के कारण बहुत सारी आलोचनाएं हुई हैं। तथ्य यह है कि इस अधिनियम के तहत कोई भी अधिकारी बिना किसी कारण के जाने ही गोलीबारी कर सकता है, इसलिए यह अधिनियम बेरहम लग रहा है। हाल ही में, 31 मार्च, 2012 को संयुक्त राष्ट्र ने भारत से कहा कि भारतीय लोकतंत्र में अफस्पा का कोई स्थान नहीं है इसलिए इसको रद्द कर दिया जाए। ह्यूमन राइट्स वॉच ने इस अधिनियम की आलोचना की है जिसमें दुरुपयोग, भेदभाव और दमन शामिल हैं। हालांकि, जब निकटता से देखा गया, तो जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियों की कमी के कोई संकेत नहीं दिखाई दिए। अफस्पा के बिना भारतीय सशस्त्र सेनाएं आतंकवादियों के सामने सिर झुका लेंगी। भारतीय सशस्त्र बलों ने पहले से ही अपने कई कुशल अधिकारियों और पुरुषों को खो दिया है। केवल यह अधिनियम जीवन को अधिक हानि पहुंचाए बिना आतंकवाद को रोकने में मदद करने के लिए उनके पास अफस्पा नामक एक कवच है। इस अधिनियम के द्वारा आंतकवाद से होने वाली हानियों को रोका जा सकता है। जय हिंद।
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