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ऐसा क्या है दक्षिण चीन सागर में, जो चीन उसके लिए दादागिरी कर रहा है? | Importance of south china sea for china and why america is against the claim of china

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दक्षिण चीन सागर (South China Sea dispute) पर 6 देश अधिकार जताते हैं लेकिन चीन का दावा है कि लगभग 80% हिस्सा उसी का है. चीन के इस आक्रामक रवैए के पीछे है समुद्र के नीचे का अथाह भंडार.

चीन लगातार दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस और वियतनाम जैसे कई देशों पर धौंस जमाता रहा है. उसका मानना है कि लगभग 80 प्रतिशत सागर उसका है. हाल ही में अमेरिका नौसेना ने इसी क्षेत्र में युद्धाभ्‍यास किया. माना जा रहा है कि इस तरह से अमेरिका ने चीन को अपने तरीके से जवाब दिया. अमेरिका के बमवर्षक विमान B-52H की इस उड़ान को चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने शक्ति प्रदर्शन कहते हुए काफी भड़ास निकाली. यहां तक कि मीडिया के ही जरिए चीन ने अपनी मिसाइलों की तस्वीर ट्वीट करते हुए अमेरिका को धमकाने तक की कोशिश की. जानिए, क्या है दक्षिण चीन सागर में, जिसके कारण चीन उसे पूरा का पूरा हड़पना चाहता है.

कहां है दक्षिण चीन सागर

ये प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारे से सटा हुआ है और एशिया के दक्षिण-पूर्व में पड़ता है. इसका दक्षिणी हिस्सा चीन के मेनलैंड को छूता है. दूसरी ओर दक्षिण-पूर्वी भाग पर ताइवान अपनी दावेदारी रखता है. सागर का पूर्वी तट वियतनाम और कंबोडिया से जुड़ा हुआ है. पश्चिमी तट पर फिलीपींस है. साथ ही उत्तरी इलाके में इंडोनेशिया के द्वीप हैं. इस तरह से कई देशों से जुड़ा होने के कारण इसे दुनिया के कुछ सबसे ज्यादा व्यस्त जलमार्गों में से एक माना जाता है. इसी मार्ग से हर साल 5 ट्रिलियन डॉलर मूल्य का इंटरनेशनल बिजनेस होता है. ये मूल्य दुनिया के कुल समुद्री व्यापार का 20 प्रतिशत है. इस सागर के जरिए चीन अलग-अलग देशों तक व्यापार में सबसे आगे जाना चाहता है.

सबसे ज्यादा विवाद पार्सल द्वीप समूह (Paracel Islands) को लेकर है

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हालांकि सबसे ज्यादा विवाद पार्सल द्वीप समूह (Paracel Islands) को लेकर है. ये हिस्सा कच्चे तेल और नेचुरल गैसों का भंडार है. साथ ही लगभग 35 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले इस समुद्र में मूंगे और समुद्री जीव-जंतुओं की भरमार है. यहां इतने किस्म की मछलियां पाई जाती हैं कि दुनियाभर में फिश बिजनेस की लगभग आधी आपूर्ति यहीं से होती है. यही वजह है कि चीन सागर के जरिए इसे भी हड़प करना चाहता है. एक और वजह ये भी है कि कई देशों से जुड़ा होने के कारण ये सागर सामरिक महत्व का भी है. इससे अपना विस्तार करने की मंशा करने वाले चीन को काफी फायदा हो सकता है. चीन की यही घुसपैठ देशों के बीच विवाद की जड़ है.

दक्षिण चीन सागर पर चीन, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ताईवान और ब्रुनेई- ये 6 देश अपना-अपना अधिकार जताते रहे हैं, हालांकि चीन इसका 80 प्रतिशत हिस्सा लेना चाहता है. इसके तहत चीन ने सागर में आज से 6-7 साल पहले फैलना शुरू किया. समुद्र में खुदाई करने वाले चीनी जहाजों ने एक समुद्री पट्टी पर निर्माण शुरू किया. बंदरगाह बनाया गया और फिर हवाई पट्टी भी तैयार हो गई. कुछ ही वक्त में एक सैनिक बेस भी तैयार हो गया. धीरे-धीरे चीन ने कई द्वीपों पर सैनिक तैनात कर दिए. वे आने-जाने वाले जहाजों को परेशान करने लगे. यहीं से लड़ाई शुरू हुई.

चीन का कहना है कि लगभग 2 हजार साल पहले उसी के मछुआरों ने इस सागर के द्वीपों को खोजा था

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चीन का कहना है कि लगभग 2 हजार साल पहले उसी के मछुआरों ने इस सागर के द्वीपों को खोजा था. सेकंड वर्ल्ड वार के दौरान हालांकि पूरे दक्षिण सागर पर जापान का कब्जा था लेकिन युद्ध में उसकी हार के तुरंत बाद चीन इसे हथियाने लगा. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक युद्ध के फौरन बाद ही चीन ने अपने जंगी जहाज भेजकर यहां के द्वीपों में अपना कब्जा किया. यहां तक कि इसके बाद चीन ने एक नक्शा भी छापा, जिसमें यहां के द्वीपों को उसने अपने अधिकार में दिखाया. तब तक किसी भी देश ने आपत्ति नहीं की थी. बाद में सत्तर के दशक में यहां गैस और तेल के भंडारों का पता चलने के बाद से असल विवाद चालू हुआ.

अब सवाल ये आता है कि अमेरिका को दूसरे देशों की इस लड़ाई से क्या मतलब है? असल में इसकी जड़ में सिर्फ ग्लोबल स्तर पर व्यापार का प्रभावित होना और चीन का वर्चस्व छाना ही नहीं है. इसके साथ ही एक वजह है विवाद में फिलीपींस, सिंगापुर और वियतनाम का होना. इन देशों के साथ अमेरिका का सुरक्षा गठबंधन है. यानी चीन का यहां कोई भी कदम इन देशों के साथ-साथ अमेरिका पर भी असर डालेगा.

इस सागर के जरिए चीन अलग-अलग देशों तक व्यापार में सबसे आगे जाना चाहता है

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साथ ही इसमें अमेरिका का अपना डर भी है. दरअसल चीन ने समुद्र में कई आर्टिफिशयल द्वीप बना लिए हैं, जिसमें मिलिट्री बेस और जंगी जहाज तैनात हैं. माना जा रहा है कि ये बड़ी तैयारी है ताकि कभी युद्ध के हालात बनें तो कोई भी देश मेनलैंड चीन के पास भी न आ सके और समुद्र में ही उन्हें हरा दिया जाए.

वैसे चीन के आक्रामक रवैए से परेशान देश इसे बातचीत के जरिए सुलझाना चाहते हैं लेकिन चीन के पास ज्यादा ताकत होना द्विपक्षीय बात में बाधा हो सकता है. चीन से विवाद में आए देश चाहते हैं कि मुद्दा Asean (the Association of South East Asian Nations) में जाए और वहां बात हो. इसमें कुल 10 देश हैं. लेकिन चीन हमेशा से इसके खिलाफ है और लगातार द्विपक्षीय बात पर ही जोर दे रहा है. साल 2013 में इंडोनेशिया चीन की दादागिरी की बात इंटरनएशनल ट्रिब्यूनल में ले गया. वहां चीन के खिलाफ बात हुई कि वो समुद्री कानून तोड़ रहा है. भड़के हुए चीन ने फैसले को गलत बताते हुए अपना समुद्री विस्तार रोकने से इनकार कर दिया.

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