क्या है समान नागरिक सहिंता (यूनिफॉर्म सिविल कोड), देश एक, संविधान एक फिर कानून अलग-अलग क्यों ? | What is Uniform Civil Code in Hindi
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समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। यूनियन सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है। …
समान नागरिक संहिता का अर्थ एक पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी धर्म के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों में, अलग-अलग धर्मों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही 'समान नागरिक संहिता' का मूल भावना है। समान नागरिक कानून से अभिप्राय कानूनों के वैसे समूह से है जो देश के समस्त नागरिकों (चाहे वह किसी धर्म या क्षेत्र से संबंधित हों) पर लागू होता है। यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं।
समान नागरिक संहिता या कॉमन सिविल कोड या यूनिफार्म सिविल कोड | Common Civil code or Uniform Civil Code in Hindi
वैसे तो यूनिफॉर्म सिविल कोड की बहस देश में बहुत पुरानी है, लेकिन अब केन्द्र सरकार ने देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की दिशा में एक बड़ा कदम आगे बढ़ाया है। सरकार ने लॉ कमीशन से इसके बारे में राय मांगी है। अभी कल ही सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर बैन कर दिया है इसलिए अब यूनिफार्म सिविल कोर्ट पर सबकी नजरे है. वैसे मोदी सर्कार जिस तरीके से काम कर रही है लगता है जल्दी ही इस मसले का भी हल निकल जायेगा हालाँकि इसको लागु करना बहुत मुश्किल होगा।
आखिर है क्या समान नागरिक संहिता (What is Uniform Civil Code?)
संविधान निर्माण करते वक़्त बुद्धिजीवियों ने सोचा कि हर धर्म के भारतीय नागरिकों के लिए एक ही सिविल कानून रहना चाहिए.
इसके अन्दर आते हैं —
- Marriage विवाह
- Succession संपत्ति-विरासत का उत्तराधिकार
- Adoption दत्तक ग्रहण
यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने का मतलब ये है कि शादी, तलाक और जमीन जायदाद के उत्तराधिकार के विषय में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। फिलहाल हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने-अपने पर्सनल लॉ के तहत करते हैं।
संविधान के आर्टिकल 44 में क्या है (What is Article 44 in Constitution)
राज्य की नीति के निर्देशक तत्त्व (जो अनुच्छेद 36 से अनुच्छेद 51 तक हैं) के अनुच्छेद 44 में लिखा है कि देश को भारत के सपूर्ण क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता बनाने का प्रयास करना चाहिए।
संविधान के आर्टिकल 44 में इसका जिक्र करते हुए लिखा है कि - सरकार इस बात की कोशिश करेगी कि एक दिन देश भर में यूनिफार्म सिविल कोड लागू हो। यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने का मतलब ये है कि शादी, तलाक और जमीन जायदाद के बंंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। फिलहाल हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के तहत करते हैं।
मुस्लिमो के लिए इस देश में अलग कानून चलता है जिसे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कहते है यह गैर सरकारी संगठन है। साल 2005 में, भारतीय शिया ने सबसे महत्वपूर्ण मुस्लिम संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ से नाता तोड़ दिया और उन्होंने ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के रूप में स्वतंत्र लॉ बोर्ड का गठन किया।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुस्लिमो के इस तरह के ही कुरानी या शरियत कानून को संचालित करता है या उनकी रक्षा करता है।
व्यक्तिगत कानून (Personel Law in India)
भारत में अधिकतर निजी कानून धर्म के आधार पर तय किए गए हैं। हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध हिंदू विधि के अंतर्गत आते हैं, जबकि मुस्लिम और ईसाई के लिए अपने कानून हैं। मुस्लिमों का कानून शरीअत पर आधारित है; अन्य धार्मिक समुदायों के कानून भारतीय संसद के संविधान पर आधारित हैं।
भारतीय संविधान और समान नागरिक संहिता (Indian Constitution & Uniform Civil Code)
समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में है। इसमें नीति-निर्देश दिया गया है कि समान नागरिक कानून लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में केन्द्र सरकार के विचार जानने की पहल कर चुका है।
यूनीफॉर्म सिविल कोड पहली बार सुर्खियों में कब आया? (Uniform Civil Code in News)
जब से हमारा संविधान बना है हमेशा चर्चा में रहा है जिनमे से कुछ निम्न है..
