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सप्ताह के व्रत और त्योहार : जानिए अपरा एकादशी से लेकर वट सावित्री व्रत तक का महत्व
सप्ताह के व्रत और त्योहार : जानिए अपरा एकादशी से लेकर वट सावित्री व्रत तक का महत्व | Festival Of This Week Apara Ekadashi & Vat Savitri Vrat
वर्तमान सप्ताह का शुभारंभ ज्येष्ठ के कृष्ण पक्ष की एकादशी के साथ हो रहा है। इस एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता हे। 02 जून, सोमवार को ज्येष्ठ का कृष्ण पक्ष समाप्त हो जाएगा और उससे अगले दिन यानी 03 जून, से ज्येष्ठ मास का शुक्ल पक्ष आरंभ हो जाएगा। पिछले सप्ताह लगे पंचक भी कल यानी मंगलवार को खत्म हो जाएंगे। इस सप्ताह अपरा एकादशी व्रत, प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि व्रत, शनैश्चर जयंती, वट सावित्री व्रत आदि का आयोजन किया जाएगा।
अपरा एकादशी (02 जून, सोमवार)
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन अपरा एकादशी का व्रत रखने का विधान है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत को रखने से भ्रूण हत्या, ब्रह्म हत्या सहित सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। यह भी बताया गया है कि मकर संक्रांति पर गंगा स्नान से और बनारस में शिवरात्रि के व्रत और स्नान से जो पुण्य मिलता है, वह अपरा एकादशी का व्रत रखने से प्राप्त हो जाता है।
व्रत की विधि
इस दिन प्रात:काल उठकर स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का ध्यान लगाते हुए इस व्रत का संकल्प लें और नारायण की मूर्ति के आगे बैठकर चंदन का तिलक लगाते हुए उनका पूजन, अर्चन करें। आरती करें और योग्य और सुपात्र को दान देकर पूरा दिन ‘ओम नारायणाय नम:’ का पाठ करना चाहिए। व्रत में केवल फलाहार ही करें।
मासिक शिवरात्रि व्रत (4 जून, 2024)
प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के दिन शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव को समर्पित यह व्रत सब प्रकार की मनोकामनाओं को पूरा करने वाला बताया गया है। संपूर्ण शास्त्रों और अनेक प्रकार के धर्मों के आचार्यों ने इस शिवरात्रि व्रत को सबसे उत्तम बताया गया है। इस व्रत से भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह शिवरात्रि व्रत व्रतराज के नाम से विख्यात है। हो सके तो इस व्रत को जीवन पयंर्त करें, नहीं तो चौदह साल के बाद उद्यापन कर दें। समर्थजनों को यह व्रत प्रात: काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यंत तक करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
प्रदोष व्रत (4 जून, 2024)
जिस तरह प्रत्येक माह के दोनों पक्षों में एक एक बार एकादशी का व्रत होता है, ठीक उसी प्रकार त्रयोदशी को प्रदोष का व्रत रखा जाता है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है तो त्रयोदशी का व्रत भगवान शंकर को। क्योंकि त्रयोदशी का व्रत शाम के समय रखा जाता है, इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। सोमवार को यदि त्रयोदशी हो तो उसे सोम प्रदोष कहा जाता है और यदि मंगलवार को हो तो उसे भौम प्रदोष कहा जाता है। इस सप्ताह बुधवार होने से इस बार बुध प्रदोष व्रत रखा जाएगा। यह व्रत चूंकि भगवान शिव को समर्पित है इसलिए इस दिन उन्हीं की पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन ब्रह्मवेला में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर ‘अद्य अहं महादेवस्य कृपाप्राप्त्यै सोमप्रदोषव्रतं करिष्ये’ कहकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और फिर शिवजी की पूजा अर्चना करके सारा दिन उपवास रखना चाहिए।
वट सावित्री व्रत/ज्येष्ठ अमावस्या (6 जून, 2024)
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत का विधान शास्त्रों में बताया गया है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस व्रत का संबंध वट के वृक्ष और सावित्री के साथ है, इसलिए इसे वट सावित्री व्रत के नाम से संबोधित किया जाता है। इस व्रत को प्राय: त्रयोदशी से पूर्णिमा अथवा अमावस्या तक किया जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन महिलाओं को व्रत के साथ-साथ मौन भी धारण करना चाहिए। वट वृक्ष का पूजन और व्रत करके ही सावित्री ने यमराज से अपने पति को वापस पाया था। तभी से पति की लंबी आयु के लिए इस व्रत का विधान प्रचलित हो गया।
शनैश्चर जयंती (06 जून, बृहस्पतिवार)
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शनि अमावस्या अथवा शनैश्चरी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मृत्युलोक के दंडाधिकारी शनिदेव का जन्मोत्सव पर्व प्रत्येक वर्ष में ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। शनि को न्याय का देवता माना जाता है, लेकिन इन्हें कर्म का भी देवता कहा जाता है। शुक्रवार को ज्येष्ठ अमावस पड़ रही है, इसलिए इस दिन शनैश्चर जयंती का आयोजन किया जाएगा। शनैश्चरी अमावस्या वाले दिन शनि देव का विशेष पूजन, अर्चन और स्तवन करना चाहिए। ज्योतिर्विदों के अनुसार जिन जातकों पर शनि की साढ़े साती अथवा ढैया का असर होता है उन्हें अवश्य ही शनि को प्रसन्न करने का उपाय करना चाहिए।
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Published: June 04, 2024 - 06:22 | Updated: June 04, 2024 - 06:22
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