- देश में यह मामला पहली बार सन 1840 में उठा था।
- 1985 में शाह बानो केस के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड एक बार फिर सुर्खियों में आया।
- सुप्रीम कोर्ट ने बानो के पूर्व पति को गुजारा भत्ता देने का ऑर्डर दिया था।
- इसी मामले में कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि पर्सनल लॉ में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होना चाहिए।
- राजीव गांधी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए संसद में एक विवादास्पद कानून पेश किया था।
- अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक पर फैसला आने के बाद यह मुद्दा एक बार भी मीडिया में चर्चा पर है।
बीजेपी ने की यूनीफॉर्म सिविल कोड की वकालत (BJP Stand on Uniform Civil Code)
सरकार द्वारा विधि आयोग को समान नागरिक संहिता का अध्ययन के लिए कहे जाने के बीच भाजपा ने आज इसकी वकालत की और कहा कि संविधान में जिक्र होने के बाद भी वोट बैंक राजनीति के कारण इसका विरोध किया जाता रहा है।
पार्टी के राष्ट्रीय सचिव श्रीकांत शर्मा ने कहा, इस पर खुली बहस होनी चाहिए। संविधान इसकी वकालत करता है और जो इसका विरोध करते हैं वे सिर्फ संविधान के प्रति अपनी असहिष्णुता दर्शाते हैं। हमने हमेशा इसकी वकालत की है। समान नागरिक संहिता होनी चाहिए। इसका विरोध वोट बैंक राजनीति के कारण किया जाता रहा है।
हिंदू कोड बिल क्या था ? (What was Hindu Code Bill ?)
भारत आजाद तो हो चुका था. मगर सही मायने में अब भी कई संकीर्ण मानसिकताओं का गुलाम बना हुआ था. जहाँ एक ओर हिन्दू पुरुष एकाधिक विवाह कर सकते थे वहीँ दूसरी ओर एक विधवा औरत पुनर्विवाह (re-marriage) का सोच भी नहीं सकती थी. महिलाओं को उत्तराधिकार और सम्पत्ति के अधिकार से वंचित रखा गया था।
महिलाओं के जीवन में इन सामाजिक बेड़ियों को तोड़ने के लिए नेहरु (Nehru) ने हिन्दू कोड बिल का आह्वाहन किया. भीमराव अम्बेडकर (Bheemrao Ambedkar) भी इस मामले में नेहरु के साथ खड़े नज़र आये।
पर इस बिल का पूरे संसद में पुरजोर विरोध हुआ. लोगों का कहना था कि संसद में उपस्थित सभी गण जनता द्वारा चयनित नहीं है और यह एक बहुल समुदाय के धर्म का मामला है इसीलिए जनता द्वारा बाद में विधिवत् चयनित प्रतिनिधि ही इस पर निर्णय लेंगे. दूसरा पक्ष यह भी रखा गया कि आखिर हिन्दू धर्म को ही किसी ख़ास बिल बनाकर बाँधने की जरूरत क्यों पड़ रही है, अन्य धर्मों को क्यों नहीं?
इस प्रकार आजादी के पहले हिन्दू नागरिक संहिता (Hindu Civil Code) बनाने का प्रयास असफल रह गया. बाद में संविधान के अंदर 1952 में पहली सरकार गठित होने पर इस दिशा में कार्रवाई शुरू हुई और विवाह आदि विषयों पर हिन्दुओं के लिए अलग-अलग कोड बनाये गये.
मुस्लिम सामान नागरिक संहिता के खिलाफ क्यों हैं ? (Why are Muslims against Uniform Civil Code ?)
मुसलमानों का कहना है कि हमारे लिए अलग से कोई भी कानून बनाने की आवश्यकता नहीं हैं क्योंकि हमारे लिए कानून पहले से ही बने हुए हैं जिनका नाम है शरीयत (shariyat) हम न इससे एक इंच आगे जा सकते हैं, न एक इंच पीछे. हमें इससे मतलब नहीं है कि बाकी कौम अपने लिए कैसा सिविल कोड (civil code) चाहते हैं. हमारा सिविल कोड वही होगा जिसकी अनुमति हमारा धर्म देता है।
इन देशों में लागू है यूनिफॉर्म सिविल कोड (These Country Allow Uniform Civil Code)
एक तरफ भारत में समान नागरिक संहिता को लेकर बड़ी बहस चल रही है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देश इस कानून को अपने यहां लागू कर चुके हैं।
महिलाओं की स्थिति में होगा सुधार
समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में भी सुधार आएगा। कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित हैं। इतना ही नहीं, महिलाओं का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में भी एक समान नियम लागू होंगे।
भारत सरकार ने हाल ही में कानून आयोग से समान नागरिक संहिता पर विचार करने के लिए कहा है और विश्लेषण किया है कि इसका कार्यान्वयन किया जा सकता है या नहीं। उम्मीद की जाती है कि शीघ्र ही इस मुद्दे पर एक गरम और एक राजनीतिक बहस शुरू होगी और वास्तव में यह दूरगामी परिणाम हो सकता है। समान नागरिक संहिता हमेशा भारत के लिए राजनीतिक और धार्मिक रूप से एक विवादपूर्ण विषय रहा है और यह पहली बार हुआ है जहाँ सरकार ने कानून आयोग से यह कहा है कि जो वकील भारत में किसी भी कानूनी सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है उनकी सलाह ली जा सकती है। जय हिंद।
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